संन्यास दर्शन: A Comprehensive Introduction to Sannayasa

$38
FREE Delivery
Quantity
Delivery Usually ships in 10 days
Item Code: NZA670
Author: Swami Niranjanananda Saraswati
Publisher: Yoga Publications Trust
Language: Hindi
Edition: 2012
ISBN: 9789381620120
Pages: 416
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 550 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

 

 

पुस्तक के विषय में

संन्यास एक विश्वव्यापी परम्परा है,जिसने मानव की त्याग,वैराग्य एवं समर्पण की मूलभूत विचारधारा का संरक्षण किया है। संन्यास दर्शन में आध्यात्मिक जीवन को समर्पित प्रचीन एवं अर्वाचीन संन्यास परम्परा का सविस्तार वर्णन किया गया है।

इस पुस्तक में संन्यास-वंश-परम्परा,संन्यास के उद्गम,आश्रम-व्यवस्था संन्यास की अवस्थाओं,पारम्परिक नियमों एवं शर्तेां साथ-साथ संन्यास की आधुनिक अवधारणा एवं वर्तमान जीवम में संन्यास पर प्रकाश डाला गया है। संन्यास-वंश-परम्परा की चार महान् विभूतियों-दत्तात्रेय,आदि शंकराचार्य,स्वामी शिवानन्द एवं स्वामी सत्यानन्द सरस्वती के जीवन,कार्य एवं शिक्षाओं का भी विस्तृत वर्णन किया गया है।

पुस्तक के अन्तिम खण्ड में पाँच मुख्य संन्यास उपनिषदों-कुण्डिकोपनिषद्,भिक्षुकोपनिषद्,अवधूतोपनिषद् परमहंस परिव्राजकोपनिषद् एवं निर्वाणोपनिषद् पर स्वामी निरंजनान्द सरस्वती की व्याख्या का भी समावेश किया गया है।

स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती

स्वामी निरंजनानन्द का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनाँदगाँव में 1960 में हुआ । चार वर्ष की अवस्था में बिहार योग विद्यालय आये तथा दस वर्ष की अवस्था में संन्यास परम्परा में दीक्षित हुए । आश्रमों एवं योग केन्द्रों का विकास करने के लिए उन्होंने 1971 से ग्यारह वर्षों तक अनेक देशों की यात्राएँ कीं । 1983 में उन्हें भारत वापस बुलाकर बिहार योग विद्यालय का अध्यक्ष नियुक्त किया गया । अगले ग्यारह वर्षों तक उन्होंने गगादर्शन,शिवानन्द मठ तथा योग शोध संस्थान के विकास-कार्य को दिशा दी । 1990 में वे परमहंस-परम्परा में दीक्षित हुए और 1993 में परमहंस सत्यानन्द के उत्तराधिकारी के रूप में उनका अभिषेक किया गया 1993 में ही उन्होंने अपने गुरु के संन्यास की स्वर्ण-जयन्ती के उपलक्ष्य में एक विश्व योग सम्मेलन का आयोजन किया । 1994 में उनके मार्गदर्शन में योग-विज्ञान के उच्च अध्ययन के संस्थान,बिहार योग भारती की स्थापना हुई ।

भूमिका

संन्यास परम्परा को किसी भी प्रकार के व्यवस्थित धर्म की तरह नहीं समझना चाहिए । संन्यास की धारणा और उद्देश्य आज विश्व में प्रचलित सभी धर्मों से 'बहुत पहले' अस्तित्व में आए । संन्यास मात्र एक भारतीय परम्परा नहीं, अपितु एक सार्वभौमिक परम्परा है,जो मानवता के आधारभूत आध्यात्मिक विचारों का प्रतिनिधित्व करती है । ईसाई,इस्लाम तथा बौद्ध जैसे धर्मों के संगठित होने से पहले ही आध्यात्मिक जीवन के बारे में लोगों के अपने मत थे । प्रत्येक सभ्यता में ऐसे लोग हैं,जिन्हें आध्यात्मिक अनुभव हुए हैं । उन्होंने आध्यात्मिक जीवन तथा मान्यताओं के विषय पर विचार किया और इन विचारों के साथ ही आध्यात्मिक समझ के आधार पर विभिन्न पद्धतियाँ अस्तित्व में आईं ।

