कर-लक्खण (सामुद्रिक शास्त्र) - The Signs of The Hand (Samudrik Shastra)

$15
Item Code: NZD266
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author: प्रो. प्रफुल्ल कुमार मोदी (Prof. Praful Kumar Modi)
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 2011
ISBN: 9788126320851
Pages: 47
Cover: Paperback
Other Details 7.0 inch X 5.0 inch
Weight 50 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

प्राक्कथन

(प्रथम संस्करण, 1947 से)

मनुष्य की हथेलियाँ (करतल) अपनी आकृति, बनावट, मृदुता, रंग, रूप और रेखाओं की दृष्टि से, एक-दूसरे से अति भिन्न होती हैं। शरीरशास्त्रियों का कहना है कि शरीर का यह ढाँचा जिस चमड़े से आवृत है वह कुछ तन्तुओं से बँधा है । वे सब एक-दूसरे से सम्बन्धित ही नहीं हैं, बल्कि उनसे मोड़ के स्थानों पर कुछ चिह्न भी उठ आये हैं । इन हथेलियों की विषमता का कारण नाना आकृति की मांसपेशियाँ हैं । शरीरशास्त्री यह विश्वास नहीं करते कि यन्त्ररूप में बने हुए घुमावदार मोड़ों और संकेतों का आध्यात्मिक रहस्यमय या भविष्य बतानेवाला कोई अर्थ होता है। मनुष्य में अपने भविष्य जानने की इच्छा उतनी ही पुरातन है जितना कि स्वयं मनुष्य, और यह उतनी ही बलवती होती जाती है, ज्यों-ज्यों मनुष्य का वातावरण हर तरफ अनिश्चित-सा दिखता है । प्रति मनुष्य में आश्चर्यरूप से अति भिन्न पाई जानेवाली हथेलियाँ ही भविष्य-ज्ञानपद्धति का आधार हैं और इसे सामुद्रिक (हस्तरेखा) विद्या कहते हैं । हाथ की रेखाओं और चिह्नों का, खास कर हथेली का लाक्षणिक अर्थ है । वे हमारे मानसिक और नैतिक स्वभावों से ही सम्बन्धित नहीं हैं, बल्कि व्यक्ति की भावी घटनाओं की गतिविधियों पर भी प्रकाश डालते हैं । यदि कुछ चिह्न हमारे अतीत की बातें बताते हैं, तो कुछ भविष्य की ।

शरीर पर के चिह्नों से मानवीय प्रवृत्तियों का भविष्य कहना एक पुराना सिद्धान्त है तथा प्राय: इसका उल्लेख प्राचीन भारतीय साहित्य में मिलता है और सामुद्रिक विद्या उससे एकदम सम्बन्धित है । चूँकि शारीरिक चिह्नों की व्याख्या सिर्फ़ लाक्षणिक है, पर पूर्व और पश्चिम देशों की मौलिक मान्यताएँ एक दूसरे से नहीं मिलतीं ।

भारतीय पद्धति रेखाओं, शंख तथा चक्रों पर ज्यादा जोर देती है; जब कि पाक्षात्य पद्धति में नाना आकृतियों और रेखाओं को महत्त्व दिया गया है, तथा उसमें एक ही रेखा के अर्थों में बहुधा भेद पड़ जाता है। चाहे मौलिक मान्यताएँ प्रामाणिक न हों तथा बहुत से अर्थ तर्कपूर्ण भले न हों, पर एक तथ्य तो जरूर है कि अनेक लोगों के लिए यह सामुद्रिक विद्या आकर्षण की वस्तु है । तथा गत कुछ वर्षों में प्रधान-प्रधान व्यक्तियों के हस्तरेखा-चित्र लिये गये हैं और उनसे कुछ आनुमानिक निष्कर्ष निकाले गये हैं। सामुद्रिक विद्या बहुतों के लिए संसारी जीविका का धन्धा हो गया है, परन्तु 'करलक्खण', जो कि यहाँ से प्रथम बार सम्पादित हो रहा है, के ग्रन्थकार का उद्देश्य धार्मिक ही है । इस ग्रन्थ के लिखने में उनका उद्देश्य धार्मिक संस्थाओं को इस योग्य बनाने का है कि जिससे वे व्यक्तियों की योग्यता को माप सकें और उनको (पुरूष/स्त्री को) धार्मिक प्रतिज्ञाएँ तथा नियम दे सकें ।

इस सामुद्रिक शास्त्र का, भविष्य कहने की पद्धति के रूप में, प्राचीन भारतीय विद्या में स्थान है और उस विषय का प्रतिपादन करनेवाली यह पुस्तिका 'करलक्खण' भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित की जा रही है। इसका प्राकृत पाठ संस्कृत छाया तथा हिन्दी शब्दार्थ के साथ है और सम्पादक प्रफुल्लकुमार मोदी ने यह सब हमारे सामने स्पष्ट रूप से रखा है। मोदी जी एक प्रतिभाशाली नवयुवक विद्वान् हैं और यह संस्करण उनकी भावी योग्यताओं को बतलाता है। अपने पिता प्रो. डॉ. हीरालाल जैन की मातहती में शिक्षित हुए इस युवक से सम्भावना है कि वह भविष्य में संस्कृत और प्राकृत साहित्य के अनुसन्धानों से हमें बहुत कुछ दे सकेगा ।

