दिमागी गुलामी: Mental Slavery

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Item Code: NZA903
Author: Mahapandita Rahula Sanktrityayana
Publisher: Kitab Mahal
Language: Hindi
Edition: 2023
ISBN: 9788122500752
Pages: 68
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 80 gm
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100% Made in India
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Book Description

पुस्तक के विषय में

प्रस्तुत पुस्तक 'दिमागी गुलामी'में महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी ने अपने देश भारत और उसके पिछड़े सामाजिक जीवन के कई पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। इसमें दिमागी गुलामी, गाँधीवाद, हिन्दुमुस्लिम सभ्यता, शिक्षा में आमूल परिवर्तन, नवनिर्माण, जमींदारी नहीं चाहिये, किसानों सावधान, अछूतों को क्या चाहिये, खेतिहर मजदूर, रूस में ढाई मास आदि पर उनके अलगअलग तर्कपूर्ण विचार निहित हैं।

राहुल जी भारत की प्राचीन सभ्यता को मानसिक दासता का प्रमुख कारण तथा नवनिर्माण में बाधा के रूप में स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार गाँधीवाद में निहित धार्मिक कट्टरता को जनजागृति में अवरोध कहतें हैं, तथा हिन्दू मुस्लिम समस्या को मध्यवर्ग और उच्चवर्ग का बनाया झगडा मानते हैं । शिक्षा में वह आमूल परिवर्तन किये जाने के पक्षधर है तथा उसके लिये क्रान्तिकारी कदम उठाने की आवश्यकता पर बल देते हैं । देश के नव निर्माण के लिये वे साम्यवादी समाज के आर्थिक निर्माण पर बल देते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक नव चेतना, नव जागृति तथा देश के नव निर्माण को ध्यान में रखकर लिखी गई है जो पाठकों के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी ।

राहुलजी-जीवन परिचय

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन(जन्म: 6 अप्रैल 1963, स्वर्गवास 14 अप्रैल 1863) का नाम इतिहास प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है ।'सांकृत्यायन' गोत्र होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा । उनमें भिन्नभिन्न भाषा साहित्य एव प्राचीन सस्कृतपालिप्राकृतअपभ्रंश भाषाओं का अनवरत अध्ययनमनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य था। प्राचीन और नवीन साहित्यदृष्टि की जितनी पकड व गहरी पैठ राहुल जी मे थी वैसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड जीवन के मूल मे अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही। विभिन्न विषयो पर उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों की रचना की जिसमें से 130 से भी अधिक ग्रथ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखनेपढने से यह ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीननवीन भारतीय साहित्य में थी अपितु तिबती, सिंहली अंग्रेजी, चीनीरूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुये उन्होंने उन भाषाओं को मथ डाला। साम्यवाद के क्षेत्र में उन्होंने कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की।

राहुलजी बुहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विचारक हैं । उनके उपन्यास और कहानियाँ बिल्कुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं। सर्वहारा की समस्याओं के प्रति विशेष जागरूक होने के कारण यह अपनी साम्यवादी कृतियो में किसानों, मजदूरों और मेहनत कश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते हैं। उन्होंने सामान्यत: सीधीसादी सरल शैली का सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य साधारण पाठका को लिये भी पठनीय और सुबोध है।

प्रकाशकीय

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहासप्रसिद्ध है और अमर विभूतियों मे गिना जाता है। राहुल जी की जन्मतिथि9 अप्रैल, 1983 ई० और मृत्युतिथि14 अप्रैल, 1963 है। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था । बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वयं बौद्ध हो गये।'राहुल' नाम तो बाद में पडाबौद्ध हो जाने के बाद। 'सांकृत्य'गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा।

राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्नभिन्न भाषा, साहित्य एवं प्राचीन संस्कृतपालीप्राकृत अपभ्रंश आदि भाषाओ का अनवरत अध्ययनमनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमे था। प्राचीन और नवीन साहित्य दृष्टि की जितनी पकड़ और गहरी पैठ राहुल जी की थी ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड़ जीवन के मूल मे अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वेपरि रही। राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन्1927 ई० में होती है। वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नही रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही। विभिन्न विषयो पर उन्होंने150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है । अब तक उनके130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके है । लेखो, निबन्धो एवं भाषणो की गणना एक मुश्किल काम है।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीननवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क मे गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की । जब वे साम्यवाद के क्षेत्र मे गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की । यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।

राहुल जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विचारक हैं। धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियों का सम्पादन आदि विविध क्षेत्रों में स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों से गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की।'सिंह सेनापति'जैसी कुछ कृतियों में उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है । यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य चिन्तन को समग्रत: आत्मसात् कर हमें मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया हे । चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन। इतिहाससम्मत उपन्यास हो या 'वोल्गा से गंगा'की कहानियाँहर जगह राहुल जी की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण मिलता जाता है। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।

समग्रत: यह कहा जा सकता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य, अपितु समूचे भारतीय वाङ्मय के एक ऐसे महारथी हैं जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन' एवं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणत: लोगों की दृष्टि नही गई थी। सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानो, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते है। विषय के अनुसार राहुल जी की भाषाशैली अपना स्वरूप निर्धारित करती है। उन्होंने सामान्यत: सीधीसादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य विशेषकर कथासाहित्यसाधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।

प्रस्तुत पुस्तक 'दिमागी गुलामी'में अपने देश भारत और उसके पिछड़े सामाजिक जीवन के कुछ पहलुओं पर महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने विचार व्यक्त किये हैं । दिमागी गुलामी, गांधीवाद, हिन्दुमुस्लिम सभ्यता, शिक्षा में आमूल परिवर्तन, नव निर्माण, जमीदारी नहीं चाहिए, किसानो सावधान, अछूतों को क्या चाहिए, खेतिहर मजदूर, रूस में ढाई मासइन विविध विषयों पर अलगअलग विचार किया गया है।

राहुल जी भारत की प्राचीन सभ्यता को मानसिक दासता का प्रमुख कारण मानते हुए नव निर्माण में उसे बाधा स्वीकार करते हैं। गांधीवाद में निहित धर्म की कट्टरता को भी वे जनजागृति में अवरोध कहते हैं। हिन्दूमुस्लिम समस्या को मध्यवर्ग और उच्चवर्ग का बनाया झगड़ा मानते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में वे आमूल परिवर्तन के पक्ष में हैं और उसके लिए क्रान्तिकारी कदम उठाने की आवश्यकता महसूस करते हैं। देश के नव निर्माण के लिए वे साम्यवादी समाज के आर्थिक निर्माण पर बल देते हैं।

अलग अलग विषयों पर अपने प्रबुद्ध चिंतन के द्वारा वे पूरे देश में क्रान्ति की लहर पैदा करने के पक्ष में हैं और जनचेतना को उब्दुद्ध करके उसे अपनी मानसिक दासता से मुक्ति दिलाना चाहते हैं।

पुस्तक नव चेतना, नव जागृति और देश के नव निर्माण को ध्यान में रखकर लिखी गई है। आशा है, पाठक इसे बराबर उपयोगी पायेंगे।

 

विषय-सूची

 

1

दिमागी गुलामी

1

2

गांधीवाद

7

3

हिन्दूमुस्लिम समस्या

15

4

शिक्षा में आमूल परिवर्तन

21

5

नवनिर्माण

29

6

जमीदारी नहीं चाहिए

37

7

किसानों सावधान!

43

8

अछूतों को क्या चाहिए?

47

9

खेतिहरमजदूर

51

10

रूस में बाई मास

55

sample Page

**Contents and Sample Pages**







पुस्तक के विषय में

प्रस्तुत पुस्तक 'दिमागी गुलामी'में महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी ने अपने देश भारत और उसके पिछड़े सामाजिक जीवन के कई पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। इसमें दिमागी गुलामी, गाँधीवाद, हिन्दुमुस्लिम सभ्यता, शिक्षा में आमूल परिवर्तन, नवनिर्माण, जमींदारी नहीं चाहिये, किसानों सावधान, अछूतों को क्या चाहिये, खेतिहर मजदूर, रूस में ढाई मास आदि पर उनके अलगअलग तर्कपूर्ण विचार निहित हैं।

राहुल जी भारत की प्राचीन सभ्यता को मानसिक दासता का प्रमुख कारण तथा नवनिर्माण में बाधा के रूप में स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार गाँधीवाद में निहित धार्मिक कट्टरता को जनजागृति में अवरोध कहतें हैं, तथा हिन्दू मुस्लिम समस्या को मध्यवर्ग और उच्चवर्ग का बनाया झगडा मानते हैं । शिक्षा में वह आमूल परिवर्तन किये जाने के पक्षधर है तथा उसके लिये क्रान्तिकारी कदम उठाने की आवश्यकता पर बल देते हैं । देश के नव निर्माण के लिये वे साम्यवादी समाज के आर्थिक निर्माण पर बल देते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक नव चेतना, नव जागृति तथा देश के नव निर्माण को ध्यान में रखकर लिखी गई है जो पाठकों के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी ।

राहुलजी-जीवन परिचय

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन(जन्म: 6 अप्रैल 1963, स्वर्गवास 14 अप्रैल 1863) का नाम इतिहास प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है ।'सांकृत्यायन' गोत्र होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा । उनमें भिन्नभिन्न भाषा साहित्य एव प्राचीन सस्कृतपालिप्राकृतअपभ्रंश भाषाओं का अनवरत अध्ययनमनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य था। प्राचीन और नवीन साहित्यदृष्टि की जितनी पकड व गहरी पैठ राहुल जी मे थी वैसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड जीवन के मूल मे अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही। विभिन्न विषयो पर उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों की रचना की जिसमें से 130 से भी अधिक ग्रथ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखनेपढने से यह ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीननवीन भारतीय साहित्य में थी अपितु तिबती, सिंहली अंग्रेजी, चीनीरूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुये उन्होंने उन भाषाओं को मथ डाला। साम्यवाद के क्षेत्र में उन्होंने कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की।