प्रारम्भ से ही मानव ने आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास किया है,और इसलिए प्रश्न उठता है कि मृत्यु के पश्चात् क्या होता है? इस प्रश्न ने बहुत लोगों को तत्सम्बन्धी विचारों एवं मान्यताओं के क्षेत्रों में अनुसन्धान करने के लिए प्रेरित किया है । इस प्रकार विभिन्न सभ्यताओं ने आत्मानुभुति के विभिन्न उपाय बतलाए । प्रत्येक सभ्यता में विभिन्नता होते हुए भी अध्यात्म के बारे में कुछ सामान्य विचार मिलते हैं,जिसने आध्यात्मिक विचारों के आधार पर सभ्यताओं को जोड़ दिया है । ये सामान्य विचार हैं-मनन,स्वाध्याय,श्रद्धा,'प्रार्थना,भक्ति तथा अन्तरावलोकन । इन धारणाओं के आधार पर ध्यान की विभिन्न प्रक्रियाओं का जन्म हुआ,जो प्रत्येक सभ्यता के अनुकूल थीं ।

मनन,ध्यान,स्वाध्याय तथा विश्लेषण के आधार पर जीवन व्यतीत करने के लिए लोगों को बाह्य बाधाओं से अपने आपको मुक्त करना था । फलस्वरूप वे जंगलों में एकान्त में रहे,जहाँ वे अपनी मान्यताओं का अनुस्मरण करने के लिए स्वतन्त्र थे । इन सभी के मध्य लोगों के ये समूह विभिन्न नामों से जाने गए,जिसमें एक सामान्य नाम 'तपस्वी' था; एसीन,केल्टिक,ताओवादी तथा दूसरी पुरातन परम्पराओं में हम ऐसी ही कड़ी पाते हैं । आत्म-साक्षात्कार,आध्यात्मिक अनुभव तथा व्यक्तित्व की सुषुप्त क्षमता का जागरण जैसे विचारों ने सदैव मनुष्य को आकृष्ट किया है।समाज में आध्यात्मिक जागरूकता का विकास करने के लिए ईसा मसीह,मोहम्मद और बुद्ध जैसे शक्तिशाली लोग प्राचीन परम्पराओं को उस समयकी प्रचलित भाषाओं में अभिव्यक्त कर सके । उनके विचारों तथा सामाजिकपरिवेश के अनुसार आध्यात्मिक अनुभवों की व्याख्या ने अनेक नए दर्शनोंको जन्म दिया । तत्पश्चात् उनके अनुयायियों ने उनके विचारों तथा शिक्षाओंके आधार पर नए धर्मों की स्थापना कर दी । लोग आध्यात्मिक मार्ग से विमुख न हों,इस बात को ध्यान में रखकर बाद में धर्म को दो विभागों में विभाजित कर दिया गया । पहला,जिसका अनुसरण सामान्य लोग कर सकें एवं दूसरा,जिसका अनुपालन,सुरक्षा तथा प्रचार कुछ चुनिन्दा भिक्षुओं का समूह कर सके । धर्म के उसी रूप को आज हम देख रहे हे । संन्यास परम्परा सदैव धार्मिक प्रभावों से अलग तथा विपरीत रही है । बहुत से ऐसे संत हुए हैं जो अपने अनुभव और समझ के आधार पर नए दर्शनों तथा धर्मों की स्थापना कर सकते थे,परन्तु वे आध्यात्मिक विचारों की मुख्यधारा से स्वयं को अलग नहीं करना चाहते थे।अध्यात्म की भारतीय परम्परा में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं । वेद,उपनिषद् तथा भारतीय चिन्तन के अन्य दर्शन; जैसे,सांख्य,न्यास,मीमांसा तथा तन्त्र ऐसे सिद्ध पुरुषों एवं संतों की समझ को दर्शाते हैं । अपने आध्यात्मिक अन्वेषण के अन्त में उन सभी ने अपनी एक-सी राय व्यक्त की और जोर देकर कहा, हमारे विचार एक धर्म का रूप न लेने पाएँ ,वरन् मानवता के आध्यात्मिक चिन्तन में संयुक्त होजाएँ । इसलिए जब हम संन्यास परम्परा की बात करते हैं, तब हम किसी ऐसे सम्प्रदाय की बात नहीं करते जो किसी विशेष प्रकार की विचारधारा से सम्बन्ध रखता है,बल्कि हम उस परम्परा की बात करते हैं जिसने युगों-युगों से चली आ रही शिक्षाओं तथा अनुभवों को संगृहीत कर आगे हस्तान्तरित किया। आज इस संग्रह को हिन्दुवाद के नाम से जाना जाता है,परन्तु वास्तव में हिन्दुवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है । 'हिन्दू,शब्द का प्रयोग,इस देश पर आक्रमण करने वालों द्वारा सिन्धु नदी के पार रहने वालों की पहचान के रूप में किया गया । यह आज की पूर्व मप्र पश्चिम की धारणा जैसा है । जो लोग पूर्व में रहते हैं, उन्हें प्राच्य तथा जो पश्चिम में रहते हैं, उन्हें पाश्चात्य कहा जाता है । यह उस सभ्यता की बहुत अल्प व्याख्या है जिसने अपने आध्यात्मिक चिन्तन का इतने बड़े पैमाने पर विकास किया है । इस सभ्यता का नाम सनातन है,जिसका अर्थ है 'अनन्त' और सनातन सिद्धान्तों के मानने वालों को सनातनी कहा गया है । यह नाम उस सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है जिसने अनन्त जीवन का गहन चिन्तन किया है और उसका अनुभव प्राप्त करने के लिए बहुत से तरीकों की खोज की है । संन्यास परम्परा,जिसने हमेशा इन सनातन नियमों तथा मान्यताओं का समर्थन किया है,मूलत:एक जीवनशैली है,जिसको अन्तर्वर्ती क्षमताओं को खोजने का माध्यम बनाया जा सकता है । इस परम्परा को एक महान् चिन्तक नया दार्शनिक,आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा पुन:व्यवस्थित किया गया । उन्होंने कुछ नियमों का प्रतिपादन किया जो प्रत्येक संन्यासी के लिए मूल सिद्धान्त हैं । यमों और नियमों का पालन करके जीवन की सीमाओं को रूपान्तरित किया जा सकता है तथा सुषुप्त मानवीय क्षमताओं के पूर्ण विकास का अनुभव किया जा सकता है । इससे मनुष्य अन्ततोगत्वा सुख और दुःख के बन्धन,राग और द्वेष की सीमाओं से मुक्त होता है और समर्पण की भावना उत्पन्न होती है ।

