Description
पुस्तक के विषय में
रेशम की-सी नरम ठंडी मगर शैली में प्रस्तुत इस उपन्यास में एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके फटे बचपन ने उसके सहज भोलेपन को असमय चाक कर दिया और उसके तन-मन के गिर्द दुश्मनी की कँटीली बाड़ खींची दी!
अन्दर और बाहर की दोहरी दुश्मनी में जकड़ी रत्ती की लड़ाई मानवीय मन की नितांत उलझी हुई चाहत और जीवन-भरे संघर्ष का दस्तावेज है!
मित्रों मरजानी, डार सी बिछुड़ी और यारों के यार सी अलग आगे इस उपन्यास में कृष्णा सोबती ने गहन संवेदना के स्तर पर कलाकार की तीसरी आँख सी परत-दर-परत- तन-मन की साँवली प्यास को उकेरा है! आधुनिक भाव-बोध की पीठिका पर मनोविज्ञान की गूढ़तम पहेलियों को सादगी सी आँक कर सोबती ने एक ऐसे वयस्क माध्यम और शिल्प की स्थापना की है जो एक साथ परम्परागत शिल्प और मूल्यों को चुनौती है! आदर्शों की भव्यता से अलग हटकर अँधेरे के यथार्थ और सत्य के निरूपण की वह असाधारण सत्य-कथा है जिसका सत्य कभी मरता नहीं!
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