राहुलजी बुहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विचारक हैं । उनके उपन्यास और कहानियाँ बिल्कुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं। सर्वहारा की समस्याओं के प्रति विशेष जागरूक होने के कारण यह अपनी साम्यवादी कृतियो में किसानों, मजदूरों और मेहनत कश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते हैं। उन्होंने सामान्यत: सीधीसादी सरल शैली का सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य साधारण पाठका को लिये भी पठनीय और सुबोध है।

प्रकाशकीय

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहासप्रसिद्ध है और अमर विभूतियों मे गिना जाता है। राहुल जी की जन्मतिथि9 अप्रैल, 1983 ई० और मृत्युतिथि14 अप्रैल, 1963 है। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था । बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वयं बौद्ध हो गये।'राहुल' नाम तो बाद में पडाबौद्ध हो जाने के बाद। 'सांकृत्य'गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा।

राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्नभिन्न भाषा, साहित्य एवं प्राचीन संस्कृतपालीप्राकृत अपभ्रंश आदि भाषाओ का अनवरत अध्ययनमनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमे था। प्राचीन और नवीन साहित्य दृष्टि की जितनी पकड़ और गहरी पैठ राहुल जी की थी ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड़ जीवन के मूल मे अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वेपरि रही। राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन्1927 ई० में होती है। वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नही रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही। विभिन्न विषयो पर उन्होंने150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है । अब तक उनके130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके है । लेखो, निबन्धो एवं भाषणो की गणना एक मुश्किल काम है।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीननवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क मे गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की । जब वे साम्यवाद के क्षेत्र मे गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की । यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।

राहुल जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विचारक हैं। धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियों का सम्पादन आदि विविध क्षेत्रों में स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों से गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की।'सिंह सेनापति'जैसी कुछ कृतियों में उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है । यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य चिन्तन को समग्रत: आत्मसात् कर हमें मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया हे । चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन। इतिहाससम्मत उपन्यास हो या 'वोल्गा से गंगा'की कहानियाँहर जगह राहुल जी की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण मिलता जाता है। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।

समग्रत: यह कहा जा सकता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य, अपितु समूचे भारतीय वाङ्मय के एक ऐसे महारथी हैं जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन' एवं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणत: लोगों की दृष्टि नही गई थी। सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानो, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते है। विषय के अनुसार राहुल जी की भाषाशैली अपना स्वरूप निर्धारित करती है। उन्होंने सामान्यत: सीधीसादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य विशेषकर कथासाहित्यसाधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।

प्रस्तुत पुस्तक 'दिमागी गुलामी'में अपने देश भारत और उसके पिछड़े सामाजिक जीवन के कुछ पहलुओं पर महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने विचार व्यक्त किये हैं । दिमागी गुलामी, गांधीवाद, हिन्दुमुस्लिम सभ्यता, शिक्षा में आमूल परिवर्तन, नव निर्माण, जमीदारी नहीं चाहिए, किसानो सावधान, अछूतों को क्या चाहिए, खेतिहर मजदूर, रूस में ढाई मासइन विविध विषयों पर अलगअलग विचार किया गया है।

राहुल जी भारत की प्राचीन सभ्यता को मानसिक दासता का प्रमुख कारण मानते हुए नव निर्माण में उसे बाधा स्वीकार करते हैं। गांधीवाद में निहित धर्म की कट्टरता को भी वे जनजागृति में अवरोध कहते हैं। हिन्दूमुस्लिम समस्या को मध्यवर्ग और उच्चवर्ग का बनाया झगड़ा मानते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में वे आमूल परिवर्तन के पक्ष में हैं और उसके लिए क्रान्तिकारी कदम उठाने की आवश्यकता महसूस करते हैं। देश के नव निर्माण के लिए वे साम्यवादी समाज के आर्थिक निर्माण पर बल देते हैं।

अलग अलग विषयों पर अपने प्रबुद्ध चिंतन के द्वारा वे पूरे देश में क्रान्ति की लहर पैदा करने के पक्ष में हैं और जनचेतना को उब्दुद्ध करके उसे अपनी मानसिक दासता से मुक्ति दिलाना चाहते हैं।

पुस्तक नव चेतना, नव जागृति और देश के नव निर्माण को ध्यान में रखकर लिखी गई है। आशा है, पाठक इसे बराबर उपयोगी पायेंगे।

 

विषय-सूची

 

1

दिमागी गुलामी

1

2

गांधीवाद

7

3

हिन्दूमुस्लिम समस्या

15

4

शिक्षा में आमूल परिवर्तन

21

5

नवनिर्माण

29

6

जमीदारी नहीं चाहिए

37

7

किसानों सावधान!

43

8

अछूतों को क्या चाहिए?

47

9

खेतिहरमजदूर

51

10

रूस में बाई मास

55

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