लेखक के दो शब्द
गत धन्वतरि-जयन्ती के अवसर पर ही श्री बैद्यनाथ आयुवेंद भवन प्रा० लि० के प्रकाशन-विभाग का प्रस्ताव हुआ कि बिहार-राज्य आयुर्वेद-यूनानी अधिकाय के दीक्षान्त-समारोह के अवसर पर 'वनौषधि-शतक' 'नामक' पुस्तक प्रकाशित कर दी जाय । यों मेरा तो पहले से ही यह विचार था कि इस प्रकार की एक पुस्तक लिखी और प्रकाशित की जानी चाहिए । यह स्वाभाविक है कि ऐसी पुस्तक वैद्य-समाज एवं जन-समाज दो नो ही के लिए उपयोगी हो सकती है । किन्तु मेरा विशेष ध्यान इस पुस्तक को जनोपयोगी बनाने का ही था, क्योंकि हमारी जनता अपनी वनौषधियों को तथा उनके महत्व को भूलती जा रही है । प्राय: आयुर्वेद के विद्यार्थियों को भी यह शिकायत रही है कि उन्हें वनौषधियों के सचित्र परिचय प्राय: उपलब्ध नहीं हो पाते । और, देश में जो थोड़े-से वनौषधि-उद्यान हैं वे भी नाम मात्र के ही हैं क्योंकि उनमें बहुत थोड़ी-सी वनौषधियाँ मिल पाती हैं ।
समय कम था और मेरी व्यस्तता भी बहुत थी । इसी बीच बिहार-राज्य आयुर्वेद-यूनानी अधिकाय का अध्यक्ष होने के नाते मुझे दीक्षान्त-समारोह की तैयारी में भी व्यस्त हो जाना पड़ा । परन्तु 'वनौषधि-शतक सम्बन्धी' कुछ काम मैंने पहले से ही कर रक्खा था और कुछ चित्र भी बने हुए थे ।
किसी विशिट विचारक ने ठीक ही कहा है कि संसार के बड़े-से-बड़े काम भी प्राय: जल्दबाजी में ही होते हैं और इतमीनान की माँग प्राय: आलसी लोग ही करते हैं । अत: मैं कृतसंकल्प हो गया कि निर्धारित अवधि के भीतर इस कार्य को कर ही डालना है । परिश्रम को असाधारणरूप से करना पड़ा और प्राय: कठिन परिश्रम करना पड़ा । किन्तु मुझे स्व० पिताजी, पूजनीया माताजी, श्रद्वेय विद्वान् चाचाजी वैद्यराज पं० रामनारायणजी शर्मा, अनुभवी तथा स्वस्थ चिन्तक अग्रज पं० हजारी लाल जी शर्मा एवं समस्त गुरुजनों के आशीर्वादों का बड़ा भरोसा था । और मुझे प्रसन्नता है कि निर्धारित अवधि के भीतर संकल्प पूरा हो गया। जो कुछ भी और जैसा कुछ भी बन पड़ा वह कृपालु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है ।
चित्रों के सम्बन्ध में तो काफी कठिनाई हुई । मेरा विचार था कि प्रत्येक वनौषधि के प्राकृतिक चित्र दिए जायँ, जिनमें उन के सभी रंग यथास्थान आ जायँ । अवश्य ही बहुत-सी वनस्पतियों के इस प्रकार के पूर्ण एवं स्वाभाविक चित्र इस पुस्तक में प्रकाशित हो सके है । परन्तु शीघ्रता एवं समयाभाव के कारण कई वनौषधियों के इकरंगे चित्र ही सम्भव हो सके है । और थोड़ी-सी वनस्पतियों के चित्रों के तो ब्लॉक ही समय पर न वनसके जिसके कारण उन्हें अचित्र ही प्रकाशित करना पड़ा । समयाभाव तथा चित्र-सम्बन्धी कठिनाइयों के कारण वनौषधियों के चयन में भी चित्रों की सुलभता-दुर्लभता का ध्यान रखना पड़ा ।
किन्तु हमारे सदय पाठक देखेंगे कि इस पुस्तक की खास लोक-सार्थकता है, वनौषधि-सम्बन्यी अन्य पुस्तकों की अपेक्षा चित्रों का अनुपात भी अधिक है ओंर बहुरंगे चित्रों का अनुपात तो और भी अधिक है । फिर भी, समयाभाव के कारण जो चित्र इकरंगे रह गए अथवा जो प्रकाशित ही न हो सके उनके लिए मैं दु:खी हूँ और सहृदय पाठकों से, इस त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
इसी प्रकार, जल्दबाजी में लेखन-मुद्रण के जो दोष रह गए हैं उनके लिए भी मैं उदार पाठकों से क्षमायाचना करता हूँ । 'गणा: दर्शनीया: न तु दोषा: । 'अतएव मैं आश्वस्त हूँ कि विचारवान पाठक पुस्तक की उपयोगिता एवं विशेषताओं की दृष्टि सै इस पर विचार करेंगे न कि त्रुटियों की दृष्टि से ।
मैं कविराज पं० सभाकान्त झा शास्री जी का बहुत ही आभारी हूँ कि उन्होंने पुस्तक के मुद्रण एवं चित्रांकन में पर्याप्त तत्परता दिखायी है । इसी प्रकार मैं जनवाणी प्रिंटर्स एण्ड पब्लिशर्स के व्यवस्थापक श्री ज्ञानेन्द्र शर्मा जी का भी अतिशय कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने इस पुस्तक को यथासाध्य तत्परता एवं सुन्दरता से मुद्रित कराया है और महीनों का काम सप्ताहों में ही पूरा कर दिया है ।
यत्साधितं तत्समर्पितं-बहुजनहिताय बहुजनसुखाय 'कथमधिकं 'विज्ञेभ्य:।'
जय वनौषधि! जय आयुर्वेद
विषय-सूची |
||
1 |
अकरकरा |
1 |
2 |
अगस्त |
3 |
3 |
अजवायन |
4 |
4 |
असगन्ध |
8 |
5 |
अडूसा |
9 |
6 |
अमलतास |
10 |
7 |
अनन्तमूल (सारिवा) |
11 |
8 |
अंकोल |
12 |
9 |
अशोक |
13 |
10 |
अतीस |
14 |
11 |
अर्जुन |
15 |
12 |
आम |
16 |
13 |
इमली |
21 |
14 |
ईसबगोल (ईषद्रोल) |
24 |
15 |
एरण्ड |
26 |
16 |
कचनार |
27 |
17 |
काकमाची (मकोय) |
29 |
18 |
काली मरिच |
32 |
19 |
कालमेघ |
33 |
20 |
कासनी |
34 |
21 |
कीडामारी |
35 |
22 |
कुटज |
38 |
23 |
कुचला |
42 |
24 |
कालिहारी |
46 |
25 |
कण्टकारी (छोटी) |
47 |
26 |
कण्टकारी (बड़ी) |
48 |
27 |
कट्फल (कायफल) |
49 |
28 |
कपूर |
50 |
29 |
काकड़ासिंगी |
51 |
30 |
कालादाना |
52 |
31 |
गम्भारी |
54 |
32 |
गाजर |
54 |
33 |
गुड़मार |
59 |
34 |
गुडूची |
62 |
35 |
गुलतुर्रा |
66 |
36 |
गेन्दा |
70 |
37 |
घृतकुमारी |
72 |
38 |
चालमोगरा |
73 |
39 |
चित्रक |
74 |
40 |
चिरायता |
75 |
41 |
चोपचीनी |
76 |
42 |
छतिवन (सप्तपर्ण) |
77 |
43 |
जमालगोटा |
78 |
44 |
जवासा |
79 |
45 |
जलधनियाँ |
81 |
46 |
जामुन |
84 |
47 |
जायफल |
88 |
48 |
जीरा सफेद |
89 |
49 |
जीरा स्याह |
90 |
50 |
टमाटर |
91 |
51 |
ढाक (पलाश) |
92 |
52 |
तालमखाना |
93 |
53 |
तालीस पत्र |
94 |
54 |
ताम्बूल (पान) |
94 |
55 |
तिल |
96 |
56 |
तिलपुष्पी |
97 |
57 |
तीसी (अलसी) |
103 |
58 |
तुलसी |
104 |
59 |
थूहर |
105 |
60 |
दालचीनी |
106 |
61 |
दुद्धी |
108 |
62 |
द्रोणपुष्पी |
116 |
63 |
धतूरा |
116 |
64 |
धनिया |
119 |
65 |
धात्रीफल (आँवला) |
120 |
66 |
धातकी (धाय) |
121 |
67 |
नरगिस |
121 |
68 |
नीम |
124 |
69 |
नीम्बू |
130 |
70 |
पाषाणभेद |
133 |
71 |
पुष्करमूल |
134 |
72 |
रक्त पुनर्नवा |
135 |
73 |
पुदीना |
143 |
74 |
पुदीना के फूल |
143 |
75 |
बब्बूल |
144 |
76 |
वरुण |
147 |
77 |
बहेड़ा |
148 |
78 |
बादाम |
148 |
79 |
ब्राह्मी |
154 |
80 |
भाँग |
160 |
81 |
भाँगरा |
166 |
82 |
मुस्तक (मोथा) |
168 |
83 |
मूली |
176 |
84 |
रास्ना |
179 |
85 |
रेबन्दचीनी |
184 |
86 |
लज्जालू (लजबिज्ली) |
187 |
87 |
शंखपुष्पी |
190 |
88 |
शतावरी |
191 |
89 |
शाहतरा |
192 |
90 |
सनाय |
195 |
91 |
सत्यानासी |
196 |
92 |
सरफोंका |
200 |
93 |
सर्पगन्धा |
201 |
94 |
सेव |
206 |
95 |
सौंफ |
207 |
96 |
हरड़ |
212 |
97 |
हरमल |
216 |
98 |
हल्दी |
218 |
99 |
हिरनपदी |
219 |
100 |
नकछिकनी |
220 |
101 |
हींग |
223 |
लेखक के दो शब्द
गत धन्वतरि-जयन्ती के अवसर पर ही श्री बैद्यनाथ आयुवेंद भवन प्रा० लि० के प्रकाशन-विभाग का प्रस्ताव हुआ कि बिहार-राज्य आयुर्वेद-यूनानी अधिकाय के दीक्षान्त-समारोह के अवसर पर 'वनौषधि-शतक' 'नामक' पुस्तक प्रकाशित कर दी जाय । यों मेरा तो पहले से ही यह विचार था कि इस प्रकार की एक पुस्तक लिखी और प्रकाशित की जानी चाहिए । यह स्वाभाविक है कि ऐसी पुस्तक वैद्य-समाज एवं जन-समाज दो नो ही के लिए उपयोगी हो सकती है । किन्तु मेरा विशेष ध्यान इस पुस्तक को जनोपयोगी बनाने का ही था, क्योंकि हमारी जनता अपनी वनौषधियों को तथा उनके महत्व को भूलती जा रही है । प्राय: आयुर्वेद के विद्यार्थियों को भी यह शिकायत रही है कि उन्हें वनौषधियों के सचित्र परिचय प्राय: उपलब्ध नहीं हो पाते । और, देश में जो थोड़े-से वनौषधि-उद्यान हैं वे भी नाम मात्र के ही हैं क्योंकि उनमें बहुत थोड़ी-सी वनौषधियाँ मिल पाती हैं ।
समय कम था और मेरी व्यस्तता भी बहुत थी । इसी बीच बिहार-राज्य आयुर्वेद-यूनानी अधिकाय का अध्यक्ष होने के नाते मुझे दीक्षान्त-समारोह की तैयारी में भी व्यस्त हो जाना पड़ा । परन्तु 'वनौषधि-शतक सम्बन्धी' कुछ काम मैंने पहले से ही कर रक्खा था और कुछ चित्र भी बने हुए थे ।
किसी विशिट विचारक ने ठीक ही कहा है कि संसार के बड़े-से-बड़े काम भी प्राय: जल्दबाजी में ही होते हैं और इतमीनान की माँग प्राय: आलसी लोग ही करते हैं । अत: मैं कृतसंकल्प हो गया कि निर्धारित अवधि के भीतर इस कार्य को कर ही डालना है । परिश्रम को असाधारणरूप से करना पड़ा और प्राय: कठिन परिश्रम करना पड़ा । किन्तु मुझे स्व० पिताजी, पूजनीया माताजी, श्रद्वेय विद्वान् चाचाजी वैद्यराज पं० रामनारायणजी शर्मा, अनुभवी तथा स्वस्थ चिन्तक अग्रज पं० हजारी लाल जी शर्मा एवं समस्त गुरुजनों के आशीर्वादों का बड़ा भरोसा था । और मुझे प्रसन्नता है कि निर्धारित अवधि के भीतर संकल्प पूरा हो गया। जो कुछ भी और जैसा कुछ भी बन पड़ा वह कृपालु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है ।
चित्रों के सम्बन्ध में तो काफी कठिनाई हुई । मेरा विचार था कि प्रत्येक वनौषधि के प्राकृतिक चित्र दिए जायँ, जिनमें उन के सभी रंग यथास्थान आ जायँ । अवश्य ही बहुत-सी वनस्पतियों के इस प्रकार के पूर्ण एवं स्वाभाविक चित्र इस पुस्तक में प्रकाशित हो सके है । परन्तु शीघ्रता एवं समयाभाव के कारण कई वनौषधियों के इकरंगे चित्र ही सम्भव हो सके है । और थोड़ी-सी वनस्पतियों के चित्रों के तो ब्लॉक ही समय पर न वनसके जिसके कारण उन्हें अचित्र ही प्रकाशित करना पड़ा । समयाभाव तथा चित्र-सम्बन्धी कठिनाइयों के कारण वनौषधियों के चयन में भी चित्रों की सुलभता-दुर्लभता का ध्यान रखना पड़ा ।
किन्तु हमारे सदय पाठक देखेंगे कि इस पुस्तक की खास लोक-सार्थकता है, वनौषधि-सम्बन्यी अन्य पुस्तकों की अपेक्षा चित्रों का अनुपात भी अधिक है ओंर बहुरंगे चित्रों का अनुपात तो और भी अधिक है । फिर भी, समयाभाव के कारण जो चित्र इकरंगे रह गए अथवा जो प्रकाशित ही न हो सके उनके लिए मैं दु:खी हूँ और सहृदय पाठकों से, इस त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
इसी प्रकार, जल्दबाजी में लेखन-मुद्रण के जो दोष रह गए हैं उनके लिए भी मैं उदार पाठकों से क्षमायाचना करता हूँ । 'गणा: दर्शनीया: न तु दोषा: । 'अतएव मैं आश्वस्त हूँ कि विचारवान पाठक पुस्तक की उपयोगिता एवं विशेषताओं की दृष्टि सै इस पर विचार करेंगे न कि त्रुटियों की दृष्टि से ।
मैं कविराज पं० सभाकान्त झा शास्री जी का बहुत ही आभारी हूँ कि उन्होंने पुस्तक के मुद्रण एवं चित्रांकन में पर्याप्त तत्परता दिखायी है । इसी प्रकार मैं जनवाणी प्रिंटर्स एण्ड पब्लिशर्स के व्यवस्थापक श्री ज्ञानेन्द्र शर्मा जी का भी अतिशय कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने इस पुस्तक को यथासाध्य तत्परता एवं सुन्दरता से मुद्रित कराया है और महीनों का काम सप्ताहों में ही पूरा कर दिया है ।
यत्साधितं तत्समर्पितं-बहुजनहिताय बहुजनसुखाय 'कथमधिकं 'विज्ञेभ्य:।'
जय वनौषधि! जय आयुर्वेद
विषय-सूची |
||
1 |
अकरकरा |
1 |
2 |
अगस्त |
3 |
3 |
अजवायन |
4 |
4 |
असगन्ध |
8 |
5 |
अडूसा |
9 |
6 |
अमलतास |
10 |
7 |
अनन्तमूल (सारिवा) |
11 |
8 |
अंकोल |
12 |
9 |
अशोक |
13 |
10 |
अतीस |
14 |
11 |
अर्जुन |
15 |
12 |
आम |
16 |
13 |
इमली |
21 |
14 |
ईसबगोल (ईषद्रोल) |
24 |
15 |
एरण्ड |
26 |
16 |
कचनार |
27 |
17 |
काकमाची (मकोय) |
29 |
18 |
काली मरिच |
32 |
19 |
कालमेघ |
33 |
20 |
कासनी |
34 |
21 |
कीडामारी |
35 |
22 |
कुटज |
38 |
23 |
कुचला |
42 |
24 |
कालिहारी |
46 |
25 |
कण्टकारी (छोटी) |
47 |
26 |
कण्टकारी (बड़ी) |
48 |
27 |
कट्फल (कायफल) |
49 |
28 |
कपूर |
50 |
29 |
काकड़ासिंगी |
51 |
30 |
कालादाना |
52 |
31 |
गम्भारी |
54 |
32 |
गाजर |
54 |
33 |
गुड़मार |
59 |
34 |
गुडूची |
62 |
35 |
गुलतुर्रा |
66 |
36 |
गेन्दा |
70 |
37 |
घृतकुमारी |
72 |
38 |
चालमोगरा |
73 |
39 |
चित्रक |
74 |
40 |
चिरायता |
75 |
41 |
चोपचीनी |
76 |
42 |
छतिवन (सप्तपर्ण) |
77 |
43 |
जमालगोटा |
78 |
44 |
जवासा |
79 |
45 |
जलधनियाँ |
81 |
46 |
जामुन |
84 |
47 |
जायफल |
88 |
48 |
जीरा सफेद |
89 |
49 |
जीरा स्याह |
90 |
50 |
टमाटर |
91 |
51 |
ढाक (पलाश) |
92 |
52 |
तालमखाना |
93 |
53 |
तालीस पत्र |
94 |
54 |
ताम्बूल (पान) |
94 |
55 |
तिल |
96 |
56 |
तिलपुष्पी |
97 |
57 |
तीसी (अलसी) |
103 |
58 |
तुलसी |
104 |
59 |
थूहर |
105 |
60 |
दालचीनी |
106 |
61 |
दुद्धी |
108 |
62 |
द्रोणपुष्पी |
116 |
63 |
धतूरा |
116 |
64 |
धनिया |
119 |
65 |
धात्रीफल (आँवला) |
120 |
66 |
धातकी (धाय) |
121 |
67 |
नरगिस |
121 |
68 |
नीम |
124 |
69 |
नीम्बू |
130 |
70 |
पाषाणभेद |
133 |
71 |
पुष्करमूल |
134 |
72 |
रक्त पुनर्नवा |
135 |
73 |
पुदीना |
143 |
74 |
पुदीना के फूल |
143 |
75 |
बब्बूल |
144 |
76 |
वरुण |
147 |
77 |
बहेड़ा |
148 |
78 |
बादाम |
148 |
79 |
ब्राह्मी |
154 |
80 |
भाँग |
160 |
81 |
भाँगरा |
166 |
82 |
मुस्तक (मोथा) |
168 |
83 |
मूली |
176 |
84 |
रास्ना |
179 |
85 |
रेबन्दचीनी |
184 |
86 |
लज्जालू (लजबिज्ली) |
187 |
87 |
शंखपुष्पी |
190 |
88 |
शतावरी |
191 |
89 |
शाहतरा |
192 |
90 |
सनाय |
195 |
91 |
सत्यानासी |
196 |
92 |
सरफोंका |
200 |
93 |
सर्पगन्धा |
201 |
94 |
सेव |
206 |
95 |
सौंफ |
207 |
96 |
हरड़ |
212 |
97 |
हरमल |
216 |
98 |
हल्दी |
218 |
99 |
हिरनपदी |
219 |
100 |
नकछिकनी |
220 |
101 |
हींग |
223 |