प्राचीन भारत की आर्थिक संस्कृति: The Economic Culture of Ancient India

$19
Express Shipping
Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA854
Author: डॉ. विशुद्धानन्द पाठक (Dr.visuddhananda Pathak)
Publisher: Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow
Language: Hindi
Edition: 2005
Pages: 168
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 180 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

निवेदन

किसी भी समाज की आर्थिक स्थितियो से ही उसका वास्तविक मूल्याकन किया जा सकता है। युग विशेष में आम आदमी की स्थिति केला थी, उससे जुड़ा सांस्कृतिक-सामाजिक स्थितिया किस रूप में थीं और शासक वर्ग उसकी खुशहाली के लिए क्या कर रहा था- आदि की जानकारी हमें आर्थिक स्थितियों के अध्ययन के बिना ज्ञात नहीं हो सकती। दुर्भाग्य से काफी समय तक इतिहास का आकंलन अधिकतर सदर्भों में राजाओं के निजी जीवन, राजदरबारों और उनके आस -पास के लोगों तक ही सिमटा रहा। वैज्ञानिक आधार पर इतिहास का आकंलन करने वाले विद्वानों ने इसे अधूरा माना और राजाओं के निजी इतिहास के मुकाबले तत्कालीन समाज की आर्थिक-सांस्कृतिक स्थिति जानने पर विशेष जोर दिया। सौभाग्य से अब ये रूझान लगातार जोर पकड रहा है और इतिहास-विश्लेषण के दौरान तत्कालीन आर्थिक स्थिति को जानने-समझने पर लगातार जोर दिया जा रहा है। डॉ. विशुद्धानन्द पाठक की यह कृति प्राचीन भारत का आर्थिक इतिहास इसी विश्लेषणात्मक पद्धति को समर्पित है।

यों तो विद्वान लेखक ने इस पुस्तक का प्रारम्भ डेढ़-दो हजार वर्ष पूर्व की प्राचीन भारतीय संगत साहित्य और सस्कृति से करते हुए हर्षोत्तर काल-उजर भारतीय राजस्व, उत्तर-दक्षिण भारतीय सामती प्रथा, भारत और चीन के व्यापारिक सम्बधों सहित भारत-अरब के आर्थिक-सांस्कृतिक सम्बन्धों पर भी जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया है । यह पुस्तक निश्चित रूप से प्राचीन भारत की सामाजिक-आर्थिक सस्कृति का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी । डॉ. पाठक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से सम्बद्ध रहै है, उतार भारत का राजनीतिक इतिहास पुस्तक के बाद डॉ पाठक द्वारा प्राचीन भारत का आर्थिक इतिहास जिस रूप में संजोया गया है, वह निश्चय ही एक बड़ा उपलब्धि है। डॉ. पाठक लगभग 80 वर्ष की आयु में आज भी लेखन कार्य कर रहै हैं जो निश्चय ही एक बड़ा काम है। इस अनुपम कृति के प्रणयन के लिए उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करना मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ।

प्रकाशकीय

देश के इतिहास के लम्बे अध्ययन के दौरान आर्थिक स्थितियों का अध्ययन अपेक्षित रहा है अब इतिहासकार इस ओर भी प्रर्याप्त ध्यान दे रहै हें और किसी भी समाज और समय विशेष को समझने के लिए तत्कालीन आर्थिक स्थितियों के आकलन पर विशेष जोर दे रहै हैं डॉ. विशुद्धानन्द पाठक की यह कृति 'प्राचीन भारत का आर्थिक इतिहास' इसी चिन्तन और कार्य शैली की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है उन्होंने इस पुस्तक में विशेष रूप से छठी शताब्दी के बाद के भारतवर्ष की आर्थिक-सामाजिक स्थितियों को अपने गहन अध्ययन का विषय बनाया है और सविस्तार बताया है कि किस तरह जब यहाँ केन्द्रीय राज सजाएँ कमजोर पडी तो कैसे सामन्ती प्रथा अधिकाधिक मजबूत हुई उन्होंने इसमें दक्षिण भारतीय संगम साहित्य और विभिन्न देशों के साथ भारत के समुद्री व्यापार आदि की भी प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध करायी है निश्चय ही इससे प्राचीन काल में देश के सम्पूर्ण आर्थिक ढ़ाचे को समझने में अभूतपूर्व मदद मिलेगी डी. पाठक द्वारा अथक प्रयासों से संकलित इस सामग्री से आर्थिक इतिहास का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियो शोधार्थियों व इतिहास के सुधी पाठकों को उपयोगी जानकारी एक स्थान पर सुलभ हो सकेगी इसी विश्वास के साथ मैं यह कृति सुधी पाठकों के हाथ में सौंप रहा हूँ।

आमुख

लगभग डेढ वर्षो पूर्व मैंने 'प्राचीन भारतीय आर्थिक इतिहास' (600 . तक) शीर्षक से अपनी एक कृति पाठकों को दी थी । उस समय मैंने वादा किया था कि प्राचीन भारतीय आर्थिक इतिहास के अन्य पक्षों को उजागर करते हुए उसकी एक पूरक कृति शीघ्र ही उनके सामने उपस्थित करुँगा। इस वादे को पूरा करते हुए 'प्राचीन भारत की आर्थिक सस्कृति' शीर्षक से यह रचना समर्पित है। इसमें विशेष सदर्भ 600 . पश्चात् के हैं।

