मंत्र मधुवन: Mantra Madhuvan

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Item Code: NZA832
Author: Mridula Trivedi, T. P. Trivedi
Publisher: Alpha Publications
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 2013
ISBN: 8179480445
Pages: 436
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 630 gm
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Book Description

संक्षिप्त परिचय

श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश की प्रथम पक्ति के ज्योतिषशास्त्र के अध्येताओं एव शोधकर्ताओ में प्रशंसित एवं चर्चित हैं। उन्होने ज्योतिष ज्ञान के असीम सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न अन्वेषित कर, उन्हें वर्तमान मानवीय संदर्भो के अनुरूप संस्कारित तथा विभिन्न धरातलों पर उन्हें परीक्षित और प्रमाणित करने के पश्चात जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास तथा परिश्रम किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने देशव्यापी विभिन्न प्रतिष्ठित एव प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओ मे प्रकाशित शोधपरक लेखो के अतिरिक्त से भी अधिक वृहद शोध प्रबन्धों की सरचना की, जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, प्रशंसा, अभिशंसा कीर्ति और यश उपलव्य हुआ है जिनके अन्यान्य परिवर्द्धित सस्करण, उनकी लोकप्रियता और विषयवस्तु की सारगर्भिता का प्रमाण हैं।

ज्योतिर्विद श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश के अनेक संस्थानो द्वारा प्रशंसित और सम्मानित हुई हैं जिन्हें 'वर्ल्ड डेवलपमेन्ट पार्लियामेन्ट' द्वारा 'डाक्टर ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट द्वारा देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद' तथा 'सर्वश्रेष्ठ लेखक' का पुरस्कार एव 'ज्योतिष महर्षि' की उपाधि आदि प्राप्त हुए हैं 'अध्यात्म एवं ज्योतिष शोध सस्थान, लखनऊ' तथा ' टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी, दिल्ली' द्वारा उन्हे विविध अवसरो पर ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास ज्योतिष वराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्य विद्ममणि ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एव ज्योतिष ब्रह्मर्षि ऐसी अन्यान्य अप्रतिम मानक उपाधियों से अलकृत किया गया है

श्रीमती मृदुला त्रिवेदी, लखनऊ विश्वविद्यालय की परास्नातक हैं तथा विगत 40 वर्षों से अनवरत ज्योतिष विज्ञान तथा मंत्रशास्त्र के उत्थान तथा अनुसधान मे सलग्न हैं। भारतवर्ष के साथ-साथ विश्व के विभिन्न देशों के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं श्रीमती मृदुला त्रिवेदी को ज्योतिष विज्ञान की शोध संदर्भित मौन साधिका एवं ज्योतिष ज्ञान के प्रति सरस्वत संकल्प से संयुत्त? समर्पित ज्योतिर्विद के रूप में प्रकाशित किया गया है और वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सह-संपादिका के रूप मे कार्यरत रही हैं।

संक्षिप्त परिचय

श्री.टी.पी त्रिवेदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी एससी. के उपरान्त इजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की एवं जीवनयापन हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद मे सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने के साथ-साथ आध्यात्मिक चेतना की जागृति तथा ज्योतिष और मंत्रशास्त्र के गहन अध्ययन, अनुभव और अनुसंधान को ही अपने जीवन का लक्ष्य माना तथा इस समर्पित साधना के फलस्वरूप विगत 40 वर्षों में उन्होंने 460 से अधिक शोधपरक लेखों और 80 शोध प्रबन्धों की संरचना कर ज्योतिष शास्त्र के अक्षुण्ण कोष को अधिक समृद्ध करने का श्रेय अर्जित किया है और देश-विदेश के जनमानस मे अपने पथीकृत कृतित्व से इस मानवीय विषय के प्रति विश्वास और आस्था का निरन्तर विस्तार और प्रसार किया है।

ज्योतिष विज्ञान की लोकप्रियता सार्वभौमिकता सारगर्भिता और अपार उपयोगिता के विकास के उद्देश्य से हिन्दुस्तान टाईम्स मे दो वर्षो से भी अधिक समय तक प्रति सप्ताह ज्योतिष पर उनकी लेख-सुखला प्रकाशित होती रही उनकी यशोकीर्ति के कुछ उदाहरण हैं-देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद और सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान एव पुरस्कार वर्ष 2007, प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट तथा भाग्यलिपि उडीसा द्वारा 'कान्ति बनर्जी सम्मान' वर्ष 2007, महाकवि गोपालदास नीरज फाउण्डेशन ट्रस्ट, आगरा के 'डॉ मनोरमा शर्मा ज्योतिष पुरस्कार' से उन्हे देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी के पुरस्कार-2009 से सम्मानित किया गया ' टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा अध्यात्म एव ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा प्रदत्त ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास, ज्योतिष वाराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्यविद्यमणि, ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एवं ज्योतिष ब्रह्मर्षि आदि मानक उपाधियों से समय-समय पर विभूषित होने वाले श्री त्रिवेदी, सम्प्रति अपने अध्ययन, अनुभव एव अनुसंधानपरक अनुभूतियों को अन्यान्य शोध प्रबन्धों के प्रारूप में समायोजित सन्निहित करके देश-विदेश के प्रबुद्ध पाठकों, ज्योतिष विज्ञान के रूचिकर छात्रो, जिज्ञासुओं और उत्सुक आगन्तुकों के प्रेरक और पथ-प्रदर्शक के रूप मे प्रशंसित और प्रतिष्ठित हैं। विश्व के विभिन्न देशो के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं।

ग्रन्थ-परिचय

प्रबुद्ध पाठको और जिज्ञासुओं की शाबर मन्त्र' शास्त्र से सम्बन्धित भ्रान्ति और भटकाव के अन्धकार को निर्मूल करने के उददेश्य से शाबर मन्त्रों पर केन्द्रित बहुप्रतीक्षत, प्रामाणित कृति मन्त्र मधुवन की संरचना सम्पन्न हुई है। बहुप्रतीक्षित, प्रामाणिक कृति मन्त्र मधुवन की संरचना सम्पन्न हुई है।

मन्त्र मधुवन उन सशक्त, शाश्वत, सारस्वत संकल्पों का साकार स्वरूप है जो विभिन्न विषयों पर साठ से भी अधिक शोध संरचनाओं के लेखक के हृदय में, शाबर मन्त्र के अपूर्ण एवं अपरिपक्व ज्ञान के कारण अंकुरित हुए थे। वैदिक मन्त्रों के उच्चारण एवं दुष्कर प्रक्रिया से अनभिज्ञ अधिकांश साधको के लिए शाबर मन्त्र का जप विधान, सर्वोपयोगी सर्वसुलभ, सर्वहितकारी तथा सुगम मार्ग है जो भूतभावन भगवान शंकर के आशीष सुधा से प्लावित और अभिसिंचित हुआ है एवं जिसका निष्ठायुक्त अनुसरण, अनुकरण, समस्त प्रयोजनों की शीघ्र संसिद्धि करता है।

वैदिक मन्त्रों की श्रेष्ठता, उपयोग एव महत्त्व को सर्वभाँति सुरक्षित करने के उद्देश्य से देवाधिदेव महादेव भगवान शकर ने उन्हें कीलित किया था। महामंत्र गायत्री भी शापग्रस्त है अत: उत्कीलन के विधान की सम्यक् रूप से सम्पन्नता के उपरान्त ही वैदिक मन्त्रों के सविधि जप द्वारा कामना की सम्पूर्ति सम्भव है शाबर मन्त्र तो कीलित हैं, ही शापग्रस्त हैं और ही शाबर मन्त्रों के जप विधान में कोई विशेष एवं क्लिष्ट प्रक्रिया का प्रसंग सन्निहित है शाबर मन्त्र जप, सुगम और सहज है तथा त्वरित फल प्रदान करके साधक की साधना और आस्था को समुष्ट करता है

मन्त्र मधुवन मे समस्त सम्भावित समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने की सार्थक चेष्टा की गई है मन्त्र मधुवन के विभिन्न अध्यायों में विपुल धन समृद्धि, सुखद दाम्पत्य जीवन, विवाह में व्यवधान एवं विसंगतियों का शमन, वशीकरण उच्चाटन, विद्वेषण न्यायालय में विजय, दृष्टि दोष का निर्मूलन, शत्रुओं का विनाश, संतति सुख, समुचित शिक्षा एवं बुद्धि का विकास, बन्धन मुक्ति, आत्मरक्षा की सृष्टि, क्लेश-क्रोध आदि से मुक्ति तथा आजीविका एव व्यापार का मार्ग आदि विषयों पर अनेक बहुपरीक्षित, प्रशंसित, दीर्घकाल से प्रतीक्षित एवं सर्वभाँति सुरक्षित सिद्ध मन्त्रों का समायोजन किया गया है जो नि: सन्देह सभी पाठकों और साधकों के प्रयोजनों की सिद्धि कामना पूर्ति हेतु प्रबल आधारसेतु सिद्ध होगा।

