सुबोध एवं सरल हिन्दी भाषा में प्रस्तुत इस ग्रन्थ का उद्देश्य उन पाठको की जिज्ञासा की पूर्ति करना है जो संस्कृत के अतीत एवं विकास परम्परा के विषय में बताया गया है की संस्कृत विश्व की कितनी प्राचीन भाषा है तथा विश्व की भाषाओं के कितने विशाल परिवार के साथ इसका निकट का सम्बन्ध है | संस्कृत भाषा की पिछली सीमा वैदिक संस्कृत ही नहीं अपितु हज़ारों वर्ष पुरानी वह मूल भाषा है जिससे कि विश्व के एक विशाल भूखण्ड की उन भाषाओं का विकास हुआ जिनका परिगणन भाषा विज्ञानियों द्वारा भारोपीय भाषा के नाम से किया जाता है|
ग्रन्थ में प्रथम बार आधुनिक विवरणात्मक भाषा विज्ञान की पद्धति का अनुसरण करते हुए इसके संरचनात्मक रूप को स्पष्ट करने का यत्न भी क्या गया है|
इस प्रकार यह ग्रन्थ संस्कृत में अभिरुचि रखने वाले सर्वसाधारण पाठको के अतिरिक्त संस्कृत के सभी स्तरों तथा सभी पद्धतियों के विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से संग्रहणीय है |
सुबोध एवं सरल हिन्दी भाषा में प्रस्तुत इस ग्रन्थ का उद्देश्य उन पाठको की जिज्ञासा की पूर्ति करना है जो संस्कृत के अतीत एवं विकास परम्परा के विषय में बताया गया है की संस्कृत विश्व की कितनी प्राचीन भाषा है तथा विश्व की भाषाओं के कितने विशाल परिवार के साथ इसका निकट का सम्बन्ध है | संस्कृत भाषा की पिछली सीमा वैदिक संस्कृत ही नहीं अपितु हज़ारों वर्ष पुरानी वह मूल भाषा है जिससे कि विश्व के एक विशाल भूखण्ड की उन भाषाओं का विकास हुआ जिनका परिगणन भाषा विज्ञानियों द्वारा भारोपीय भाषा के नाम से किया जाता है|
ग्रन्थ में प्रथम बार आधुनिक विवरणात्मक भाषा विज्ञान की पद्धति का अनुसरण करते हुए इसके संरचनात्मक रूप को स्पष्ट करने का यत्न भी क्या गया है|
इस प्रकार यह ग्रन्थ संस्कृत में अभिरुचि रखने वाले सर्वसाधारण पाठको के अतिरिक्त संस्कृत के सभी स्तरों तथा सभी पद्धतियों के विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से संग्रहणीय है |