पुस्तक के विषय में
शिवानी के उपन्यास, लघु कहानियां व स्तंभ घर-घर में पढ़े जाते थे। इस लोकप्रिय लेखिका के पीछे छिपे चेहरे को उनकी पुत्री इरा पांडे ने 'दिद्दी: हमारी मां शिवानी' में दर्शाते हुए अपनी मां की एक अनोखी झलक पाठकों के सम्मुख रखी है। मां-बेटी के अटूट रिश्ते को उकेरती यह कहानी शिवानी के उपन्यासों से कम दिलचस्प नहीं है।
पाठकों को इस पुस्तक में शिवानी की ज़िंदगी से जुड़े कई अनोखे रिश्तेदारों, मित्रों व अनेक रंगीन पात्रों से रूबरू कराती हुई इरा एक पूरे ज़माने को याद करवा देती हैं। हम एक ऐसे परिवार से अवगत होते हैं जिसके कई पात्र हमें अपने परिवारों के सदस्य लगने लगते हैं। इरा अपने परिवार के उन सुशिक्षित-सुशिष्ट सदस्यों का अभिनंदन करती हैं, जिनमें कुछ ख़ब्ती, फक्क्ड़ प्राणी भी थे और कुछ बेहद प्रतिभाशाली लेखक भी।
सामंतशाही व संयुक्त परिवार प्रणाली के गुज़र जाने के बाद कुमाऊं के गर्वोन्नमत ब्राह्मण परिवारों का भी चित्र हमें मिलता है: जब विशाल परिवार टूटकर धीरे-धीरे एकल परिवारों में तब्दील हो गए, और पुरानी रीतियां टूटती चली गईं।
दिद्दी: हमारी मां शिवानी' आत्मकथ्य और कथा का अद्भुत संयोजन है।
पुस्तक के विषय में
शिवानी के उपन्यास, लघु कहानियां व स्तंभ घर-घर में पढ़े जाते थे। इस लोकप्रिय लेखिका के पीछे छिपे चेहरे को उनकी पुत्री इरा पांडे ने 'दिद्दी: हमारी मां शिवानी' में दर्शाते हुए अपनी मां की एक अनोखी झलक पाठकों के सम्मुख रखी है। मां-बेटी के अटूट रिश्ते को उकेरती यह कहानी शिवानी के उपन्यासों से कम दिलचस्प नहीं है।
पाठकों को इस पुस्तक में शिवानी की ज़िंदगी से जुड़े कई अनोखे रिश्तेदारों, मित्रों व अनेक रंगीन पात्रों से रूबरू कराती हुई इरा एक पूरे ज़माने को याद करवा देती हैं। हम एक ऐसे परिवार से अवगत होते हैं जिसके कई पात्र हमें अपने परिवारों के सदस्य लगने लगते हैं। इरा अपने परिवार के उन सुशिक्षित-सुशिष्ट सदस्यों का अभिनंदन करती हैं, जिनमें कुछ ख़ब्ती, फक्क्ड़ प्राणी भी थे और कुछ बेहद प्रतिभाशाली लेखक भी।
सामंतशाही व संयुक्त परिवार प्रणाली के गुज़र जाने के बाद कुमाऊं के गर्वोन्नमत ब्राह्मण परिवारों का भी चित्र हमें मिलता है: जब विशाल परिवार टूटकर धीरे-धीरे एकल परिवारों में तब्दील हो गए, और पुरानी रीतियां टूटती चली गईं।
दिद्दी: हमारी मां शिवानी' आत्मकथ्य और कथा का अद्भुत संयोजन है।