पुरोवाक्

त्वां मुक्तामय सर्व भूषण धरौ शुक्लाम्बराडम्बरां

गौरी गौरि सुधां तरंगधवलामालोक्य हत्पंकजे

वीणा पुस्तक मौक्तिकाक्ष वलय श्वेताब्ज वल्गत्करां,

स्यात् : शुचिवृत - चक्र रचना चातुर्य चिन्तामणि ।।

अर्थ: मोतियों के आभूषणों से मंडित, श्वेतवस्त्रधारिणी, श्वेत सुधा तरंग जैसी उज्ज्वल एवं वीणा, पुस्तक, मौक्तिक, अक्षमाला तथा श्वेत-कमल से सज्जित, चार भुजाओं वाली (हे देवी!) तुमको हृदय पंकज में देखकर, कौन-सा साधक उत्तम काव्य रचना के चातुर्य में दक्ष नहीं होता? अर्थात् साधक उत्तम काव्य रचना में चतुर हो जाता है

'मंत्र मधुवन', समस्त शाबर मंत्रों में रुचि प्रदर्शित करने वाले साधकों के लिए एक ऐसा मथ है जो सम्बन्धित पाठकों के भ्रम एवं शंकाओं का समुचित समाधान तो करेगा ही, साथ ही उनके हृदय में उपजती जिज्ञासाओं का उत्तर भी प्रस्तुत करेगा। अभिलाषा तथा कामना की सृष्टि एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे दृष्टि एवं दिशा प्रदान करके दैदीप्यमान करने का उत्तरदायित्व मंत्र मधुवन ने स्वीकार किया है। वैदिक मंत्रों के अशुद्ध उच्चारण एवं साधना की क्लिष्ट प्रक्रिया की अपेक्षा शाबर मंत्रशास्त्र तथा तत्संबंधी जपविधान अपेक्षाकृत सहज, सुगम और सरल है जो सामान्य जन की साधना सीमा के अन्तर्गत है। सामान्यत: वैदिक मंत्र की जप की दुष्कर प्रक्रिया, पौराणिक और लौकिक मंत्रों का संदिग्ध उच्चारण साधकों के मन में, अभीष्ट संसिद्धि के प्रति संदेह अथवा शंका उत्पन्न करता है। कतिपय साधक ही संस्कृत के सम्यक् संज्ञान के बल पर, मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करने में समर्थ होते हैं और अधिकांश जिज्ञासु तो संस्कृत के ज्ञान से अनभिज्ञ है, उनके लिए शाबर मंत्रशास्त्र का अनुकरण सहज साधना का सुगम मार्ग है। शाबर मंत्रों द्वारा मनोभिलाषा की पूर्ति, होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के समतुल्य है जिसका, उपयुक्त औषधि प्राप्त होने पर, आश्चर्यचकित कर देने वाला त्वरित प्रभाव होता है। मंत्रों का चयन, बुद्धिमत्ता और सतर्कतापूर्वक करना अनिवार्य है। पुस्तक से देखकर, स्वयं मंत्र चयन करके, उसके जप का अनुकरण और अभ्यास अनुपयुक्त और अपूर्ण है। हमारा परामर्श है कि शाबर मंत्र के जप से पूर्व, इस विषय के किसी मर्मज्ञ से परामर्श प्राप्त कर लेना ही हितकर और लाभप्रद है। मंत्र विज्ञान की शक्ति-साधना द्वारा उपयुक्त आकांक्षाओं और प्रयोजनों की संसिद्धि, हमारे लेखन का केन्द्र बिन्दु रहा है। इसी उद्देश्य की अभिपूर्ति हेतु हमने मंत्र मंथन, मंत्र मंजूषा, मंत्र मंजरी, समृद्धि सुधा, संतान सुख: सर्वांग चिन्तन, विवाह विमर्श, शनि शमन, ऐन इनसाइट इनटू कुजादोष, शत्रु शमन, कालसर्पयोग : शोध संज्ञान एवं फोरटेलिंग विडोहुड आदि विस्तृत कृतियों की संरचना के दायित्व के पूर्ण निर्वहन में पर्याप्त उद्यम एवं सतर्क चेष्टा की है जिसे प्रबुद्ध पाठकों के मध्य अभिराम लोकप्रियता एवं अभिशंसा निरंतर प्राप्त हो रही है, जिनके अनुकरण से लाखों साधकों के प्रयोजनों की सिद्धि हुई और उनकी असंभव प्रतीत होने वाली अभिलाषाओं को साकार स्वरूप प्राप्त हुआ। संस्कृत के ज्ञान से अनभिज्ञ विचारवान पाठकों, जिज्ञासुओं और आगन्तुकों के बढ़ते हुए आग्रह ने ही शाबर मंत्र शास्त्र के सम्यक् संज्ञान को जनसामान्य से परिचित कराने तथा उनकी भावना के प्रवाह को समुचित दिशा और गति प्रदान करने हेतु 'मंत्र मधुवन' का लेखन संभव हो सका।