पूर्व में संन्यासियों को तपस्वियों के रूप मे जाना जाता था,जो चेतना के उच्च आयामों में प्रवेश करने के लिए एकान्त जीवन व्यतीत करते थे । संन्यास की पूरी अवधारणा स्वामी शब्द में निहित है,जिसका अर्थ होता है,'स्वयं का मालिक' । एक संन्यासी को अवश्य यह क्षमता प्राप्त करनी चाहिए । कठोपनिषद् में एक कहावत है कि एक संन्यासी का जीवन तीक्ष्ण छुरी की धार पर चलने के समान है । एक गलत कदम पड़ा कि आप गिर कर अपने आपको चोट पहुँचा लेते हैं । उपनिषद् का यह कथन संन्यास के ढाँचे के भीतर एक बहुत ही अनुशासनात्मक,सामंजस्यपूर्ण तथा समग्र जीवन शैली की आवश्यकता को इंगित करता है ।

बाद में धर्मों ने संन्यास परम्परा के साथ अपने सम्बन्धों को बनाए रखा । यह उनकी ब्रह्मचर्य,प्रार्थना,करुणा और एकान्त चिन्तन के जीवन की शिक्षाओं से प्रतिबिम्बित होता है । वास्तविक पद्धति प्रत्येक मत तथा धर्म के अनुसार निश्चित रूप से भिन्न है,परन्तु आप प्रत्येक धर्म तथा सभ्यता में संन्यास के आधारभूत सिद्धान्तों को अवश्य पाएँगे ।

 

 

विषय-सूची

 

1

भूमिका

1

 

संन्यास परम्परा

 

2

संन्यास का उद्गम

7

3

आश्रम व्यवस्था

12

4

ऋषि एवं मुनि

17

5

वर्ण व्यवस्था

22

6

संन्यास परम्परा

27

7

संन्यास संस्कार

32

8

संन्यास की अवस्थाएँ

36

9

पारम्परिक नियम और शर्तें

41

10

शैव सम्प्रदाय

45

11

शंकर का आगमन

48

12

दशनाम संन्यास सम्प्रदाय

52

13

दशनामी अखाड़ा एवं अलखबाड़ा

56

14

वैष्णव सम्प्रदाय

62

 

आज के युग में संन्यास

 

15

संन्यासी का गीत

69

16

आधुनिक युग में संन्यास

75

17

संन्यास के लिए सुपात्र कौन?

80

18

आचार संहिता

88

19

संन्यासी की विशेषताएँ

100

20

गुरु की महिमा

109

21

संन्यासियों का भोजन

118

22

उदात्तीकरण और संन्यास

125

23

दमन और नियन्त्रण

132

24

आध्यात्मिक डायरी

137

25

स्त्रियाँ और संन्यास

142

26

भारत के स्त्री संत और संन्यासी

147

 

संन्यास वंश-परम्परा

 
 

दत्तात्रेय

165

 

शंकराचार्य

226

 

स्वामी शिवानन्द

250

 

स्वामी सत्यानन्द

273

 

संन्यास उपनिषद्

 

17

निर्वाणोपनिषद्

339

18

कुण्डिकोपनिषद्

384

19

भिक्षुकोपनिषद्

393

20

अवधूतोपनिषद्

396

21

परमहंसपरिव्राजकोपनिषद्

406

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories