पुस्तक के विषय में
स्वामी निरंजानान्द सरस्वती द्वारा लिखित 'योग दर्शन' उपनिषदों की एक समकालीन यौगिक विवेचना प्रस्तुत करता है। इसमें योग की समग्र और प्रामाणिक रूपरेखा के साथ-साथ सम्पूर्ण आध्यात्मिक जीवन के व्यावहारिक पक्षों की भी विवेचना की गई है। सैद्धान्तिक भाग में हठ, राज, मन्त्र, कर्म, ज्ञान, लय और गुह्या योग के विस्तृत वर्णन के साथ-साथ योग की विभित्र परम्पओं और दर्शन का उल्लेख किया गया है।
व्यावहारिक भाग में योग उपनिषदों के उत्कुष्ट अभ्यासों, सामान्य बुद्धि योग, समग्रात्मक शरीर विज्ञान, असन्तुलन और रोग के कारण एवं स्वास्थ्य की यौगिक व्याख्या की गई है।
'एक यात्री था जो अनन्त काल से यात्रा करता आ रहा था उसकी यात्रा का उद्देश्य अपने नगर पहुँचना था पर वह नगर कत दूर था। यात्री धीरे-धीरे अपने पगों को अपने गन्तव्य की ओर बढ़ाते चलता था। नगर का नाम था ब्रह्मपुरी और यात्री का नाम था श्रीमान् आत्माराम सन् 2009 से स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती के जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ है और मुंगेर में योगदृष्टि सत्संग श्रृंखला के अन्तर्गत योग के विभिन्न पक्षों पर दिये गये प्रबोधक व्याख्यान स्वामीजी की इसी नयी जीवनशैली के अंग हैं।
हिमालय पर्वतों के सुरम्य, एकान्तमय वातावरण में गहन चिंतन करने के बाद स्वामीजी ने गंगा दर्शन लौटकर जून 2010 की योगदृष्टि सत्संग श्रृंखला में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति-मार्ग को अपने सत्संगों का विषय चुना । उनके विवेचन की शुरुआत एक प्रतीकात्मक कथा से होती है जिसका मुख्य नायक, आत्माराम, अपने गन्तव्य, ब्रह्मपुरी की ओर यात्रा कर रहा है । इस कथा को आधार बनाकर स्वामीजी ने बहुत सुन्दर ढंग से प्रवृत्ति तथा निवृत्ति मार्ग के मुख्य लक्षणों, साधनाओं और लक्ष्यों का निरूपण किया है । सांसारिक जीवन जीते हुए भी किस प्रकार सुख, सामंजस्य और संतुष्टि का अनुभव किया जा सकता है; जीवन के किस मोड़ पर साधक वास्तविक रूप से आध्यात्मिक मार्ग पर आता है; और साधक की इस यात्रा में मार्गदर्शक की क्या भूमिका होती है - आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित इन सभी आधारभूत प्रश्नों का उत्तर इन सत्संगों में निहित है।
विषय-सूची |
||
प्रथम खण्ड-सैद्धान्तिक पहलू |
||
विषय |
||
1 |
योग की वैदिक परम्परा |
1 |
2 |
सनातन संस्कृति |
10 |
3 |
विकासशील सजगता |
19 |
4 |
महत्वपूर्ण यौगिक शब्द |
29 |
5 |
यौगिक विद्या के विभिन्न पहलू |
41 |
6 |
कर्म योग |
54 |
7 |
ज्ञान योग |
72 |
8 |
हठ योग |
80 |
9 |
राजयोग (वृत्तियों की भूमिका) |
98 |
10 |
राजयोग (बहिरंग अवस्थायें) |
120 |
11 |
राजयोग ( आन्तरिक अवस्थायें) |
149 |
12 |
मन्त्र योग |
204 |
13 |
लय योग |
222 |
14 |
गुह्य योग |
229 |
15 |
द्वितीय खण्ड-व्यावहारिक पहलू विषय |
|
16 |
आसन |
265 |
17 |
प्राणायाम |
301 |
18 |
बन्ध और ग्रन्थियाँ |
358 |
19 |
मुद्रायें |
378 |
20 |
समग्रात्मक शरीर विज्ञान |
419 |
21 |
योग के अनुसार असन्तुलन |
425 |
22 |
और रोग के कारण |
|
23 |
सामान्य बुद्धि योग |
437 |
24 |
परिशिष्ट- |
446 |
पुस्तक के विषय में
स्वामी निरंजानान्द सरस्वती द्वारा लिखित 'योग दर्शन' उपनिषदों की एक समकालीन यौगिक विवेचना प्रस्तुत करता है। इसमें योग की समग्र और प्रामाणिक रूपरेखा के साथ-साथ सम्पूर्ण आध्यात्मिक जीवन के व्यावहारिक पक्षों की भी विवेचना की गई है। सैद्धान्तिक भाग में हठ, राज, मन्त्र, कर्म, ज्ञान, लय और गुह्या योग के विस्तृत वर्णन के साथ-साथ योग की विभित्र परम्पओं और दर्शन का उल्लेख किया गया है।
व्यावहारिक भाग में योग उपनिषदों के उत्कुष्ट अभ्यासों, सामान्य बुद्धि योग, समग्रात्मक शरीर विज्ञान, असन्तुलन और रोग के कारण एवं स्वास्थ्य की यौगिक व्याख्या की गई है।
'एक यात्री था जो अनन्त काल से यात्रा करता आ रहा था उसकी यात्रा का उद्देश्य अपने नगर पहुँचना था पर वह नगर कत दूर था। यात्री धीरे-धीरे अपने पगों को अपने गन्तव्य की ओर बढ़ाते चलता था। नगर का नाम था ब्रह्मपुरी और यात्री का नाम था श्रीमान् आत्माराम सन् 2009 से स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती के जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ है और मुंगेर में योगदृष्टि सत्संग श्रृंखला के अन्तर्गत योग के विभिन्न पक्षों पर दिये गये प्रबोधक व्याख्यान स्वामीजी की इसी नयी जीवनशैली के अंग हैं।
हिमालय पर्वतों के सुरम्य, एकान्तमय वातावरण में गहन चिंतन करने के बाद स्वामीजी ने गंगा दर्शन लौटकर जून 2010 की योगदृष्टि सत्संग श्रृंखला में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति-मार्ग को अपने सत्संगों का विषय चुना । उनके विवेचन की शुरुआत एक प्रतीकात्मक कथा से होती है जिसका मुख्य नायक, आत्माराम, अपने गन्तव्य, ब्रह्मपुरी की ओर यात्रा कर रहा है । इस कथा को आधार बनाकर स्वामीजी ने बहुत सुन्दर ढंग से प्रवृत्ति तथा निवृत्ति मार्ग के मुख्य लक्षणों, साधनाओं और लक्ष्यों का निरूपण किया है । सांसारिक जीवन जीते हुए भी किस प्रकार सुख, सामंजस्य और संतुष्टि का अनुभव किया जा सकता है; जीवन के किस मोड़ पर साधक वास्तविक रूप से आध्यात्मिक मार्ग पर आता है; और साधक की इस यात्रा में मार्गदर्शक की क्या भूमिका होती है - आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित इन सभी आधारभूत प्रश्नों का उत्तर इन सत्संगों में निहित है।
विषय-सूची |
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प्रथम खण्ड-सैद्धान्तिक पहलू |
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विषय |
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1 |
योग की वैदिक परम्परा |
1 |
2 |
सनातन संस्कृति |
10 |
3 |
विकासशील सजगता |
19 |
4 |
महत्वपूर्ण यौगिक शब्द |
29 |
5 |
यौगिक विद्या के विभिन्न पहलू |
41 |
6 |
कर्म योग |
54 |
7 |
ज्ञान योग |
72 |
8 |
हठ योग |
80 |
9 |
राजयोग (वृत्तियों की भूमिका) |
98 |
10 |
राजयोग (बहिरंग अवस्थायें) |
120 |
11 |
राजयोग ( आन्तरिक अवस्थायें) |
149 |
12 |
मन्त्र योग |
204 |
13 |
लय योग |
222 |
14 |
गुह्य योग |
229 |
15 |
द्वितीय खण्ड-व्यावहारिक पहलू विषय |
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16 |
आसन |
265 |
17 |
प्राणायाम |
301 |
18 |
बन्ध और ग्रन्थियाँ |
358 |
19 |
मुद्रायें |
378 |
20 |
समग्रात्मक शरीर विज्ञान |
419 |
21 |
योग के अनुसार असन्तुलन |
425 |
22 |
और रोग के कारण |
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23 |
सामान्य बुद्धि योग |
437 |
24 |
परिशिष्ट- |
446 |