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बिहारी का काव्य सौष्ठव- Bihari Ka Kavya Saushthav (Collection of Poetry)

$24
Specifications
Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur
Author Kalpana Patel
Language: Hindi
Pages: 95
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 250 gm
Edition: 2015
ISBN: 978818857189
HBM370
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Book Description

भूमिका

बिहारी रीतिकाल के श्रेष्ठ श्रृंगारी कवि है। हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के बहुचर्चित कवियों में बिहारी का नाम अत्यन्त लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध है। बिहारी की काव्यकला का निरूपण करना मेरा अभिप्रेत है। जब मुझे एम. फिल. में प्रवेश मिला और लघु शोध प्रबंध लिखने का दायित्व सौंपा गया तो मैंने बिहारी के काव्य सौष्ठव के बारे में ही विचार किया। मेरे परम आदरणीय गुरु डॉ. अर्जुन भाई तड़वी जी ने भी इस विषय के बारे में मार्गदर्शन दिया। श्रद्धेय गुरुवर अजय पटेल साहब के मार्गदर्शन में मुझे यह कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्हीं के निर्देशन में मैंने "बिहारी का काव्य सौष्ठव" शीर्षक से कार्य प्रारम्भ किया।

इस लघु शोध प्रबन्ध को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित शीर्षकों में विभाजित करने का प्रयत्न किया है- प्रथम अध्याय में मैंने बिहारी का जन्म एवं उनकी जीवन सम्बन्धी जानकारी देने का प्रयास किया है। साथ ही उनकी 'सतसई' की रचना और प्रेरणा से जुड़े तथ्यों का आकलन किया है, द्वितीय अध्याय में बिहारी युगीन सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और साहित्यिक परिस्थितियों की चर्चा की गई है। तीसरे अध्याय में प्राकृत भाषा के कवि हाल की 'गाहा सतसई' से लेकर संस्कृत एवं तत्पश्चात् हिन्दी में लिखे गये विभिन्न सतसई-ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय देकर इसमें बिहारी सतसई के स्थान को प्रतिष्ठित करने का विनम्र प्रयत्न किया है। चौथे अध्याय में कतिपय काव्य-संप्रदायों की चर्चा करते हुए बिहारी के ध्वनिवादी होने की बात को स्वीकार किया है। पाँचवें अध्याय में बिहारी के मुक्तक कार्य की समीक्षा करते हुए उनकी श्रेष्ठता को सराहा है। छठे अध्याय में 'बिहारी सतसई' के शृंगारिक, विषयों का वैविध्य एवं कला पक्ष की उत्कृष्टता जैसे कारणों की चर्चा की है, जिससे साहित्य जगत में उनकी 'सतसई' इतनी लोकप्रियता प्राप्त हुई। सातवें अध्याय में बिहारी के प्रेम निरूपण और नारी सौंदर्य के विभिन्न विषय-प्रसंगों का चित्रण एवं विवेचन किया गया है। आठवें अध्याय में रसराज शृंगार का परिचय देते हुए संयोग श्रृंगार के अन्तर्गत नायिका-सौंदर्य, नायक-नायिकाओं की चर्चायें, हास-परिहास, पड ऋतु वर्णन, नायिका-भेद आदि विषयों पर लिखे गये दोहों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया गया है। नौवें अध्याय में विप्रलम्भ शृंगार की महत्ता दिखाते हुए विप्रलम्भ के दोहों और वियोग की विभिन्न दशाओं के संदर्भ में बिहारी के दोहों का अनुशीलन किया है। दसवें अध्याय में विहारी के कर्तव्य-अकर्तव्य, उचित अनुचित, करणीय-अकरणीय आदि को लेकर रचे गये नीति विषयक दोहों का जायजा लिया गया है, ग्यारहवें अध्याय में प्रकृति के विभिन्न रूपों, ऋतुओं, प्राकृतिक उपमानों आदि के संदर्भ में बिहारी के प्रकृति चित्रण का अनुशीलन किया गया है, बारहवें अध्याय में रीतिसिद्ध कवि बिहारी के व्यक्ति-विषयक दोहों की चर्चा करते हुए उनकी भक्ति-भावना के तथ्यों एवं प्रसंगों की समीक्षा की गई है। अन्तिम अध्याय में भाषा के विभिन्न रूपों, विशेषताओं और शैलीगत विविधता का विश्लेषण किया गया है।

अन्त में सर्वप्रथम मैं हे. उ. गु. यूनि. पाटण एम. फिल. विभाग के अध्यक्ष डॉ. अर्जुन तडवी का आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने मुझे एम. फिल. में प्रवेश देकर लघु शोध प्रबन्ध लिखने की अनुमति प्रदान की। इसके पश्चात् मैं अपने मार्गदर्शक आदरणीय डॉ. अजय पटेल साहब की आभारी हूँ जिन्होंने मुझे समय-समय पर उचित परामर्श देकर इस लघु-शोध प्रबंध को लिखने में मुझे सही दिशा दिखाई। जिनकी ऋणी मैं सदा रहूँगी वे हैं मेरी प्यारी माँ और पापा, सास-ससुर, भाई-बहिन और विशेष रूप से मेरे पति, जिन्होंने हमेशा मुझ पर विश्वास किया है, मेरे कम होते जा रहे आत्मविश्वास को बढ़ाया है। मुझे हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है और धीरज रखना, ईश्वर पर श्रद्धा रखना सिखाया है। इसके बाद मैं 'चिन्तन प्रकाशन' कानपुर के संचालक श्री रामसिंह खंगार का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने कृपापूर्वक इस पुस्तक को प्रकाशित कर मेरे ऊपर उपकार किया है। अपने ज्ञान और समझ के अनुसार मैंने इस लघु शोध प्रबंध को पूरी तरह से सफल बनाने का प्रयास किया है।

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