पुस्तक के बारे में
भविष्यकथन की युक्तियां अवश्य आजमानी चाहिए। समय बीतने के साथ भविष्यकथन की विभिन्न तकनीकों का अनुभव बढ़ेगा और तुम अपनी युक्तियां भविष्यकथन मे अपनाने लगोगे।
किसी भी ज्योतिषी को चुनौतियोंको तरोताजा रचना चाहिए। अर्थात् उनका उपयोग करते रहना चाहिए। आरम्भ में कोई नई खोज खतरे वाली प्रतीत हो सकती है परन्तु उसकी सफलता के बाद बहुत उत्साहजनक लगेगी। हर सफल ज्योतिषी भविष्य कथन में चुनौती लेता है क्योंकि जीवन परिवर्तनशील और चुनौती भरा है। आज की कई समस्याएँ पूर्णरूप से नई हैं और हमारे जीवन की बदली हुई परिस्थितियों में अनुत्तरित रह जायेंगी। यदि हम उन्हें सुलझाने के लिए नई विधियाँ नही अपनाएंगे। इन सबको समझ लेने का दावा करना ज्योतिष दृष्टि से गलत है। गहन और अनुभूत ज्योतिषीय तकनीकों के बावजूद भविष्य कथन की चुनौती न लेना। ज्योतिषीय आत्मविकास से इनकार करना है परन्तु जैसा कि इस पुस्तक में दिखाया गया है कि भविष्यकथन में चुनौती अवश्य लेनी चाहिए। भविष्यकथन की यही चुनौतियां अब सही सिद्ध हो चुकी हैं।
अट्ठारह ऋषी जिन्होंने हमें ज्योतिष दिया, कई और जिनका नाम कम विख्यात है, इन्होंने हिन्दू ज्योतिष को भविष्यकथन की सबसे उन्नत तकनीकों का योगदान दिया है।
समय-समय पर मैं सम्पूर्ण भारत में कई ज्योतिषियों से मिला जो इनमें से कुछ तकनीकों का प्रयोग किया करते थे जिनका कि किसी किताब में विस्तृत व्याख्या से रहित संकेत मात्र दिया गया हो। मैंने उनका उपयोग किया और अपने अनुभव द्वारा कुछ जोडा या नवीवीकरण किया।
दो शब्द
मैं श्री प्रताप मेनन को धन्यवाद कहना चाहूँगा जिन्होंने मुझे मेरे उन पूर्व प्रकाशितलेखों की फोटो प्रतियाँ उपलब्ध करवाई जिन्हें मैंने इस पुस्तक में शामिल किया है।
इनमें से कई लेख जिन्हें मैंने अपने सेवाकाल के दौरान शासकीय कार्य से अवकाश के समय अपने स्टेनोग्राफर की सहायता से लिखा था विभिन्न कारणों से अप्राप्य थे।
प्रथम कारण थे स्वर्गीय आर. संथानम जिन्होने इन लेखों को अपनी पत्रिका टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी के विभिन्न अंकों में इस्तेमाल किया, किंतु उन अंकों की प्रतियाँ मुझे भेजने का अपना वचन नहीं निभाया। संथानम एक चालबाज व्यक्ति थे जिन्होंने दूसरों के साथ विश्वासघात किया। वह इतना नीचे गिर गये कि पूर्व में जिन लोगों ने उन पर उपकार किये थे उन्हीं की उन्होंने तीखी आलोचना की। संथानम को होटल में जो नौकरी मिली थी वह उन्हें मेरे एक मित्र द्वारा मेरे सिफारिश करने पर ही दी गयी थी। बाद में उनका नया अधिकारी आया जिसे मैं नहीं जानता था । उसे भविष्यवक्ता के रूप में संथानम की निम्नस्तरीय योग्यता के बारे में पता चला और उसने होटल में आने वाले विदेशियों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया। इस पद पर उनकी नियुक्ति में मेरी भूमिका थी । इसे बचाने के लिये उन्हें कठोर परिश्रम करना चाहिये था।
एक पत्रकार के रूप में आर. संथानम का कैरियर उसी समय प्रारंभ हो सका जब मैंने उनकी मदद की । उस समय तक मैं उनसे मिला भी नहीं था। एक सिख मेय अधिकारी ने, जो कि सिंडीकेट बैंक की एक शाखा में कार्यरत थे एक ज्योतिषीय पत्रिका प्रारंभ करने का निर्णय लिया और मुझसे इसका संपादक बनने का निवेदन किया । उनके इस निवेदन को उनके बार -बार के आग्रह के उपरांत भी मैंने स्वीकार नहीं किया । मेरे पास इसके कई कारण थे, मैं अभी भी सरकारी सेवा में था। किसी पत्रिका का संपादक नहीं बन सकता था । इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति एक ज्योतिषीय पत्रिका शुरू करने के लिये कुछ निवेश करता है तो पहले उसे? ज्योतिष सीखना चाहिये। उसे दिल्ली के ज्योतिष -पुस्तकों के उन प्रकाशकों की? नहीं होना चाहिये जिन्हें ज्योतिष का कोई-ज्ञान नहीं है । उनके लिये ज्योतिष की? बेचने अथवा जूते बेचने में कोई अंतर नहीं है।
एक बार जब इस सिख अधिकारी ने मुझसे संपादक पद के लिये किसी के नाम का सुझाव देने को कहा, तब मैंने उन्हें कहा कि संभवत आर. संथानम इस हेतु उचित ' व्यक्ति हो सकते है । उस समय आर. संथानम कलकत्ता की नौकरी छोड़कर दिल्ली' प्रवास करने लगे थे किन्तु तब तक भी मैं उनसे मिला! नहीं था । वे संथानम से मिले और उन्हें राजी कर लिया । इस पर कृर्तग्ता जाहिर करते संथानम मेरे घर आये और फिर नियमित रूप से आने लगे । और इस प्रकार ज्योतिषीय पत्रिका ' योअर एस्ट्रोलोजर 'प्रारंभ हुई जो कि अब अस्तित्व में नहीं है । इसकी स्थापना से ही हमारे बीच यह मौन सहमति थी कि मैं इसके प्रत्येक अंक के लिये लेख लिखूँगा और अपनी दिल्ली पदस्थापना तक मैंने इसे निभाया भी । कितुं शीघ्र ही संथानम ने अपने मालिक से झगड़ा ऊर लिया और उन पर कोई आरोप लगाए जबकि सिख अधिकारी ने मुझे संथानम के बारे में कुछ बहुत ही अवांछनीय बातें बताई । वास्तविकता को नहीं जानने के कारण मैंने स्वयं को विवाद से दूर रखते हुए उस पत्रिका के लिये लेखलिखना बंद कर दिया। इनमें से एक भी लेख आज मेरे पास नहीं है।
1985 में जब मैं भुवनेश्वर (उड़ीसा) में महालेखाकार के रूप में पदस्थापित न तब आर. संथानम ने मुझे पत्र लिखा कि उन्होंने एक ज्योतिषीय पत्रिका ' दी टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी ' प्रारंभ करने का निर्णय किया है । इस पत्रिका को स्थापित करने हेतु उन्होंने मुझसे नियमित रूप से लेख देने को कहा जो कि मैंने किया । किंतु उन्होने मुझे वे अंक नहीं दिये जहाँ मेरे लेखों का प्रयोग-किया गया था । उनमें से कुछ बाद में मैंने अपने मित्रों के पास देखे । प्रताप मेनन ने उनमें से कुछ लेख मुझे उपलब्ध कराये । हमारे सम्बन्ध बिगड़ने के कारण बाद में ये लेख मैं संथानम से प्राप्त नहीं का सका । संथानम ने मुझसे कुछ महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की कुंडलियाँ इस स्पष्ट आश्वासन के साथ लीं कि वे उनका अपनी पत्रिका के लिये उपयोग नहीं करेंगे क्योंकि वे गोपनीय थीं । किन्तु संथानम ने अपना वचन नहीं निभाया । उन्होंने उनका उपयोग किया और इसने मुझे भारी परेशानी में डाल दिया । मैंने उनमे अपने सभी सम्बन्ध तोड़ लिये हे उन्होंने भी अपनी पत्रिका के माध्यम से मेरी आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ा । संथानम के संक्षिप्त ज्योतिषीय एवं असफल कैरियर में उनकी क्षुद्रता सदैव ही उनके बहेतर निर्णयों पर हावी रही । उन्होंने 1972 में ज्योतिष सीखना प्रारंभ किया और छ:वर्ष पश्चात् स्वयं को इस महत्त्वपूर्ण कैरियर के रास्ते पर उतार दिया जो कि एक गलती थी । इसका परिणाम यह हुआ कि भविष्यवक्ता के रूप में उनका रिकॉर्ड बहुत- ही खराब रहा जो कि एक ज्योतिषीय पत्रिका के संपादक के लिये घातक है । संथानम जैसे कई अन्य ज्योतिषी भी हैं जो कुछ दशकों के गहन अनुभव के बिना ही ज्योतिष पर पाठ्य-पुस्तकें लिखना प्रारंभ कर देते हैं । इसका परिणाम उपयोगी एवं बुद्धिमतापूर्ण पुस्तकें नहीं होती । अपितु ये भी उन पुस्तकों के समान ही नीरस एवं रूढ़िपूर्ण सामग्री का संग्रहण होती हैं जिन पर कि ये आधारित होती हैं । मेरी एक शोध-विद्यार्थी अम्बिका गुलाटी ने इस पुस्तक के पृष्ठावलोकन का प्रस्ताव रखा । उस समय मेरे आँख के मोतियाबिद का ऑपरेशन होना था । उसी ने इसे अंतिम रूप प्रदान करने का निर्णय किया जो कि मैं अपनी आँख की तकलीफ के कारण नहीं कर सकता था।
अन्त में मैं सोसाईटी फॉर वैदिक रिसर्च एण्ड प्रैकि्टस का अत्यन्त आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक को हर स्तर पर आर्थिक सहायता प्रदान की है । वैदिक शास्त्रों के शोध में इस संस्था का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
विषय-सूची |
||
1 |
समर्पण |
3 |
2 |
दो शब्द |
4 |
3 |
नव ग्रह स्तोत्रम् |
7 |
4 |
भूमिका |
9 |
5 |
सहज भविष्यकथन |
18 |
6 |
एक कलाकार परिवार के लिये ज्योतिष |
45 |
7 |
भविष्यकथन |
81 |
8 |
अन्तर्सम्बन्धित प्रारब्ध |
109 |
पुस्तक के बारे में
भविष्यकथन की युक्तियां अवश्य आजमानी चाहिए। समय बीतने के साथ भविष्यकथन की विभिन्न तकनीकों का अनुभव बढ़ेगा और तुम अपनी युक्तियां भविष्यकथन मे अपनाने लगोगे।
किसी भी ज्योतिषी को चुनौतियोंको तरोताजा रचना चाहिए। अर्थात् उनका उपयोग करते रहना चाहिए। आरम्भ में कोई नई खोज खतरे वाली प्रतीत हो सकती है परन्तु उसकी सफलता के बाद बहुत उत्साहजनक लगेगी। हर सफल ज्योतिषी भविष्य कथन में चुनौती लेता है क्योंकि जीवन परिवर्तनशील और चुनौती भरा है। आज की कई समस्याएँ पूर्णरूप से नई हैं और हमारे जीवन की बदली हुई परिस्थितियों में अनुत्तरित रह जायेंगी। यदि हम उन्हें सुलझाने के लिए नई विधियाँ नही अपनाएंगे। इन सबको समझ लेने का दावा करना ज्योतिष दृष्टि से गलत है। गहन और अनुभूत ज्योतिषीय तकनीकों के बावजूद भविष्य कथन की चुनौती न लेना। ज्योतिषीय आत्मविकास से इनकार करना है परन्तु जैसा कि इस पुस्तक में दिखाया गया है कि भविष्यकथन में चुनौती अवश्य लेनी चाहिए। भविष्यकथन की यही चुनौतियां अब सही सिद्ध हो चुकी हैं।
अट्ठारह ऋषी जिन्होंने हमें ज्योतिष दिया, कई और जिनका नाम कम विख्यात है, इन्होंने हिन्दू ज्योतिष को भविष्यकथन की सबसे उन्नत तकनीकों का योगदान दिया है।
समय-समय पर मैं सम्पूर्ण भारत में कई ज्योतिषियों से मिला जो इनमें से कुछ तकनीकों का प्रयोग किया करते थे जिनका कि किसी किताब में विस्तृत व्याख्या से रहित संकेत मात्र दिया गया हो। मैंने उनका उपयोग किया और अपने अनुभव द्वारा कुछ जोडा या नवीवीकरण किया।
दो शब्द
मैं श्री प्रताप मेनन को धन्यवाद कहना चाहूँगा जिन्होंने मुझे मेरे उन पूर्व प्रकाशितलेखों की फोटो प्रतियाँ उपलब्ध करवाई जिन्हें मैंने इस पुस्तक में शामिल किया है।
इनमें से कई लेख जिन्हें मैंने अपने सेवाकाल के दौरान शासकीय कार्य से अवकाश के समय अपने स्टेनोग्राफर की सहायता से लिखा था विभिन्न कारणों से अप्राप्य थे।
प्रथम कारण थे स्वर्गीय आर. संथानम जिन्होने इन लेखों को अपनी पत्रिका टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी के विभिन्न अंकों में इस्तेमाल किया, किंतु उन अंकों की प्रतियाँ मुझे भेजने का अपना वचन नहीं निभाया। संथानम एक चालबाज व्यक्ति थे जिन्होंने दूसरों के साथ विश्वासघात किया। वह इतना नीचे गिर गये कि पूर्व में जिन लोगों ने उन पर उपकार किये थे उन्हीं की उन्होंने तीखी आलोचना की। संथानम को होटल में जो नौकरी मिली थी वह उन्हें मेरे एक मित्र द्वारा मेरे सिफारिश करने पर ही दी गयी थी। बाद में उनका नया अधिकारी आया जिसे मैं नहीं जानता था । उसे भविष्यवक्ता के रूप में संथानम की निम्नस्तरीय योग्यता के बारे में पता चला और उसने होटल में आने वाले विदेशियों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया। इस पद पर उनकी नियुक्ति में मेरी भूमिका थी । इसे बचाने के लिये उन्हें कठोर परिश्रम करना चाहिये था।
एक पत्रकार के रूप में आर. संथानम का कैरियर उसी समय प्रारंभ हो सका जब मैंने उनकी मदद की । उस समय तक मैं उनसे मिला भी नहीं था। एक सिख मेय अधिकारी ने, जो कि सिंडीकेट बैंक की एक शाखा में कार्यरत थे एक ज्योतिषीय पत्रिका प्रारंभ करने का निर्णय लिया और मुझसे इसका संपादक बनने का निवेदन किया । उनके इस निवेदन को उनके बार -बार के आग्रह के उपरांत भी मैंने स्वीकार नहीं किया । मेरे पास इसके कई कारण थे, मैं अभी भी सरकारी सेवा में था। किसी पत्रिका का संपादक नहीं बन सकता था । इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति एक ज्योतिषीय पत्रिका शुरू करने के लिये कुछ निवेश करता है तो पहले उसे? ज्योतिष सीखना चाहिये। उसे दिल्ली के ज्योतिष -पुस्तकों के उन प्रकाशकों की? नहीं होना चाहिये जिन्हें ज्योतिष का कोई-ज्ञान नहीं है । उनके लिये ज्योतिष की? बेचने अथवा जूते बेचने में कोई अंतर नहीं है।
एक बार जब इस सिख अधिकारी ने मुझसे संपादक पद के लिये किसी के नाम का सुझाव देने को कहा, तब मैंने उन्हें कहा कि संभवत आर. संथानम इस हेतु उचित ' व्यक्ति हो सकते है । उस समय आर. संथानम कलकत्ता की नौकरी छोड़कर दिल्ली' प्रवास करने लगे थे किन्तु तब तक भी मैं उनसे मिला! नहीं था । वे संथानम से मिले और उन्हें राजी कर लिया । इस पर कृर्तग्ता जाहिर करते संथानम मेरे घर आये और फिर नियमित रूप से आने लगे । और इस प्रकार ज्योतिषीय पत्रिका ' योअर एस्ट्रोलोजर 'प्रारंभ हुई जो कि अब अस्तित्व में नहीं है । इसकी स्थापना से ही हमारे बीच यह मौन सहमति थी कि मैं इसके प्रत्येक अंक के लिये लेख लिखूँगा और अपनी दिल्ली पदस्थापना तक मैंने इसे निभाया भी । कितुं शीघ्र ही संथानम ने अपने मालिक से झगड़ा ऊर लिया और उन पर कोई आरोप लगाए जबकि सिख अधिकारी ने मुझे संथानम के बारे में कुछ बहुत ही अवांछनीय बातें बताई । वास्तविकता को नहीं जानने के कारण मैंने स्वयं को विवाद से दूर रखते हुए उस पत्रिका के लिये लेखलिखना बंद कर दिया। इनमें से एक भी लेख आज मेरे पास नहीं है।
1985 में जब मैं भुवनेश्वर (उड़ीसा) में महालेखाकार के रूप में पदस्थापित न तब आर. संथानम ने मुझे पत्र लिखा कि उन्होंने एक ज्योतिषीय पत्रिका ' दी टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी ' प्रारंभ करने का निर्णय किया है । इस पत्रिका को स्थापित करने हेतु उन्होंने मुझसे नियमित रूप से लेख देने को कहा जो कि मैंने किया । किंतु उन्होने मुझे वे अंक नहीं दिये जहाँ मेरे लेखों का प्रयोग-किया गया था । उनमें से कुछ बाद में मैंने अपने मित्रों के पास देखे । प्रताप मेनन ने उनमें से कुछ लेख मुझे उपलब्ध कराये । हमारे सम्बन्ध बिगड़ने के कारण बाद में ये लेख मैं संथानम से प्राप्त नहीं का सका । संथानम ने मुझसे कुछ महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की कुंडलियाँ इस स्पष्ट आश्वासन के साथ लीं कि वे उनका अपनी पत्रिका के लिये उपयोग नहीं करेंगे क्योंकि वे गोपनीय थीं । किन्तु संथानम ने अपना वचन नहीं निभाया । उन्होंने उनका उपयोग किया और इसने मुझे भारी परेशानी में डाल दिया । मैंने उनमे अपने सभी सम्बन्ध तोड़ लिये हे उन्होंने भी अपनी पत्रिका के माध्यम से मेरी आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ा । संथानम के संक्षिप्त ज्योतिषीय एवं असफल कैरियर में उनकी क्षुद्रता सदैव ही उनके बहेतर निर्णयों पर हावी रही । उन्होंने 1972 में ज्योतिष सीखना प्रारंभ किया और छ:वर्ष पश्चात् स्वयं को इस महत्त्वपूर्ण कैरियर के रास्ते पर उतार दिया जो कि एक गलती थी । इसका परिणाम यह हुआ कि भविष्यवक्ता के रूप में उनका रिकॉर्ड बहुत- ही खराब रहा जो कि एक ज्योतिषीय पत्रिका के संपादक के लिये घातक है । संथानम जैसे कई अन्य ज्योतिषी भी हैं जो कुछ दशकों के गहन अनुभव के बिना ही ज्योतिष पर पाठ्य-पुस्तकें लिखना प्रारंभ कर देते हैं । इसका परिणाम उपयोगी एवं बुद्धिमतापूर्ण पुस्तकें नहीं होती । अपितु ये भी उन पुस्तकों के समान ही नीरस एवं रूढ़िपूर्ण सामग्री का संग्रहण होती हैं जिन पर कि ये आधारित होती हैं । मेरी एक शोध-विद्यार्थी अम्बिका गुलाटी ने इस पुस्तक के पृष्ठावलोकन का प्रस्ताव रखा । उस समय मेरे आँख के मोतियाबिद का ऑपरेशन होना था । उसी ने इसे अंतिम रूप प्रदान करने का निर्णय किया जो कि मैं अपनी आँख की तकलीफ के कारण नहीं कर सकता था।
अन्त में मैं सोसाईटी फॉर वैदिक रिसर्च एण्ड प्रैकि्टस का अत्यन्त आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक को हर स्तर पर आर्थिक सहायता प्रदान की है । वैदिक शास्त्रों के शोध में इस संस्था का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
विषय-सूची |
||
1 |
समर्पण |
3 |
2 |
दो शब्द |
4 |
3 |
नव ग्रह स्तोत्रम् |
7 |
4 |
भूमिका |
9 |
5 |
सहज भविष्यकथन |
18 |
6 |
एक कलाकार परिवार के लिये ज्योतिष |
45 |
7 |
भविष्यकथन |
81 |
8 |
अन्तर्सम्बन्धित प्रारब्ध |
109 |