पुस्तक परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (1899-1961) आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में स्वतंत्र काव्य-मार्ग की खोज करनेवाले एक ऐसे महत्त्वपूर्ण कवि हैं, जिनमें परम्परा और आधुनिकता के द्वन्द्व का मार्मिक साक्ष्य मौजूद है । स्वच्छन्दतावाद और यथार्थवाद के तनाव में निराला की कविताएँ, कहानियाँ और उपन्यास जो रचनात्मक संगठन उपलब्ध करते हैं, उसकी केन्द्रीय प्ररेणा निराला की स्वाधीनता या मुक्ति की धारणा में निहित है । बंगाल के सांस्कृतिक नवजागरण से प्रेरणा लेते हुए भी निराला अपने जनपदीय जीवन अथवा लोकसंस्कृति से जीवन-रस ग्रहण करते हैं । निराला के साहित्यिक संघर्ष पर एक द्वन्द्व-समृद्ध जीवन-प्रक्रिया की गहरी छाप दिखाई देती है । निराला के कृतित्व में उनका आत्म-संघर्ष और उनके समय का सामाजिक यथार्थ-दोनों इस तरह प्रकट हैं कि उन्हें एक-दूसरे से अलग करना संभव नहीं । संस्कृति से निरन्तर संवाद निराला के उत्तेजक बहुआयामी रचनात्मक कृतित्व की अपनी विशेषता है । इस संवाद में कल्पना का साहस ही नहीं जटिल यथार्थ की समझ भी मुखर है ।
पूरे छायावाद युग में और संभवत: छायावादोत्तर-युग में भी निराला-जैसी प्रतिभा का दूसरा रचनात्मक लेखक नहीं है । निराला हर तरह से हिन्दी की जातीय रचनात्मक परम्परा के अद्वितीय लेखक हैं-व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों दृष्टियों से ।
लेखक परिचय
अनुक्रम
1
'स्वाधीन' का ही एक और अर्थ 'निर्भय' है
7
2
दुख ही जीवन की कथा रही
14
3
अनुभव की व्यापकता का अर्थ
22
4
गीत गाने दो मुझे तो वेदना को रोकने को
36
5
लम्बी कविताएँ अंतर्वस्तु और तत्र
43
6
कविता का यथार्थ यथार्थ की व्यंग्यात्मक परिणति
58
कहानी के परिचित रूप का अतिक्रमण
68
8
नवीन सामाजिकता और उपन्यास का यथार्थ
78
9
संस्कृति से बहस
88
परिशिष्ट-
(अ) निराला की रचनाएँ
93
(ब) सहायक-सामग्री
95
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