प्राचीन भारतीय इतिहास का काल कितना लम्बा है. वह कब से प्रारभ होता है और कब उसका अल होता है, क्या उसे 'हिन्दू काल' कहा जा सकता है या नहीं, आदि प्रश्नों पर बड़े विवाद हैं, जिनका अन्त होता नहीं दिखायी देता । इस युग के इतिहास पर एक प्रसिद्ध पाठ्य पुस्तक विन्सेण्ट स्मिथ नामक अग्रेज (साम्राज्यवादी विचारधारा वाले) प्रशासक और इतिहासकार ने लिखी थी- 'अर्ली हिस्ट्री ऑफ अर्ली इण्डिया'- लगभग एक सौ वर्षो पूर्व । बहुतों की दृष्टि में आज भी वह काल विभाजक शीर्षक अधिकाशत ग्राह्य प्रतीत होता है । वर्ष 2002 में प्राय इसी शीर्षक से पेगुइन प्रकाशन ने दि पेगुइन हिस्ट्री ऑफ इण्डिया 1300 .पू. तक (रोहिला थापर) ने प्रकाशित की है। किन्तु अनेक विद्वान् 600 . के बाद वाले युग को 'पूर्व मध्यकाल' नाम से पुकारने लगे है। कुछ लोग तो इस तथाकथित पूर्वमध्ययुग को पीछे 400 ई तक खींच ले जाना चाहते हैं। ऐसे लोगों की दृष्टि में यदि भारतीय इतिहास के प्रारभिक युग को 'प्राचीन भारत' के नाम से सुशोभित किया जाय तो वह युग भी केवल 600 . पूर्व से 400 . तक का ही होना चाहिए। प्रगतिवादी इतिहासकारों के विशेषण से मंडित इन पण्डितों की दृष्टि में 600 . पू. तक का भारतीय इतिहास तो केवल परंपरागत इतिहास है, जिसे विज्ञानपरक (साइन्टीफिक इतिहास की संज्ञा नहीं दी जा सकती । उनकी दृष्टि में इसको इतिहास मानने वाले 'पुनरुत्थानवादी' ही हैं।

वास्तव में यदि हड़प्पाई सस्कृति के युग से प्रारभ कर दक्षिण भारत की पल्लव-चोलकालीन युग तक के समस्त भारतीय इतिहास की प्रवृत्ति और प्रकृति को देखा जाय, तो उसमें न तो कोई व्यवधान दिखायी देता है और न कोई किसी विशेष प्रकार का अन्तर । सामाजिक, सास्कृतिक. आर्थिक और व्यापारिक, चाहै जिस किसी क्षेत्र में देखें, एक्? सतत गतिमान निरतरता दिखायी देह। है।

अत, जिस प्राचीन भारतीय इतिहास को कृत्रिम रूप से कई टुकडों में बाट कर देखा जाता है, उसे 'प्रारभिक भारत' (अर्ली इण्डिया) अथवा प्राचीन भारत कहना बिल्कुल भी अनुचित नहीं है। प्रस्तुत कृति दक्षिण भारतीय विषयों की ओर विशेष रूप से अभिमुख है। यद्यपि इसकी समय सीमा प्रधानता 600 . के बाद वाली भौतिक संस्कृति विषयक पक्षों को समाहित करती है, एक विषय- सगम साहित्य की भौतिक संस्कृति-. सम्बत की प्राथमिक शताब्दियों को भी स्पर्श करता है। इसकी हिन्दी माध्यम से रचना उत्तर भारतीय विद्यार्थिओं और अध्यापकों द्वारा उपयोग को ध्यान में रखते हुए की गयी है । उनके सम्मुख हिन्दी भाषा के माध्यम से उपस्थित की जाने वाली इतिहास-विषयक रचनाओं का प्राय, अभाव सा है, जो उन्हें दक्षिण भारतीय इतिहास से परिचित होने के क्रम में बाधक सा बन जाता है। यह दावा करने में कोई संकोच नहीं है कि विभिन्न विषयों से सम्बद्ध अब तक के जो भी मौलिक विचार अथवा लेखन हैं, उनको सुबोध भाषा में छात्रोपयोगी रूप में उपस्थित करने का यहा प्रयत्न अवश्य किया गया है। मतों और विचारो के सम्बन्ध में भी यह एकागी नहीं है।

इस कृति के यथाशीघ्र प्रणयन में मेरी अपनी रुचि तो थी ही, श्री राजेश कुमार बैजल, सम्पादक. उत्तर प्रदेश हिन्दी सस्थान, लखनऊ, के बार-बार होने वाले तकाजों ने भी प्रेरक का काम किया। इसके प्रकाशन में उनकी रुचि के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। साथ ही धन्यवाद दूँ उत्तर प्रदेश हिन्दी सस्थान, लखनऊ को, जिसने इसे बढिया रूप में मुद्रित और प्रकाशित किया।

 

विषय-सूची

अध्याय-1

संगम साहित्य और भौतिक संस्कृति

1-18

अध्याय-2

राजकीय राजस्व-हर्षोंत्तर काल

19-48

अध्याय-3

उत्तर भारतीय सामन्त प्रथा

49-85

अध्याय-4

दक्षिण भारतीय सामन्त प्रथा

86-103

अध्याय-5

प्रायद्विपी भारत की भौतिक संस्कृति: कृषि और व्यापार

104-135

अध्याय-6

भारत और चीन के व्यापारिक सम्बन्ध

136-143

अध्याय-7

दक्षिण पूर्व एशियाई समुद्री व्यापार

144-156

 

संक्षिप्त ग्रंथ सूची

157-160

**Contents and Sample Pages**








Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy