लेखक का परिचय
इस पुस्तक के लेखक के.के.पाठक गत पैंतीस वर्षो से ज्योतिष-जगत में एकप्रतिष्ठित लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं । ऐस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन, टाइम्स ऑफ ऐस्ट्रोलॉजी, बाबाजी तथा एक्सप्रेस स्टार टेलर जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठकों को विद्वान् लेखक का परिचय देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इन पत्रिकाओं के लगभग चार सौ अंकों में कुल मिलाकर इनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं । निष्काम पीठ प्रकाशन, हौजखास नई दिल्ली द्वारा अभी तक इनकी एक दर्जन शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इनकी शेष पुस्तकों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व ''एल्फा पब्लिकेशन'' ने लिया है । ताकि पाठकों की सेवा हो सके । आदरणीय पाठक जी बिहार राज्य के सिवान जिले के हुसैनगंज प्रखण्ड के ग्राम पंचायत सहुली के प्रसादीपुर टोला के निवासी हैं । यह आर्यभट्ट तथा वाराहमिहिर की परम्परा के शाकद्विपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए। इनका गोत्र शांडिल्य तथा पुर गौरांग पठखौलियार है । पाठकजी बिहार प्रशासनिक सेवा में तैंतीस वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात सन् ई० में सरकार के विशेष-सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए ।
''इंडियन कौंसिल ऑफ ऐस्ट्रोलॉजिकल साईन्सेज'' द्वारा सन् में आदरणीय पाठकजी को ''ज्योतिष भानु'' की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । सन् ई० में पाठकजी को ''आर संथानम अवार्ड'' भी प्रदान किया गया ।
ऐस्ट्रो-मेट्रीओलॉजी उपचारीय ज्योतिष, हिन्दू-दशा-पद्धति, यवन जातक तथा शास्त्रीय ज्योतिष के विशेषज्ञ के रूप में पाठकजी को मान्यता प्राप्त है ।
हम उनके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।
प्राक्कथन
इस पुस्तक में ग्रहों का विभिन्न भावों में स्थित होने का फल दिया गया है, जिसका ज्ञान किसी अन्य ज्योतिष ग्रन्थ में अप्राप्य है । भावफल और दशाफल विस्तृत रूप से दिया गया है । यह भी बताया गया है कि एक भावाधिपति का द्वादश भावों में स्थित होने से क्या फल होता हे । इस प्रकार 144 (12x12) योगों के फलों का पूर्ण विवरण दिया गया है । दशाफल के विचार को इतना अधिक महल दिया गया है कि लगभग आधी पुस्तक इसी सम्बन्ध में है । इतनी सूक्ष्मता -और विस्तृत रूप से इस विषय पर किसी अन्य ज्योतिष ग्रन्थ में विचार नहीं किया गया है । इस पुस्तक में ग्रहों के नवांशों, भावों, राशियों आदि में स्थित होने से जो फल होते हैं उनके विश्लेषणात्मक फलादेश करने का अनूठा तरीका बताया गया है । इस कारण यह पुस्तक ज्योतिष मे नवीन प्रविष्ट पाठकों व ज्योतिष के धुरन्धर विद्वानों, दोंनों के लिए अत्यन्त उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी ।
विषय-सूची |
||
1 |
प्रथमेशफलम् |
1 |
2 |
धनेश (द्वितीयेश) फलम् |
9 |
3 |
तृतीयेशफलम् |
17 |
4 |
चतुर्थेशफलम् |
22 |
5 |
पंचमेशफलम् |
28 |
6 |
षन्टेशफलम् |
33 |
7 |
सप्तमेशफलम् |
38 |
8 |
अष्टमेशफलम् |
44 |
9 |
नवमेशफलम् |
52 |
10 |
दशमेशफनम् |
58 |
11 |
एकादश भावेश फल |
64 |
12 |
द्वादश भावेश फल |
67 |
लेखक का परिचय
इस पुस्तक के लेखक के.के.पाठक गत पैंतीस वर्षो से ज्योतिष-जगत में एकप्रतिष्ठित लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं । ऐस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन, टाइम्स ऑफ ऐस्ट्रोलॉजी, बाबाजी तथा एक्सप्रेस स्टार टेलर जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठकों को विद्वान् लेखक का परिचय देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इन पत्रिकाओं के लगभग चार सौ अंकों में कुल मिलाकर इनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं । निष्काम पीठ प्रकाशन, हौजखास नई दिल्ली द्वारा अभी तक इनकी एक दर्जन शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इनकी शेष पुस्तकों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व ''एल्फा पब्लिकेशन'' ने लिया है । ताकि पाठकों की सेवा हो सके । आदरणीय पाठक जी बिहार राज्य के सिवान जिले के हुसैनगंज प्रखण्ड के ग्राम पंचायत सहुली के प्रसादीपुर टोला के निवासी हैं । यह आर्यभट्ट तथा वाराहमिहिर की परम्परा के शाकद्विपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए। इनका गोत्र शांडिल्य तथा पुर गौरांग पठखौलियार है । पाठकजी बिहार प्रशासनिक सेवा में तैंतीस वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात सन् ई० में सरकार के विशेष-सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए ।
''इंडियन कौंसिल ऑफ ऐस्ट्रोलॉजिकल साईन्सेज'' द्वारा सन् में आदरणीय पाठकजी को ''ज्योतिष भानु'' की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । सन् ई० में पाठकजी को ''आर संथानम अवार्ड'' भी प्रदान किया गया ।
ऐस्ट्रो-मेट्रीओलॉजी उपचारीय ज्योतिष, हिन्दू-दशा-पद्धति, यवन जातक तथा शास्त्रीय ज्योतिष के विशेषज्ञ के रूप में पाठकजी को मान्यता प्राप्त है ।
हम उनके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।
प्राक्कथन
इस पुस्तक में ग्रहों का विभिन्न भावों में स्थित होने का फल दिया गया है, जिसका ज्ञान किसी अन्य ज्योतिष ग्रन्थ में अप्राप्य है । भावफल और दशाफल विस्तृत रूप से दिया गया है । यह भी बताया गया है कि एक भावाधिपति का द्वादश भावों में स्थित होने से क्या फल होता हे । इस प्रकार 144 (12x12) योगों के फलों का पूर्ण विवरण दिया गया है । दशाफल के विचार को इतना अधिक महल दिया गया है कि लगभग आधी पुस्तक इसी सम्बन्ध में है । इतनी सूक्ष्मता -और विस्तृत रूप से इस विषय पर किसी अन्य ज्योतिष ग्रन्थ में विचार नहीं किया गया है । इस पुस्तक में ग्रहों के नवांशों, भावों, राशियों आदि में स्थित होने से जो फल होते हैं उनके विश्लेषणात्मक फलादेश करने का अनूठा तरीका बताया गया है । इस कारण यह पुस्तक ज्योतिष मे नवीन प्रविष्ट पाठकों व ज्योतिष के धुरन्धर विद्वानों, दोंनों के लिए अत्यन्त उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी ।
विषय-सूची |
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1 |
प्रथमेशफलम् |
1 |
2 |
धनेश (द्वितीयेश) फलम् |
9 |
3 |
तृतीयेशफलम् |
17 |
4 |
चतुर्थेशफलम् |
22 |
5 |
पंचमेशफलम् |
28 |
6 |
षन्टेशफलम् |
33 |
7 |
सप्तमेशफलम् |
38 |
8 |
अष्टमेशफलम् |
44 |
9 |
नवमेशफलम् |
52 |
10 |
दशमेशफनम् |
58 |
11 |
एकादश भावेश फल |
64 |
12 |
द्वादश भावेश फल |
67 |