बिन बाती बिन तेल
सूफी, झेन व उपनिषद की कहानियों एवं बोध कथाओं पर ओशो की वाणी जो कथाओं के मर्म में उतरती है और उनके एक एक पहलू को मार्ग प्रशस्त करने वाला दीपक बना देती है।
पुस्तक के कुछ विषय बिंदु
प्रेम
मृत्यु
सुख दुख
वासना
प्रयास और प्रसाद
प्रस्तावना
आग का दरिया और रोशनी की झील
जब कोई नाम विचार मे ढलता हुआ जीवन चिंतक और जीवन दर्शन का आकार लेने लगता है, तब समाज की जीवन शैली प्रभावित होती है । समाज अपने हर युग में अपने तथाकथित मूल्यो को सख्त बर्फीली दीवारों मे घेर कर रखता है । जब कोई विचारक उन दीवारों पर अपनी ऊष्मापूर्ण अंगुलियां फेरता है, तब समाज की रूढ़ियां गहराई तक दरकने लगती हैं, उसकी दीवार गलने लगती हें । समाज और तथाकथित धार्मिक संस्थाएं सतर्क और उत्तेजित लगने लगते है । पर हर क्रांतिकारी, परिवर्तनकारी चिंतक को हर युग मे इन विरोधो की सुरंगों से गुजरना पड़ा है । आग के इस दरिया से रास्ता निकालना पड़ा है । सदियो की कुंठित परंपराओं के ऐसे सख्त पहाड़ों को चीरकर रोशनी की की झील तक कोई चिंतक समूचे वर्तमान को ले जाने की क्षमता रखता है । ऐसी ही लबालब रोशनी की झील हमारे वर्तमान से प्रवाहित हुई, जिसके उदगम हैं ओशो!
कई दशकों को अपनी विचार ज्योति से प्रकाशित करने वाले ओशो विवादों के घेरे रहे विरोधों और विरोधाभास के घेरे उनके आसपास मंडराये पर वे हमेशा केन्द्र बिंदु रहे पक्ष विपक्ष मे तर्कों की शृंखलाएं बनती बिगड़ती रहीं पर अखंड ज्योति जागरण और आत्मचिंतन के प्रकाशपुंज से शांत मुस्कान लिए वे मुक्ति के लिए निरंतर मुखरित रहे । जीवन संदेश का अविरल प्रवाह न खंडित हुआ और न कभी शिथिल पडा । प्रस्तुत पुस्तक बिन बाती बिन तेल मे पूना में दिए 19 प्रवचनो का संकलन है । इस विचार संकलन में व्यक्ति के अस्तित्व को सर्वोपरि मानकर उसकी अंतर्दृष्टि को जाग्रत करने की कथा यात्रा है । ओशो मानते हैं कि बिना अंतर्दृष्टि के आदमी इस संसार में भटक जाएगा । अंत च्रु के खुलने से ही अंतर्विरोध विसर्जित होंगे और वह अपने आपको पहचान सकेगा । बिना बाती और बिना तेल के इस अंतर्दृष्टि की रोशनी से उसका जीवन सतत प्रकाशमान रहेगा । रोशनी के जितने भी बाहरी साधन है तेल बाती, एक दिन, किसी भी पल किसी कारण बुझ सकते है, पर भीतर जगी रोशनी किसी बाहरी भौतिक साधन की मोहताज नहीं, वह तो आंतरिक चेतना और शक्ति का उदगम स्थान होती है । ऐसी रोशनी के लिए ओशो अपनी विशिष्ट शैली में छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से अपनी व्याख्या प्रस्तुत करते है । ऊपर से हल्की फुल्की लगनेवाली ये कहानियां जीवन के गहनतम और सूक्ष्मतम रहस्यों से परदा उठाती है ।
ओशो भाषा और विचारों के जादूगर है, नियंता है । दुर्गम से दुर्गम भावलोक तक पहुंचने के लिए उन्होंने विचारों को कभी बोझिल नहीं होने दिया । उनके समर्थ शब्द और ठोस भाषा इन दुर्गम प्रदेशों से एक पगडंडी बनाते हुए बड़ी सहजता और सरलता से पाठको को लक्ष्य तक ले चलते है । उनकी भाषा पर दूर दूर तक, खोजने पर अहंकार और दंभ के कहीं कोई निशान दिखाई नहीं देते । लक्ष्य, संदेश जितना पवित्र होता है, भाषा उतनी ही सुगम । बहती नदी सी कल कल करती हुई वेगवान और सहज प्रवाहपूर्ण भाषा के साथ शब्दों के चमत्कारी मे अनायास ही संगीत का आभास होता है ।
मनुष्य का जीवन तमाम मनोभावों और मनोविकारो का केन्द्र रहा है । ओशो एक कुशल मनोवैज्ञानिक की भूमिका मे क्रोध, लोभ, वासना, अहंकार जैसे मनोविकारो के उदगम और स्वभाव को व्याख्यायित करते है । इनकी जड़ों की ओर संकेत कर आगाह करते है, वहीं प्रेम, श्रद्धा, विश्वास, आस्था जैसे गुणों के लिए वे कई कई महामार्गो का उदघाटन करते है । उन्होंने कही सीधे उपचार देने के बजाय व्यक्ति को उपचार ढूंढने के लिए सक्रिय करने पर जोर दिया । जहां कुछ संकेत करना हुआ, वहां दमन और वमन से बचने के लिए जीवन की सहजतम प्राकृतिक उपचार को प्राथमिकता दी । प्रेम जैसी चिरंतन मानवीय संवेदना को व्यापक या सर्वव्यापी परिप्रेक्ष्य मे ठोस संदर्भ देकर ऊर्जा के स्थायी स्रोतो का वे अनुसंधान करते है ।
इस पुस्तक मे वे अपना सारा चिंतन अंतर्दृष्टि पर केद्रित करते है । मन की आखें खोलने का आग्रह करते है । वे मानते है कि जब तक भीतरी आखें नहीं खुलेंगी, तब तक गीता, कुरान, बाइबल, सब बाहरी उपकरण ही होंगे, दृष्टि नही बन सकते । इन उपकरणों को रोशनी मे तब्दील करने का काम भीतरी आखों का हें । एक बार आदमी की भीतरी आंखे खुल गई तो वह अगम. अगोचर को भी जान सकता है और उसकी यह रोशनी बिन बाती बिन तेल के आजीवन दमकती रह सकती है । इन सारी विचार शृंखलाओं को ओशो एक कविता की तरह कह जाते है । उनका आग्रह है कि जिस तरह किसी बादल को हम अपनी कल्पना दृष्टि से अलग अलग और मनचाहे आकार में ढालते है उसी प्रकार जीवन की मुक्ति के सही मार्ग को हमारी अपनी भीतरी आखों के खुलने पर ही आकार दिया जा सकता है। प्रत्येक मनुष्य को यह रास्ता स्वयं खोजना होगा । बादल तो निरंतर बहते रहेंगे । अपने मन की छवि का आकार अपने आप हमारे हृदय पर अंकित हो जायेगा । आवश्यकता है तो सिर्फ उस आकार को तराशनेवाली आखों के खुलने की
अबाध बादलो की तरह
मन कभी घोड़ा
कभी हरिण
कभी कबूतर सा चंचल
या कि डोली सा बेझिल उल्लास
बादल,
रूप बदलते हैं और मन
हरी दूब पर
चित लेटकर
देखता है
बहुरूपिया आकाश
पर मन
कब बादल हो गया
उसे भी नहीं मालूम
कलम कब रुकी
सिर्फ शब्द जानते है!
पर ओशो के शब्द रुककर भी विचारो की प्रतिध्वनियों में बदलकर अस्तित्व में गूंजते रहते है । ऐसे ही गुंजन का यह गुलदस्ता बिन बाती बिन तेल इस पुस्तक मे संकलित है । तो आइए, बाहरी उपायों की बैसाखियां त्यागकर आत्मबोध की पगडंडी से आनंद और मुक्ति का महामार्ग बनाते हुए साथ साथ चले ।
अनुक्रम |
||
1 |
मृण्मय घट में चिन्मय दीप |
1 |
2 |
मन की आंखे खोल |
19 |
3 |
ध्यान एक अकथ कहानी |
37 |
4 |
सुखी आदमी का अंगरखा |
55 |
5 |
जीवन एक वर्तुल है |
73 |
6 |
प्रेम मृत्यु से महान |
91 |
7 |
मनुष्य की जड़ परमात्मा |
109 |
8 |
बेईमानी संसार के मालकियत की कुंजी |
127 |
9 |
जहां वासना, वहां विवाद |
143 |
10 |
भक्त की पहचान शिकायत शून्य ह्रदय |
161 |
11 |
मृत्यु जीव का द्वार |
181 |
12 |
पृथ्वी में जड़े, आकाश में पंख |
199 |
13 |
प्रयास नहीं, प्रसाद |
217 |
14 |
जो जगाये, वही गुरु |
235 |
15 |
आखिरी भोजन हो गया |
255 |
16 |
साधु, असाधु और संत |
273 |
17 |
अहंकार की उलझी पूंछ |
291 |
18 |
वासना रहितता और विशुद्ध इंद्रियां |
309 |
19 |
चल उड़ जा रे पंछी |
329 |
बिन बाती बिन तेल
सूफी, झेन व उपनिषद की कहानियों एवं बोध कथाओं पर ओशो की वाणी जो कथाओं के मर्म में उतरती है और उनके एक एक पहलू को मार्ग प्रशस्त करने वाला दीपक बना देती है।
पुस्तक के कुछ विषय बिंदु
प्रेम
मृत्यु
सुख दुख
वासना
प्रयास और प्रसाद
प्रस्तावना
आग का दरिया और रोशनी की झील
जब कोई नाम विचार मे ढलता हुआ जीवन चिंतक और जीवन दर्शन का आकार लेने लगता है, तब समाज की जीवन शैली प्रभावित होती है । समाज अपने हर युग में अपने तथाकथित मूल्यो को सख्त बर्फीली दीवारों मे घेर कर रखता है । जब कोई विचारक उन दीवारों पर अपनी ऊष्मापूर्ण अंगुलियां फेरता है, तब समाज की रूढ़ियां गहराई तक दरकने लगती हैं, उसकी दीवार गलने लगती हें । समाज और तथाकथित धार्मिक संस्थाएं सतर्क और उत्तेजित लगने लगते है । पर हर क्रांतिकारी, परिवर्तनकारी चिंतक को हर युग मे इन विरोधो की सुरंगों से गुजरना पड़ा है । आग के इस दरिया से रास्ता निकालना पड़ा है । सदियो की कुंठित परंपराओं के ऐसे सख्त पहाड़ों को चीरकर रोशनी की की झील तक कोई चिंतक समूचे वर्तमान को ले जाने की क्षमता रखता है । ऐसी ही लबालब रोशनी की झील हमारे वर्तमान से प्रवाहित हुई, जिसके उदगम हैं ओशो!
कई दशकों को अपनी विचार ज्योति से प्रकाशित करने वाले ओशो विवादों के घेरे रहे विरोधों और विरोधाभास के घेरे उनके आसपास मंडराये पर वे हमेशा केन्द्र बिंदु रहे पक्ष विपक्ष मे तर्कों की शृंखलाएं बनती बिगड़ती रहीं पर अखंड ज्योति जागरण और आत्मचिंतन के प्रकाशपुंज से शांत मुस्कान लिए वे मुक्ति के लिए निरंतर मुखरित रहे । जीवन संदेश का अविरल प्रवाह न खंडित हुआ और न कभी शिथिल पडा । प्रस्तुत पुस्तक बिन बाती बिन तेल मे पूना में दिए 19 प्रवचनो का संकलन है । इस विचार संकलन में व्यक्ति के अस्तित्व को सर्वोपरि मानकर उसकी अंतर्दृष्टि को जाग्रत करने की कथा यात्रा है । ओशो मानते हैं कि बिना अंतर्दृष्टि के आदमी इस संसार में भटक जाएगा । अंत च्रु के खुलने से ही अंतर्विरोध विसर्जित होंगे और वह अपने आपको पहचान सकेगा । बिना बाती और बिना तेल के इस अंतर्दृष्टि की रोशनी से उसका जीवन सतत प्रकाशमान रहेगा । रोशनी के जितने भी बाहरी साधन है तेल बाती, एक दिन, किसी भी पल किसी कारण बुझ सकते है, पर भीतर जगी रोशनी किसी बाहरी भौतिक साधन की मोहताज नहीं, वह तो आंतरिक चेतना और शक्ति का उदगम स्थान होती है । ऐसी रोशनी के लिए ओशो अपनी विशिष्ट शैली में छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से अपनी व्याख्या प्रस्तुत करते है । ऊपर से हल्की फुल्की लगनेवाली ये कहानियां जीवन के गहनतम और सूक्ष्मतम रहस्यों से परदा उठाती है ।
ओशो भाषा और विचारों के जादूगर है, नियंता है । दुर्गम से दुर्गम भावलोक तक पहुंचने के लिए उन्होंने विचारों को कभी बोझिल नहीं होने दिया । उनके समर्थ शब्द और ठोस भाषा इन दुर्गम प्रदेशों से एक पगडंडी बनाते हुए बड़ी सहजता और सरलता से पाठको को लक्ष्य तक ले चलते है । उनकी भाषा पर दूर दूर तक, खोजने पर अहंकार और दंभ के कहीं कोई निशान दिखाई नहीं देते । लक्ष्य, संदेश जितना पवित्र होता है, भाषा उतनी ही सुगम । बहती नदी सी कल कल करती हुई वेगवान और सहज प्रवाहपूर्ण भाषा के साथ शब्दों के चमत्कारी मे अनायास ही संगीत का आभास होता है ।
