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सुभद्रा कुमारी चौहान: Subhadra Kumari Chauhan

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Item Code: NZA673
Author: प्रतीक मिश्र: Dr.Prateek Mishra
Publisher: Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow
Language: Hindi
Edition: 2006
Pages: 144
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 170 gm
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Book Description
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प्रकाशकीय

राष्ट्रभाषा हिन्दी और उसका साहित्य आज जिन ऊँचाइयों पर है, उसकी नींव में अनेक विद्वानों और साहित्यकारों का अविस्मरणीय योगदान रहा है। हिन्दी साहित्य की यह प्रगति इस कारण भी निरन्तर आगे बढ़ती रही क्योंकि वह हमेशा देश और समाज के विभिन्न सवालों और समस्याओं को समर्पित रही । महान रचनाकारों ने अपनी राष्ट्रभाषा के विकास के लिए तो लिखा ही, तत्कालीन समस्याओं और स्वप्नों को भी शब्द दिये । इससे जनता में नयी स्फूर्ति आयी और इस व्यापक जन-जागरण में हिन्दी साहित्य का योगदान अविस्मरणीय है।

विशेष रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अनेक रचनाकार न केवल राजनीतिक आदोलनों में सक्रिय थे बल्कि इसी के एक माध्यम के तौर पर साहित्य का भी इस्तेमाल कर रहे थे । सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त, माखन लाल चतुर्वेदी, सोहन लाल द्विवेदी, निराला जी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन’, महादेवी वर्मा आदि की इस यशस्वी परम्परा में सुभद्रा कुमारी चौहान जी का नाम बहुत आदर से लिया जाता है । हिन्दी साहित्य और स्वतंत्रता आन्दोलन को उनकी जिस कालजयी रचना बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थीने अनन्त ऊँचाइयों दी, उसके बारे में कौन नहीं जानता । सुभद्रा जी ने इस तरह राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत न केवल अनेक कविताएँ लिखीं बल्कि विभिन्न सामाजिक समस्याओं, नारी जागरण और प्रकृति को समर्पित अनेक सुंदर रचनाएँ भी हिन्दी साहित्य को दीं । मूलत : उनकी पहचान महान कवयित्री की है, पर उन्होंने अनेक कहानियाँ भी लिखीं और बाल साहित्य के क्षेत्र में भी अतुलनीय योगदान दिया ।

उनमें लेखन की प्रतिभा जन्मजात थी और पिछली शताब्दी के प्रारम्भिक काल में स्त्रियों पर अनेक प्रतिबन्धों के बीच भी उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई, निरन्तर साहित्य-लेखन किया बल्कि सामाजिक प्रगति और स्त्री-जागरण के लिए सारी जिन्दगी समर्पित रहीं । उनके परिवार में प्रारम्भ से ही साहित्यिक परिवेश था और इस कारण उनका चिन्तन और लेखन निरन्तर नयी ऊँचाइयाँ छूता रहा । 'झण्डा सत्याग्रह में जेल जाने वाली वे देश की पहली महिला सत्याग्रही थीं । सुभद्रा जी ने संक्षिप्त जीवन ही जिया, परन्तु इसका भरपूर सदुपयोग किया और यही कारण है कि आज हिन्दी साहित्य का वैशिष्ट्य जिन गिने-चुने नामों से गौरवान्वित है, सुभद्रा जी का नाम उनमें बहुत आदर से लिया जाता है । उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के यशस्वी जीवन और साहित्यिक योगदान को समर्पित यह पुस्तक अपनी स्मृति संरक्षण योजना के अन्तर्गत प्रकाशित कर रहा है ।

यह देखा गया है कि अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच न केवल शोधार्थी और साहित्य के जागरूक पाठकों के बीच महान रचनाकारों के अतुलनीय योगदान से पूरी तरह परिचित होने की जिज्ञासा रहती है बल्कि आम नागरिकों के बीच भी ऐसी रचनाओं का भरपूर स्वागत होता है । सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन और साहित्यिक योगदान भी पिछले कई दशकों से हमें प्रेरणा देता रहा है और उसकी उपादेयता असंदिग्ध है । स्पष्ट है कि काल के हर पल में ऐसे व्यक्तियों और उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता बनी रहती है । आशा है, इस गौरवपूर्ण परम्परा में इस पुस्तक का भी हिन्दी पाठकों के बीच यथोचित स्वागत होगा।

निवेदन

महान राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक आदोलनों की सफलता की पृष्ठभूमि में किसी एक कारण की नहीं बल्कि विभिन्न कारणों और उनसे सम्बन्धित मनीषियों की अतुलनीय भूमिका रहती है। जन-जन के बीच उनकी पहुँच और पहचान के पीछे इन सभी कारणों का असाधारण योगदान रहता है । इसके अभाव में उनकी सफलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसा ही महान आदोलन था, जिसमें न केवल अनेक समर्पित राजनीतिक व्यक्तित्वों का योगदान था बल्कि अनेक साहित्यकारों कलाकारों और संस्कृति कर्मियों ने भी अपने-अपने ढंग से उसे नयी ऊँचाइयों देने में कुछ उठा नहीं रखा था ।

ऐसे महान साहित्यकारों में सुभद्रा कुमारी चौहान जी का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है । उनकी 'झाँसी की रानीकविता आज भी लोगों को प्रेरित करती रहती है। स्वतंत्रता संग्राम के समय उनकी यह कविता न केवल स्वतंत्रता सेनानियों के होठों पर रहती थी, बल्कि आम जनता के बीच भी देश के प्रति कर्तव्यों की याद दिलाने के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य में इसकी भूमिका अप्रतिम रही । स्कूली जीवन से ही उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था और यह महान कार्य, उनकी सारी जिन्दगी चलता रहा । स्वतंत्रता आदोलन में सक्रिय भागीदारी हो या सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष, पारिवारिक जीवन की जिम्मेदारियाँ हों या अन्य क्षेत्र - सुभद्रा जी ने एक कारगर हथियार के रूप में साहित्य का सदुपयोग किया । उन्होंने न केवल अनेक कविताएँ लिखीं, बल्कि कहानियाँ भी लिखीं । यह एक अलग बात है कि एक ओर जहाँ उनका कवि व्यक्तित्व अत्यन्त चर्चित है, उनकी कहानियों पर चर्चा प्राय : कम होती है। जो स्त्री-विमर्श आज के साहित्य आन्दोलनों में प्रमुखता से याद किया जाता है, यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि उनकी कहानियों में वर्षो पहले इसके बीजमौजूद रहे हैं । यही स्थिति उनके बाल साहित्य की भी है। जो आगत पीढ़ी को सिर्फ स्वस्थ मनोरंजन ही नहीं देता बल्कि भावी चुनौतियों के लिए तैयार भी करता है ।

ऐसे में उनके महान व्यक्ति और लेखन को समग्रता में समेटने वाली पुस्तक की आवश्यकता बहुत समय से थी । चर्चित हिन्दी विद्वान डॉ. प्रतीक मिश्र ने इसे पुस्तकाकार देकर हिन्दी साहित्य की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति की है । जिस तरह से उन्होंने इस पुस्तक में स्वर्गीय सुभद्रा कुमारी चौहान जी के जीवन और लेखन के विभिन्न पहलुओं को आत्मसात् किया है, शब्द दिये हैं, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय वह कम होगी । इससे पता चलता है कि उनका व्यक्तित्व सम्पूर्णता के साहित्य में डूबा हुआ था और जीवन के विभिन्न मानवीय पक्षों को शब्द देने में वह हमेशा आगे-आगे रहीं । राजनीति से लेकर प्रकृति और सामाजिक विडम्बनाओं से लेकर आज के स्त्री-सरोकारों तक उनकी कलम पूरी तरह समर्पित रही है । इस तरह, यह पुस्तक उनके प्रेरक व्यक्तित्व को सविस्तार समेटती है । इसके लिए मैं डॉ. प्रतीक मिश्र को हृदय से साधुवाद देता हूँ । विश्वास है कि अपनी स्तरीयता के चलते हिन्दी साहित्य के किसी भी सुधी पाठक के लिए इस पुस्तक की उपेक्षा करना।

दो शब्द

सुभद्रा कुमारी चौहान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम राष्ट्र-कोकिला थीं । उनकी 'झाँसी की रानीकविता ने कुटियों से लगाकर महलों तक में स्वतंत्रता अग्नि को प्रदीप्त किया था । यद्यपि उनका जीवन लम्बा नहीं रहा तथापि हिन्दी की राष्ट्रीय कविता धारा, बाल-साहित्य तथा कहानी-साहित्य में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है । उनकी पहचान एक कवयित्री के रूप में है किन्तु उन्होंने हिन्दी के कहानी साहित्य को भी अपनी लेखनी से धन्य किया है।

राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की एक सक्रिय योद्धा होने के बाद भी उनका काव्य-सृजन निरन्तर प्रारम्भ रहा । कारागार की यातनाएँ भोगते हुए उन्होंने प्रचुर परिमाण में कहानी साहित्य की रचना की । उनका कहानीकार रूप अभी भी उतना प्रकाश में नहीं आ सका है, जबकि उनकी कहानियाँ, कहानियों के प्रारम्भिक दौर की दृष्टि से बहुत ही प्रभावपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ हैं । नारी-विमर्श का स्वर उनकी कहानियों में पूरी शक्ति-मत्ता के साथ उभरा है।

सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन और साहित्य पर 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थानने पुस्तक प्रकाशित करने का निर्णय करके निश्चय ही स्तुत्य कार्य किया है । राष्ट्र की सेवा में सर्वस्व अर्पित करने वालों और विशेष कर तन-मन के साथ, वाणी से भी प्रभावी सेवा करने वालों की संख्या नाममात्र की ही है । सुभद्रा जी का नाम राष्ट्र-सेवा का यह प्रतिमान स्थापित करने वालों में सर्वप्रमुख है । 'झंडा सत्याग्रहमें कारागार जाने वाली वे देश की पहली सत्याग्रही महिला थीं । सुभद्रा जी पर पुस्तक प्रकाशन में मेरा यत्किंचित् सहयोग मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है । यह अवसर प्रदान करने के लिए मैं संस्थान के उपाध्यक्ष देश के प्रमुख कवि अग्रज श्री सोम ठाकुर तथा निदेशक भाई श्री छेदालाल जी का हृदय से आभारी हूँ ।

'गृह कारज नाना जंजालाके बीच यह कार्य सम्पन्न हो गया, इसे मैं ईश्वर की कृपा और अपने अग्रजों और मित्रों का सहयोग ही मानता हूँ । इस हेतु सर्वश्री डॉ. राष्ट्रबन्धु, डॉ. विश्वनाथ कैलखुरी, डॉ. अजय प्रकाश का कृतज्ञ हूँ । विश्वास है यह लघु पुस्तिका सुभद्रा जी के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का सामान्य परिचय प्रदान करने में सहायक हो सकेगी । जय हिन्दी! जय देवनागरी!

 

अनुक्रम

1

सुभद्रा कुमारी चौहान : जीवन-वृत्त

1

2

सुभद्रा जी : अनूठा व्यक्तित्व

14

3

सुभद्रा जी का साहित्यिक परिवार

19

4

सुभद्रा जी की राष्ट्रीय कविताएँ

25

5

सुभद्रा जी की प्रेम विषयक कविताएँ

47

6

वात्सल्य भाव की कविताएँ

54

7

भक्ति- भावना पूर्ण रचनाएँ

58

8

छायावाद से प्रभावित काव्य

60

9

प्रकृति विषयक कविताएँ

62

10

शोक-गीतियाँ

64

11

सुभद्रा जी : बाल-साहित्य की प्रणेत्री

67

12

सुभद्रा जी की कहानियों का कथासार

81

13

सुभद्रा जी की कहानियों का वैशिष्ट्रय

133

 

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