पुस्तक के बारे में
मुल्ला वजही दकनी उर्दू की पहली मौलिक मस्नवी (कुतब मुश्तरी) के मधुरभाषी शायर, दकनी उर्दू के गद्य की पहली कीर्तिमान रचना (सबरस) के महान लेखक, सूफी साहित्य की पहली कृति (ताजुलहक़ायक) के प्रस्तुतकर्ता और उर्दू के पहले निबंधकार थे । वह उर्दू निबंध के प्रवर्तक थे ।
मस्नवी ‘कुतब मुश्तरी’ में वजही ने साहित्य के मूल्यों के संबंध में व्यापक दृष्टि के साथ सविस्तार अपने विचारों को व्यक्त किया है ।
वजही फारसी के भी महान शायर थे । उनकी फ़ारसी शायरी फारसी की इराक़ी और भारतीय धारा को परस्पर जोड़ती है । वह स्पष्ट तौर पर अपने वक़्त के पैग़ंबर थे । कहते हैं:
मोजज़ा शे’र अस्त-ओ-मा पैरांबर-ए-वक्त खुदीम
काफ़िर अस्त आंकस कि शक अददबरी ऐजाज़-ए-मा
इन विचारों के आलोक में मुल्ला वजही को उर्दू साहित्य के इतिहास में पद्य-बद्ध आलोचना का प्रवर्तक कहा जा सकता है । ‘सबरस’ के समापन में शायरी और अदब की विशेषताओं का सूत्र रूप में विवेचन किया गया है । ‘सबरस’ की भाषा प्राचीन हिंदी परंपरा और फ़ारसी रिवायत का संधिस्थल है और हिंदी रूप-रस तथा फ़ारसी रंग का संगम है ।
उर्दू के पितामह मौलवी अब्दुल हक़ साहब ने मुल्ला वजही की मस्नवी ‘कुतब मुश्तरी’ की खोज की थी । यह मस्यवी नस्ख़ ख़त में लिखी गयी थी । आवरण पर उसी मस्नवी का एक पन्ना अंकित है ।
क्रम |
पृं.सं. |
|
1 |
गोलकुंडा का दकन नूर हीरा |
7 |
2 |
जीवन वृत |
13 |
3 |
उर्दू की पहली मौलिक मस्नवी: कुतब मुश्तरी |
23 |
4 |
वजही की उर्दू शायरी |
40 |
5 |
वजही की फ़ारसी शायरी |
47 |
6 |
पहली गद्य रचना ताजुलहक़ायक़ |
54 |
7 |
सबरस |
59 |
8 |
उर्दू निबंध के प्रवर्त्तक |
83 |
9 |
सहायक पुस्तकें |
103 |
पुस्तक के बारे में
मुल्ला वजही दकनी उर्दू की पहली मौलिक मस्नवी (कुतब मुश्तरी) के मधुरभाषी शायर, दकनी उर्दू के गद्य की पहली कीर्तिमान रचना (सबरस) के महान लेखक, सूफी साहित्य की पहली कृति (ताजुलहक़ायक) के प्रस्तुतकर्ता और उर्दू के पहले निबंधकार थे । वह उर्दू निबंध के प्रवर्तक थे ।
मस्नवी ‘कुतब मुश्तरी’ में वजही ने साहित्य के मूल्यों के संबंध में व्यापक दृष्टि के साथ सविस्तार अपने विचारों को व्यक्त किया है ।
वजही फारसी के भी महान शायर थे । उनकी फ़ारसी शायरी फारसी की इराक़ी और भारतीय धारा को परस्पर जोड़ती है । वह स्पष्ट तौर पर अपने वक़्त के पैग़ंबर थे । कहते हैं:
मोजज़ा शे’र अस्त-ओ-मा पैरांबर-ए-वक्त खुदीम
काफ़िर अस्त आंकस कि शक अददबरी ऐजाज़-ए-मा
इन विचारों के आलोक में मुल्ला वजही को उर्दू साहित्य के इतिहास में पद्य-बद्ध आलोचना का प्रवर्तक कहा जा सकता है । ‘सबरस’ के समापन में शायरी और अदब की विशेषताओं का सूत्र रूप में विवेचन किया गया है । ‘सबरस’ की भाषा प्राचीन हिंदी परंपरा और फ़ारसी रिवायत का संधिस्थल है और हिंदी रूप-रस तथा फ़ारसी रंग का संगम है ।
उर्दू के पितामह मौलवी अब्दुल हक़ साहब ने मुल्ला वजही की मस्नवी ‘कुतब मुश्तरी’ की खोज की थी । यह मस्यवी नस्ख़ ख़त में लिखी गयी थी । आवरण पर उसी मस्नवी का एक पन्ना अंकित है ।
क्रम |
पृं.सं. |
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1 |
गोलकुंडा का दकन नूर हीरा |
7 |
2 |
जीवन वृत |
13 |
3 |
उर्दू की पहली मौलिक मस्नवी: कुतब मुश्तरी |
23 |
4 |
वजही की उर्दू शायरी |
40 |
5 |
वजही की फ़ारसी शायरी |
47 |
6 |
पहली गद्य रचना ताजुलहक़ायक़ |
54 |
7 |
सबरस |
59 |
8 |
उर्दू निबंध के प्रवर्त्तक |
83 |
9 |
सहायक पुस्तकें |
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