मंत्र मधुवन के लेखन की प्रेरणा, प्रथम बार प्रयाग से प्रकाशित .शाबर मंत्र संग्रह के विभिन्न अंकों को देखकर प्राप्त हुई और इस विषय में -हमारे ज्ञान को प्रथम धरातल प्रदान किया मंत्र मधुवन में, श्री यशपाल जी की रचनाओं में उल्लिखित शाबर मंत्र की व्याख्या, किंचित् संशोधन के साथ, यथावत् प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है, जो अत्यन्त सुगम और सुरुचिपूर्ण है

शाबर मन्त्र की आवश्यकता क्यों पड़ी, यह जानना भी अनिवार्य है। हमारे शास्त्रों में ऋषि-मुनियों ने जिन मन्त्रों का उल्लेख किया है, उनका उत्कीलन किए बिना उपयुक्त फल नहीं प्राप्त होता है। उत्कीलन के विधान से प्राय: सामान्य साधक अनभिज्ञ होते है तथा मन्त्र जप निरन्तर करते रहने के उपरान्त भी उन्हें अपेक्षित फल और लाभ नहीं प्राप्त होता।

अनुभूति है कि कलिकाल के प्रारम्भ में भूतभावन भगवान शंकर ने प्राचीन 'मन्त्र, तन्त्र, शास्त्र' के सभी मन्त्रों तथा तन्त्रों को इस उद्देश्य से कीलित कर दिया था कि कलियुग के विचारहीन मनुष्य उनका दुरुपयोग कर सकें। महामन्त्र गायत्री भी ऋषियों द्वारा शापग्रस्त हुआ तथा उसके लिए भी उत्कीलन अनिवार्य है। अन्य मन्त्रों तथा तन्त्रों के लिए भी उत्कीलन की विभिन्न विधियों का प्रावधान है। विभिन्न शास्त्रीय मन्त्रों की उत्कीलन विधियों का वर्णन मन्त्र से सम्बधिन्त शास्त्रीय ग्रथों में उल्लिखित है। शास्त्रीय-मन्त्रों के कीलित हो जाने पर लोक-हितैषी सिद्ध-पुरुषों ने जन कल्याणार्थ समय-समय पर लोकभाषा के मन्त्रों की संरचना की। ऐसे मन्त्रों को ही 'शाबर-मन्त्र' की संज्ञा प्रदान की गयी है।

'शाबर-मन्त्रों' की संरचना विभिन्न लोक भाषाओ में समय-समय पर की जाती रही है जिनका साधना-विधान अत्यन्त सुगम और सहज है तथा इन मन्त्रों में अशुद्धि, अनियमितता अथवा त्रुटि होने पर भी विशेष हानि की संभावना नहीं होती है।

'शाबर' मन्त्रों-तन्त्रों के प्रसार, प्रचार एवं विस्तार में नाथ-योगियों का योगदान उल्लेखनीय है इसी कारण से अनेक 'शाबर-मन्त्रों' में गुरु गोरखनाथ की दुहाई वाक्य का उपयोग किया गया है। इनके अतिरिक्त इस्माइल जोगी, लोना चमारिन आदि सिद्ध साधक भी शाबर मन्त्रों के जनक एवं प्रवर्तक स्वीकारे गये है।

'शाबर' मन्त्रों-तन्त्रों के जन्मदाता भी महान् तांत्रिक भगवान् शंकर के भक्त थे, अत: उनके द्वारा विरचित मन्त्रादि को भगवान् शंकर ने सफल होने एवं शीघ्र प्रभाव प्रदान करने की शक्ति प्रदान की, यह मान्यता प्रचलित है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी 'अनमिल आखर अरथ जापू प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू। 'कहकर शाबर मन्त्रों के महत्व को स्वीकारा है शाबर मन्त्रों के संग्रह ग्रन्थों के नाम पर वर्तमान में अनेक पुस्तकें बाजार में उपलब्ध है, परन्तु उनमें से अधिकांश अशुद्ध, असंगत एवं दिग्भ्रमित करने वाली ही हैं। उनमें उल्लिखित त्रुटिपूर्ण प्रयोग साधक के लिए लाभ के स्थान पर हानिकारक ही सिद्ध हो-सकते हैं अत: शाबर मन्त्र की साधना से पूर्व मन्त्र की शुद्धता तथा सार्थकता का संज्ञान प्राप्त कर लेना अनिवार्य है

सर्वप्रथम प्रयाग स्थित कल्याण मन्दिर प्रकाशन ने इस ओर प्रयास किया और कौल-कल्पतरु चण्डी के विशेषांकों के रूप में शाबर मन्त्र संग्रह का प्रथम भाग 16 मार्च, 1991 को तथा द्वितीय भाग 15 जनवरी, 1992 को प्रकाशित हुआ। शाबर मन्त्र संग्रह के अन्य भाग उसके उपरान्त प्रकाशित हुए और होते रहे। इन भागों में शाबर मन्त्र विषयक जो सामग्री प्रकाशित हुई है, उस पर एक विहंगम दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि लोकप्रिय शाबर मन्त्र इधर-उधर संपूर्ण भारत में कितने बिखरे हुए हैं। शाबर मन्त्रों की प्रामाणिकता, उपयोगिता और विशिष्टता हेतु अग्रांकित श्लोक, जो 'पुरश्चर्यार्णव' के पृष्ठ 611 पर मेरु-तन्त्र में उद्धृत हे, के अध्ययन से शाबर मन्त्र के पुरश्चरण की विधि का ज्ञान होता है।

पुरोवाक्

(द्वितीय संस्करण)

'मंत्र मधुवन' का प्रथम संस्करण जुलाई, 2007 में प्रकाशित हुआ था चार वर्ष से भी अल्प समय में प्रथम संस्करण की सभी प्रतियाँ जिज्ञासु पाठकों के अध्ययन हेतु उनके कर-कमलों तक पहुँच गयीं। संप्रति, इलेक्ट्रानिक मीडिया के इस युग में पठन-पाठन में सभी की अभिरुचि प्रभावित हुई है। पुस्तकें क्रय करना और उन्हें पढ़कर आत्मसात् करना अब प्रबुद्ध ज्योतिष प्रेमियों तक ही सीमित है इस समय दूरदर्शन के प्रत्येक चैनल पर कोई कोई भविष्यवक्ता ग्रहों की गति-मति, स्थिति एवं दिशा तथा दशा का मंथन और चिंतन प्रस्तुत करके दर्शकों के मन-मस्तिष्क में अभिनव अभिलाषाओं तथा आकांक्षाओं की संसिद्धि के मार्ग प्रशस्त करने की चेष्टा करता है, जिसे दर्शकगण गंभीरता के साथ देखते हैं और संदर्भित तथ्यों को अपने जन्मांगों के आधार पर समझने का प्रयास करते है। ज्ञातव्य है कि दूरदर्शन तथा अन्य इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से प्रसारित होने वाला भविष्य कथन और ज्योतिष अध्ययन, एक संक्षिप्त सीमा में आबद्ध है जिसका यहाँ उल्लेख करना उपयुक्त नहीं प्रतीत होता।

ऐसी सामाजिक अभिरुचि में ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्धित पुस्तकों के अध्ययन के प्रति पाठकगण स्वभावत: उदासीन होते जा रहे है। हमारे लिए हर्ष और उल्लास का विषय है कि ऐसी स्थिति में भी हमारी पुस्तकों की लोकप्रियता में निरन्तर वृद्धि की संसिद्धि हुई है, जिसके फलस्वरूप हमारी कई कृतियों के अनेक संस्करण प्रकाशित हौ चुके हैं ' मंत्र मधुवन ' शाबर मंत्रों पर केन्द्रित कृति है, जिसमें प्रकाशित मंत्रों के महज अनुकरण से ही सहस्त्रों पाठकगण लाभान्वित हुए और उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण हुयीं समय-समय पर हमारे पास जिज्ञासु पाठकगण आए और उन्होंने इस सत्य तथ्य मै हमें अवगत कराया कि ' मंत्र मधुवन ' में उल्लिखित वशीकरण मंत्र का सहज भाव से जप करने पर उन्हें सफलता प्राप्त हुई और जिस बालिका के प्रति उनके मन में प्रेम अंकुरित हो उठा था, अन्तत: वह उनकी पत्नी बन गई ऐसी ही अनेक आकांक्षाएँ, अभिलाषाएँ और अपेक्षाएँ शाबर मंत्रों के जप से सुगमतापूर्वक साकार स्वरूप में रूपान्तरित हुयीं। किसी को सतर का सुख प्राप्त हुआ, तो किसी का पति दिशाभ्रमित हो गया था, वह लज्जित होकर पुन: अपनी धर्मपत्नी के पास वापस गया। अन्यान्य कामनाओं की संसिद्धि करने वाले अनेक अनुभूत और अद्भुत मंत्र प्रयोग 'मंत्र मधुवन' समायोजित हैं, जो अनेक अवसरों पर परीक्षित, प्रतिष्ठित और प्रशंसित हुए है।

'मंत्र मधुवन' के इस द्वितीय संस्करण को पूर्णत: परिमाजित और संशोधित किया गया है पूर्व संस्करण में अनेक त्रुटियाँ और कमियाँ शेष थीं जिन्हें इस संस्करण में रूपान्तरित करके सटीक मंत्र प्रयोग, उपयुक्त शीर्षक के अन्तर्गत क्रमबद्ध प्रकार से, विधिविधान सहित प्रस्तुत किये गये है, जिससे पाठकगण लाभान्वित होंगे।

हम कृतज्ञ है, अपने सभी पाठकों और ज्योतिष प्रेमियों के, जिन्हें शाबर मंत्र प्रयोग में आस्था और विश्वास है। जिन्होंने इस कृति में प्रकाशित मंत्रों के जप द्वारा अपनी मनोकामनाओं की संसिद्धि का मार्ग प्राप्त किया। धन्यवाद के क्रम में श्री गोपाल प्रकाश तथा श्री सदाशिव तिवारी साधुवाद के पात्र है जिन्होंने 'मंत्र मधुवन' के इस द्वितीय संस्करण को पूर्णत: रूपान्तरित, संशोधित तथा परिमार्जित करने में भरपूर सहयोग प्रदान किया।

'मंत्र मधुवन ' के समस्त पाठकों से निवेदन है कि इस कृति में प्रस्तुत शाबर मंत्रों के अनुकरण के प्रतिफल से वह हमें अवगत कराने की कृपा करें, ताकि शाबर मंत्र के अनुसरण के प्रति अन्य जिज्ञासु पाठकों की आस्था में प्रबलता तथा विश्वास में दृढ़ता समायोजित हो सके। हमें प्रतीक्षा है, अपने समस्त पाठकों की प्रतिक्रिया की जो हमारे परिश्रम का परीक्षाफल भी है और पुरस्कार भी।

 

 

अनुक्रमणिका

 

अध्याय-1

शाबर मंत्र मीमांसा

1

अध्याय-2

मंत्र-संरचना एवं रहस्य

18

अध्याय-3

षट्कर्म संदर्भित आराधनाक्रम

35

अध्याय-4

अभिलाषा सम्पूर्ति

44

अध्याय-5

आत्मरक्षा: अभिनव मंत्र आराधना

94

अध्याय-6

व्याधि विधान: मंत्र विज्ञान

113

अध्याय-7

विपुल धन प्राप्ति हेतु अनुभूत शाबर मंत्र प्रयोग

179

अध्याय-8

मंत्र आराधना: सम्मोहन साधना

198

अध्याय-9

वैवाहिक व्यवधान एवं समाधान

253

अध्याय-10

वंश सृजन एवं संतति जन्म

259

अध्याय-11

आजीविका: नौकरी तथा व्यापार

275

अध्याय-12

उच्चाटन मंत्र प्रयोग

286

अध्याय-13

विद्वेषण एवं विकर्षण

300

अध्याय-14

विद्वता एवं प्रतिभा के समन्वय हेतु अनुष्ठान

308

अध्याय-15

न्यायालय में विजय एवं कथन की पराजय

315

अध्याय-16

पारिवारिक क्लेश शमन एवं सुख सृजन

320

अध्याय-17

अभिचार कर्म: विपरीत प्रभाव प्रक्रिया

326

अध्याय-18

दृष्टि दोष का निरस्तीकरण

339

अध्याय-19

मंत्र शक्ति से प्रेतबाधा निवृत्ति

349

अध्याय-20

शत्रु शमन

374

अध्याय-21

चोरी गई सम्पत्ति की पुन: प्राप्ति

399

अध्याय-22

सफल प्रवास: सुखद यात्रा और आवास

407

अध्याय-23

ग्रह बाधा शमन

409

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