मनुष्य का जीवन तमाम मनोभावों और मनोविकारो का केन्द्र रहा है । ओशो एक कुशल मनोवैज्ञानिक की भूमिका मे क्रोध, लोभ, वासना, अहंकार जैसे मनोविकारो के उदगम और स्वभाव को व्याख्यायित करते है । इनकी जड़ों की ओर संकेत कर आगाह करते है, वहीं प्रेम, श्रद्धा, विश्वास, आस्था जैसे गुणों के लिए वे कई कई महामार्गो का उदघाटन करते है । उन्होंने कही सीधे उपचार देने के बजाय व्यक्ति को उपचार ढूंढने के लिए सक्रिय करने पर जोर दिया । जहां कुछ संकेत करना हुआ, वहां दमन और वमन से बचने के लिए जीवन की सहजतम प्राकृतिक उपचार को प्राथमिकता दी । प्रेम जैसी चिरंतन मानवीय संवेदना को व्यापक या सर्वव्यापी परिप्रेक्ष्य मे ठोस संदर्भ देकर ऊर्जा के स्थायी स्रोतो का वे अनुसंधान करते है ।
इस पुस्तक मे वे अपना सारा चिंतन अंतर्दृष्टि पर केद्रित करते है । मन की आखें खोलने का आग्रह करते है । वे मानते है कि जब तक भीतरी आखें नहीं खुलेंगी, तब तक गीता, कुरान, बाइबल, सब बाहरी उपकरण ही होंगे, दृष्टि नही बन सकते । इन उपकरणों को रोशनी मे तब्दील करने का काम भीतरी आखों का हें । एक बार आदमी की भीतरी आंखे खुल गई तो वह अगम. अगोचर को भी जान सकता है और उसकी यह रोशनी बिन बाती बिन तेल के आजीवन दमकती रह सकती है । इन सारी विचार शृंखलाओं को ओशो एक कविता की तरह कह जाते है । उनका आग्रह है कि जिस तरह किसी बादल को हम अपनी कल्पना दृष्टि से अलग अलग और मनचाहे आकार में ढालते है उसी प्रकार जीवन की मुक्ति के सही मार्ग को हमारी अपनी भीतरी आखों के खुलने पर ही आकार दिया जा सकता है। प्रत्येक मनुष्य को यह रास्ता स्वयं खोजना होगा । बादल तो निरंतर बहते रहेंगे । अपने मन की छवि का आकार अपने आप हमारे हृदय पर अंकित हो जायेगा । आवश्यकता है तो सिर्फ उस आकार को तराशनेवाली आखों के खुलने की
अबाध बादलो की तरह
मन कभी घोड़ा
कभी हरिण
कभी कबूतर सा चंचल
या कि डोली सा बेझिल उल्लास
बादल,
रूप बदलते हैं और मन
हरी दूब पर
चित लेटकर
देखता है
बहुरूपिया आकाश
पर मन
कब बादल हो गया
उसे भी नहीं मालूम
कलम कब रुकी
सिर्फ शब्द जानते है!
पर ओशो के शब्द रुककर भी विचारो की प्रतिध्वनियों में बदलकर अस्तित्व में गूंजते रहते है । ऐसे ही गुंजन का यह गुलदस्ता बिन बाती बिन तेल इस पुस्तक मे संकलित है । तो आइए, बाहरी उपायों की बैसाखियां त्यागकर आत्मबोध की पगडंडी से आनंद और मुक्ति का महामार्ग बनाते हुए साथ साथ चले ।
अनुक्रम |
||
1 |
मृण्मय घट में चिन्मय दीप |
1 |
2 |
मन की आंखे खोल |
19 |
3 |
ध्यान एक अकथ कहानी |
37 |
4 |
सुखी आदमी का अंगरखा |
55 |
5 |
जीवन एक वर्तुल है |
73 |
6 |
प्रेम मृत्यु से महान |
91 |
7 |
मनुष्य की जड़ परमात्मा |
109 |
8 |
बेईमानी संसार के मालकियत की कुंजी |
127 |
9 |
जहां वासना, वहां विवाद |
143 |
10 |
भक्त की पहचान शिकायत शून्य ह्रदय |
161 |
11 |
मृत्यु जीव का द्वार |
181 |
12 |
पृथ्वी में जड़े, आकाश में पंख |
199 |
13 |
प्रयास नहीं, प्रसाद |
217 |
14 |
जो जगाये, वही गुरु |
235 |
15 |
आखिरी भोजन हो गया |
255 |
16 |
साधु, असाधु और संत |
273 |
17 |
अहंकार की उलझी पूंछ |
291 |
18 |
वासना रहितता और विशुद्ध इंद्रियां |
309 |
19 |
चल उड़ जा रे पंछी |
329 |