पुस्तक के विषय में
1. स्वप्न शास्त्र
विध्नेशं वरद महेशतनयम् दुर्गाशिवं भारतं ।
वंदे शंकर शंकर देवं त्रितापहमं ।
क्षीरोब्धौ भुजंगधिवास ललित देवं रमा संयुतम् ।
ज्ञानाब्धौ गतिरखु में गतिरपि श्री शारदाम्ब भजे।।
स्वप्न सृष्टि अलौकिक है। इस सृष्टि में विहार करने वाले स्वप्नों की अलौकिकता के बारे में खासा ज्ञान रखते हैं। स्वप्न हमेशा सुन्दर एवं सुहावने ही होंगे ऐसा नहीं है। स्वप्न जैसा डरावना होता वैसा ऐसा ही आनददायक भी होता है। स्वप्न देखकर मानव यदि आनंदविभोर होकर नाचने लगता है तो कभी सहम भी जाता है। स्वप्न में यदि रंभा, उर्वशी अप्सराएँ दिखती है तो शूर्पणखा जैसी डरावनी, वीभत्स तथा राक्षसी प्रवृत्ति की स्त्रियां भी दिखाई देती हैं। स्वप्न में प्रियकर अपनी प्रेयसी को आलिंगन देकर सुख की उड़ाने उड़ाता है तो कई बार कुलीन स्त्री के सहवास के कारण मृत्यु को आलिंगन देने की बारी भी आ जाती है । स्वप्न मानव में वासनामय क्रीड़ा के कारण अनेक दुर्गुणों की वृद्धि करता है। मानव को नास्तिक एवं कुविचारी बनाने का कार्य भी स्वप्न ही करता है। यह है स्वप्न सृष्टि ।
मानवी इन्द्रियों की बाह्य प्रवृतियां जब अचेतन हो जाती हैं और मानव निद्रा देवी की गोद में शारीरिक दृष्टि से पहुच कर स्थिर हो जाती है तब भी उसका अचेतन मन जागता रहता है और वह स्वप्न में रसलीन हो जाता है ।
''गते शोके न कर्तयो भविष्य नैव चिंतयेत ।
वर्तमान कालेन वर्तयन्ति विचक्षणौ: । ''
इस श्लोक का अर्थ है कि बीते समय के लिए शोक न करें । भविष्य में घटने वाली घटनाओं का भी विचार करें ।
विषयानुक्रम |
||
1 |
स्वप्नशारत्र |
1 |
2 |
स्वप्नसिद्धि के प्रयोग |
9 |
3 |
स्वप्नों के अर्थ |
14 |
4 |
स्वप्नों का तात्विक विवेचन |
17 |
5 |
भारतीय साहित्य में स्वप्न मीमांसा |
24 |
6 |
अग्निमहापुराण में वर्णित शुभ-अशुभ स्वप्न विवेचन |
36 |
7 |
दुःस्वप्न उनके फल एवं शांति उपाय |
42 |
8 |
कुछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्वप्न |
49 |
9 |
स्वप्न फल कोष |
56 |
पुस्तक के विषय में
1. स्वप्न शास्त्र
विध्नेशं वरद महेशतनयम् दुर्गाशिवं भारतं ।
वंदे शंकर शंकर देवं त्रितापहमं ।
क्षीरोब्धौ भुजंगधिवास ललित देवं रमा संयुतम् ।
ज्ञानाब्धौ गतिरखु में गतिरपि श्री शारदाम्ब भजे।।
स्वप्न सृष्टि अलौकिक है। इस सृष्टि में विहार करने वाले स्वप्नों की अलौकिकता के बारे में खासा ज्ञान रखते हैं। स्वप्न हमेशा सुन्दर एवं सुहावने ही होंगे ऐसा नहीं है। स्वप्न जैसा डरावना होता वैसा ऐसा ही आनददायक भी होता है। स्वप्न देखकर मानव यदि आनंदविभोर होकर नाचने लगता है तो कभी सहम भी जाता है। स्वप्न में यदि रंभा, उर्वशी अप्सराएँ दिखती है तो शूर्पणखा जैसी डरावनी, वीभत्स तथा राक्षसी प्रवृत्ति की स्त्रियां भी दिखाई देती हैं। स्वप्न में प्रियकर अपनी प्रेयसी को आलिंगन देकर सुख की उड़ाने उड़ाता है तो कई बार कुलीन स्त्री के सहवास के कारण मृत्यु को आलिंगन देने की बारी भी आ जाती है । स्वप्न मानव में वासनामय क्रीड़ा के कारण अनेक दुर्गुणों की वृद्धि करता है। मानव को नास्तिक एवं कुविचारी बनाने का कार्य भी स्वप्न ही करता है। यह है स्वप्न सृष्टि ।
मानवी इन्द्रियों की बाह्य प्रवृतियां जब अचेतन हो जाती हैं और मानव निद्रा देवी की गोद में शारीरिक दृष्टि से पहुच कर स्थिर हो जाती है तब भी उसका अचेतन मन जागता रहता है और वह स्वप्न में रसलीन हो जाता है ।
''गते शोके न कर्तयो भविष्य नैव चिंतयेत ।
वर्तमान कालेन वर्तयन्ति विचक्षणौ: । ''
इस श्लोक का अर्थ है कि बीते समय के लिए शोक न करें । भविष्य में घटने वाली घटनाओं का भी विचार करें ।
विषयानुक्रम |
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1 |
स्वप्नशारत्र |
1 |
2 |
स्वप्नसिद्धि के प्रयोग |
9 |
3 |
स्वप्नों के अर्थ |
14 |
4 |
स्वप्नों का तात्विक विवेचन |
17 |
5 |
भारतीय साहित्य में स्वप्न मीमांसा |
24 |
6 |
अग्निमहापुराण में वर्णित शुभ-अशुभ स्वप्न विवेचन |
36 |
7 |
दुःस्वप्न उनके फल एवं शांति उपाय |
42 |
8 |
कुछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्वप्न |
49 |
9 |
स्वप्न फल कोष |
56 |