प्रकाशकीय
इतिहास इस बात का साक्षी है कि महापुरुषों के निर्माण में नारी का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान रहा है। कही नारी प्रेरणास्रोत रही है, तो कही उम्प्रेरक शक्ति। भारतवर्ष में प्राचीन-काल से ही नारी का महत्व स्वीकार किया गया है। ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:''-की भावना हमारी सांस्कृतिक विरासत है।
भारतवर्ष में समय-समय पर ऐसी अनेक नारियां हुई हैं, जिन्होंने समाज में एक आदर्श कायम किया है। प्रकाशन विभाग ने ऐसी नारियों के जीवन-वृत्त से पाठकों को परिचित कराने के लिए 'भारत की महान नारियां' नामक श्रृंखला प्रारंभ की है। आशा है,इस सुखला की पुस्तकों को सुधी पाठकों का स्नेह मिलेगा और वे इन्हें उपयोगी पाएंगे।
भूमिका
हाड़ी रानी के चरित्र को शब्दों के सहारे आंकना उतना ही कठिन है, जितना कि बालू-रेत से पानी निकालना । हाड़ी रानी एक ऐसी रानी थीं, जिन्होंने न तो शासन की बागडोर संभाली और न ही उन्होंने रण-भूमि में अपने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन ही किया । लंकिन उनके जीवन में घटी एक घटना ने ही उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया । उन्होंने अपनी समस्त आशाओं आकांक्षाओ और भविष्य के सुनहरे सपनों को ही मातृभूमि की बलिवेदी पर नहीं चढ़ाया, वरन स्वय को अपने पति के कर्तव्य मार्ग में बाधक जानकर अपने जीवन का बलिदान कर दिया ।
कहानी के आरम्भ में पाठक राजस्थान के जन-जीवन, वहां के राज-परिवार व उनके द्वारा निर्मित किले एव प्रजा की भलाई के लिए किए गए प्रयासों की झलक देखेगे और तभी मुखरित हो पाएगा हाड़ी रानी का चरित्र ।
इस पुस्तक को लिखने में मैं ने कुछ लेखकों की रचनाओं से सहायता ली है, जिनमें सर्वश्री धर्म पाल और विक्रमसिंह गून्दोज के नाम प्रमुख हैं । मैं इनकी आभारी हूं । मैं पद्मश्री डा. श्याम सिह शशि की भी आभारी हूं, जिन्होंने मुझे यह पुस्तक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया ।
अनुक्रम
1
राजस्थानी परिवेश
2
राजस्थान के राजा-महाराजाओं का जीवन
6
3
हाड़ी रानी-बचपन से विवाह की देहरी तक
10
4
कर्तव्य बोध
14
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