श्री साहू शान्तिप्रसाद जैन ने प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बहुविध रूपों को संसार के सामने रखने के आदर्श उद्देश्यों से प्रेरित हो भारतीय ज्ञानपीठ को स्थापित किया है। उनकी पत्नी श्रीमती रमारानी भी उनके उत्साह और उदारता के अनुरूप ही संस्था के प्रकाशनों में तीव्र अभिरुचि रखती हैं। वे दोनों हमारे अति धन्यवाद के पात्र हैं। हमें अनेक आशाएँ हैं कि यह संस्था न्यायाचार्य पं. महेन्द्रकुमार जी शास्त्री के उत्साहपूर्ण प्रबन्ध के नीचे अनेक विद्वानों के सक्रिय सहयोग से बहुत से योग्य प्रकाशन सामने लाएगी और इस तरह हमारे देश की सांस्कृतिक परम्परा को ओर समृद्ध करेगी।

प्रस्तावना

हस्तरेखा ज्ञान का प्रचार भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से रहा है । पुराणों में, बौद्धों के पालि धर्मशास्त्रों में तथा जैनों के प्राकृत आगमों में भी इसका उल्लेख पाया जाता है । संस्कृत में उसे सामुद्रिक शास्त्र कहा गया है । 'अग्निपुराण' के अनुसार प्राचीन काल में समुद्र ऋषि ने अपने शिष्य गर्ग को इस विद्या का अध्ययन कराया था (लक्षण यत्समुद्रेण गर्गायोक्तं यथा पुरा- अग्त्तिराणे) । वराहमिहिर ने भी अपने सुप्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ 'बृहत्संहिता' के महापुरुषलक्षण नाम के सर्ग (67-69) में इसका उल्लेख किया है । यहाँ तक कि 'बृहत्संहिता' के टीकाकार उत्पलभट्ट ने 'यथाह समुद्र:' कहकर बहुत से श्लोक समुद्र ऋषि प्रणीत उद्धृत किये हैं । 'हरिवंशपुराण' के रचयिता जिनसेनाचार्य ने भी 'नरलक्षण' के कर्ता का उल्लेख किया है और उन्हीं लक्षणों का वर्णन 'हरिवंशपुराण' के 23वें सर्ग के 55वें श्लोक से 107 वें श्लोक तक पाया जाता है । उनमें से 13(85-97) श्लोकों का विषय हस्तलक्षण और उनकी सार्थकता है । अत: वे पूर्णत: हस्तरेखाज्ञान विषयक कहे जा सकते हैं ।

प्रस्तुत ग्रन्थ हस्तरेखा-लान सम्बन्धी छोटी-सी पुस्तिका है । इस ग्रन्थ की जो प्राचीन हस्तलिखित प्रति मुझे उपलब्ध हुई थी, उस पर ग्रन्थ का नाम 'सामुद्रिक शास्त्र' दिया गया है । किन्तु ग्रन्थ का असली नाम 'करलक्खणं' है; जैसा कि उसकी आदि और अन्त की गाथाओं से सुस्पष्ट हो जाता है। यह ग्रन्थ 61 प्राकृत गाथाओं में पूर्ण हुआ है । ग्रन्थ के विषय का सार इस प्रकार है-

प्रथम गाथा में रचयिता ने जिन भगवान् महावीर को प्रणाम कर पुरुष और स्त्रियों के करलक्षण कहने की प्रतिज्ञा की है। दूसरी गाथा के अनुसार पुरुष को लाभ व हानि, जीवन व मरण तथा जय व पराजय रेखानुसार ही प्राप्त होते हैं। गाथा 3 के अनुसार पुरुषों के लक्षण उनके दाहिने हाथ में और स्त्रियों के उनके बायें हाथ में देखकर शोधना चाहिए। इसके आगे कर्ता ने अँगुलियों के बीच अन्तर का फल-वर्णन किया है (गा. 4-6) फिर उनके पर्वों का वर्णन है (गा.6); तत्तपश्चात् मणिबन्ध की रेखाओं का उल्लेख (गा. 7-11) कर विद्या, कुल, धन, रूप और आयुसूचक पाँच रेखाओं का वर्णन किया है (गा.12-22)। आगे की तीन गाथाओं (23-25) में रेखाओं के आकार, रूप व रंग के अनुसार उनका फल बतलाया है । फिर अँगूठे के मूल में यवों का फल कहा गया है (गा. 26-27) तथा उनके द्वारा भाई, बहिन व पुत्र-पुत्रियों की सूचना दी गयी है (गा. 28-307 । फिर लेखक ने अँगूठे के नीचे यव, केदार, काकपद आदि के गुण-दोष बतलाये हैं (गा. 31-35) । फिर कनिष्ठिका अँगुली के नीचे की रेखाओं से पति-पत्नियों की सूचना दी गयी है (गा.36-39) । तत्पश्चात् व्रत (गा. 40), मार्गण [खोज-बीन] (गा. 41) व गुरुदेव-स्मरण (गा. 42) सूचक रेखाओं का उल्लेख है । फिर लेखक ने अँगुलियों आदि पर भँवरी (गा. 43) व शंख (गा. 44) रूप चिह्नों का फल कहा है । फिर नखों के आकार व रंग आदि का फल कहा गया है (गा. 45) और उसके आगे मत्स्य, पद्य, शंख, शक्ति आदि चिह्नों की सूचना दी गयी है (गा. 46-53) । फिर हथेली पर बहु रेखाओं व अल्प रेखाओं का फल कहा गया है (गा. 54) और तत्पश्चात् परोपकारी हाथ के लक्षण बतलाये गये हैं (गा. 55) । कुछ चिह्न ऐसे हैं जो धन, वंश व आयु रेखाओं के फलों को बढ़ा या घटा देते हैं (गा. 56) । जीवरेखा व कुलरेखा के मिल जाने का फल गा. 57 में तथा हाथ के स्वरूप का फल गाथा 58-59 में कहा गया है । कैसे यव वाचनाचार्य या उपाध्याय या सूरि होनेवाले पुरुष की सूचना देते हैं-यह गाथा 60 में बतलाया गया है । अन्त की गाथा में लेखक ने विनय के साथ बतलाया है कि यह ग्रन्थ उन्होंने संक्षेपत: यतिजनों के हितार्थ इसलिए लिखा है कि वे इसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता जानकर ही उसे व्रत दें ।

दुर्भाग्य से लेखक ने अपना नाम व समय कहीं नहीं बतलाया और न हमारे पास कोई ऐसे साधन उपलब्ध हैं, जिनसे इन बातों का पता व अनुमान लगाया जा सके ।

इस ग्रन्थ की भाषा प्राय: शुद्ध महाराष्ट्री है, क्योंकि इसमें 'त्' के लोप होने पर केवल उसका संयोगी स्वर '' श्रुति सहित या बिना उसके ही पाया जाता है; '' के स्थान पर कहीं भी '' न होकर सर्वत्र '' ही हुआ है, और पूर्वकालिक कृदन्त अव्यय 'ऊण' प्रत्यय लगाकर बनाया गया है।

यद्यपि ग्रन्थ छोटा-सा है, तथापि वह इसलिए विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसके द्वारा प्राकृत में शास्त्रीय साहित्य के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान विस्तृत होता है ।

इस अवसर पर मैं भारतीय ज्ञानपीठ के अधिकारी वर्ग को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने इस पुस्तक को अपनी ग्रन्थमाला में सम्मिलित कर प्रकाशित करने की कृपा की ।

 

विषय-सूची

1

भगवान् महावीर को प्रणमन और विषय-प्रतिज्ञा

1

2

रेखाओं का महत्व

2

3

पुरुष और स्त्री के लक्षण भिन्न हाथों में

3

4

अँगुलियों के बीच में अन्तर का फल

1-5

5

अँगुलियों के पर्वों का फल

6

6

मणिबन्ध (कलाई) की रेखाओं का फल

7-11

7

पंचरेखा से पूर्वकर्म का निर्देश

12

8

विद्या-रेखा

13

9

कुल-रेखा

14

10

धन-रेखा

16

11

ऊर्ध्व-रेखा

17-18

12

सम्मान-रेखा

19

13

समृद्धि-रेखा

20

14

आयु-रेखा

21-22

15

रेखाओं के स्वरूप और रंग का फल

23-25

16

अँगूठे के नीचे यवों का फल

26-27

17

भाई-बहिन बतानेवाली रेखाएँ

28

18

सन्तान बतानेवाली रेखाएँ

29-30

19

अँगूठे के नीचे समफल यवों का फल

31

20

अँगूठे के बीच 'केदार' का फल

32

21

अँगूठे के केदार को काटनेवाली रेखाओं का फल

33

22

अँगूठे के मूल में काकपद का फल

34

23

अँगूठे के बीच में यवों का फल पुरुष की पत्नियाँ और

35

24

स्त्रियों के पति बतानेवाली रेखाएँ

36-37

25

छोटी अँगुली के मूल की रेखाओं का फल

38-39

26

धर्म-रेखा

40

27

मार्गण-रेखा

41

28

व्रत-रेखा

42

29

भौरी-फल

43

30

शंख-फल

44

31

नखों के स्वरूप और रंग का फल

45

32

मल्ल, पद्य आदि चिहों का फल

46-52

33

हाथ के बीच में काकपद का फल

53

34

बहुरेखा तथा बिना रेखावाले हाथ का फल

54

35

परोपकारी हाथ के लक्षण

55

36

सूची व अग्निशिखा चिह्न का प्रभाव

56

37

जीवरेखा के कुलरेखा से मिल जाने का फल

57

38

हाथ के स्वरूप का फल

58-59

39

आचार्य, उपाध्याय व सूरि बतानेवाली रेखा

60

40

ग्रन्थ लिखने का उद्देश्य

61

Sample Page

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories