नम्माऴवार (भारतीय साहित्य के निर्माता) : Nammalvar (Makers of Indian Literature)

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Item Code: NZA522
Publisher: SAHITYA AKADEMI, DELHI
Author: ए. श्रीनिवास राघवन A.Srinivass Raghavan's)
Language: Hindi
Edition: 1984
Pages: 99
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 100 gm
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Book Description

पुस्तक के विषय में

 

तमिलनाडु के भक्त कवियो में नम्मालवार का महत्वपूर्ण स्थान है। वे अन्य कवियों को पुकार कर कहते हैं, 'यदि जीवित रहना चाहते हो तो अपने हाथों से श्रम करो और पसीने की कमाई खाओ। धनवान की महिमा गाने से क्या लाभ? संसार में सच्चा धनी कौन है? बुझे तो कोई दिखाई नहीं देता। अपने इष्टदेव का गुणगान करो।

अत्यन्त सुन्दर ढंग से लिखे गये इस विनिबन्ध द्वारा स्वर्गीय प्रो० ए० श्रीनिवास राघवन ने सामान्यत: सभी आलवारों से और विशेषत: नम्मालवार से पाठकों का परिचय कराया है, नम्मालवार की चारों कृतियों की विस्तृत व्याख्या की है, उनकी रचनाओं में अभिव्यक्त उनके आन्तरिक जीवन और उनकी सत्य की यात्रा पर टिप्पणियां की हैं और नम्मालवार के तत्व-दर्शन और उनके काव्य का सार प्रस्तुत किया है प्रस्तुत कृति में लेखक ने नम्मालवार के काव्य और व्यक्तित्व के प्रति अपने जीवनभर की श्रद्धा और आत्मीयता को व्यक्त किया है और विनिबन्ध की सीमा में रहते हुए भक्त, प्रभु-प्रेम में उन्मत्त गायक और अन्त प्रेरित कवि के रूप में नम्मालवार की उपलब्धियों के प्रति पर्याप्त न्याय किया है इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि तमिल में रचित नम्मालवार के रहस्यवादी काव्य का अनुवाद प्राय: असम्भव है, तो भी यह कहा जा सक्ता है कि उदाहरण के रूप में ये उद्धरण सर्वथा पठनीय हैं।

प्राक्कथन

 

नम्मालवार वैष्णव भक्त के रूप में समादृत हैं और उनकी रचनाओं को धर्मग्रंथों के समान प्रामाणिक माना जाता है । उनकी कृतियों की व्याख्या का कार्य आज से लगभग सात शताब्दी पूर्व प्रारम्भ हुआ था,जिसके परिणाम स्वरूप अनेक टीकाएँ सामने आई उनमें, से कुछ नम्मालवार की उक्तियों जैसी ही मान्य है महान व्याख्याकारों द्वारा कही गई सभी बातों को इस पुस्तक के कलेवर में समेंटना असम्भव है और ऐसा कोई प्रयास भी नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त, इन बातों में तमिळेतर सामान्य पाठकों की अघिक रुचि नही होगी, जिनके लिए यह पुस्तक लिखी जा रही है अत: मूल रूप से ब्रह्म वैज्ञानिक चर्चा से सम्बन्धित अनेक विवरणों को छोड दिया गया है और केवल उन्हीं विवरणों को लिया गया है, जो इस सक्षिप्त सामान्य सर्वेंक्षण के लिए आवश्यक समझे गये।

पुस्तक में प्रस्तुत सामग्री में कहीं-कही पुनरावृत्ति भी है, जो अपरिहार्य थी विषय के स्पष्टीकरण के लिए ऐसा करना अनिवार्य था, किन्तु ऐसे विवरण अत्यल्प हैं।

अनुवाद के सम्बन्ध में दो बातें कहनी हैं शब्दानुवाद और स्वतंत्र अनुवाद के बीच मध्यम मार्ग अपनाने का भरसक प्रयास किया गया है कुछ उनका पद (किन्ही-किन्ही छन्दों के कुछ अंश) उद्धरण के रूप में चुने गये है और अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया है।

अपने मित्र, तिरुनेलवेली के अधिवक्ता द्वय श्री ए० एन० मकर भूषणम और श्री के० पक्षिराजन के प्रति व कृतज्ञ हूँ,जिन्होंने पुस्तक की रचना के दौरान उसकी पाण्डुलिपि को पढ़कर बहुमूल्य सुझाव दिये ये दोनों नम्मालवार के समर्पित शिष्य और तमिल के प्रकाण्ड विद्वान हैं और इन्होने मेंरी सर्वाधिक सहायता की है । पिरुनेळेवेली के अधिवक्ता और मेंरे मित्र ए० के गोपाल पिल्लै इस पुस्तक के प्रथम तमिळेतर सहृदय पाठक थे उनके सुझावों और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप मुझे पुस्तक के मूल स्वर को साधने में सहायता मिली।

 

 

अनुक्रम

1

आलवार सन्त

9

2

नम्मालवार का जीवन

13

3

नम्मालवार की कृतियाँ तिरुविरुत्तम

16

4

तिरुवाशिरियम

27

5

पेरिय तिरुवन्तादि

31

6

तिरुवाय्मोलि

37

7

सत्य की यात्रा

52

8

नम्मालवार का तत्व-दर्शन

63

9

नम्मालवार का काव्य

79

 

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