विंशोत्तरी दशा से भविष्यवाणी करना: Predictions Using Vimshottari Dasha

$16
Item Code: NZA900
Author: के.एन. राव (K.N.Rao)
Publisher: Vani Publications
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 2012
ISBN: 8189221159
Pages: 144
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 180 gm
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Book Description

आभार

मैं उन हजारों भारतीयों तथा पाश्चात्य देशों के लोगों का आभारी हूं जिन्होंने मुझ पर अपना भरोसा रखा है और मुझे कुछ ऐसे विवरण बताए हैं जिनके बगैरशायद वह सूक्ष्मदृष्टि मुझे नहीं मिल पाती जिससे मैं ज्योतिषीय योगों के कुछ नए अर्थ लगा पाया हूं । कुछ अमेरिकी युवकों ने नशीले पदार्थों का सेवन तथा समलैंगिक सम्बन्ध बनाने की अपनी आदतों के बारे में मुझे बताया कि क्यों और कैसे उन्हें इनकी लत पड़ी और आखिरकार क्यों उन्होंने यह महसूस किया कि जीवन का अर्थ कुछ अलग ही है।

पी.एस.पी.एस. के अन्तर्गत विभिन्न कुंडलियों का विवेचन करके मुझे जीवन में ज्योतिष का बेहतरीन अनुभव मिला है। इन कुंडलियों को मैंने घर-परिवार, काम-कारोबारऔरआध्यात्मिकविचार के नजरिये से देखा है। सबसे पहले किसी व्यक्ति के जीवन में माता-पिता का प्रभाव(पॅरेन्टल इफ्लूएंस) देखा जाता हैं जिसे आप घर-परिवार का असर कह सकते हैं । इसके बाद यौनाकर्षण(सेक्स लाइफ) की बारी आती है। इसके चलते-चलाते ही व्यक्ति के व्यावसायिक जीवन(प्रोफेशन) की शुरुआत भी हो जाती है। आखिर में जीवन की शाम आते-आते आध्यात्मिक रुझान या जीवन का सत्य(स्पिरिचुअल क्वेस्ट) जानने की खोज शुरू होती है।

भारतीय जीवन को तो शिक्षा-जीविका-विवाह-सन्तान की पृष्ठभूमि में समझा जा सकता है। अमेरिकी और भारतीय जन्मकुंडलियों की विवेचना में ज्योतिषी को घर-परिवार, काम-कारोबार, आध्यात्मिकविचार के साथ शिक्षा-जीविका- विवाह-सन्तान के भेद का खास खयाल रखना चहिए। मैंने व्यक्ति परिचय दिए बगैर कई कुंडलियों की चर्चा की है। हर ज्योतिषीय भविष्यकथन एक सच्ची मानव कहानी होती है जिसमें समस्त नाटकीयता के साथ हास्य और करुणा के तत्व मौजूद होते हैं और जिस जीवन की हर धड़कन को ज्योतिष सुनता और महसूस करता है।

मैं यह बात स्पष्ट शब्दों में बताना चाहूंगा कि जानकारी देने में अमेरिकी बेहद ईमानदार और मददगार होते हैं। वे किसी भी घटना का ब्यौरा सही-सही देते हैं।

मगर भारतीय बेहतरीन याददाश्त के बावजूद अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी तक दबा जाते हैं । यहां मैं भारतीयों तथा विदेशियों दोनों का शुक्रिया इसलिए अदा कर रहा हूं क्योंकि जहां विदेशियों ने मुझे अनेक ज्योतिषीय योगों को व्यापक अर्थो में समझनेमें मदद की है वहीं भारतीयों ने विभिन्न दशाओं के सटीक प्रयोग में मुझे भरपूरसहयोग दिया। भारतीयों की जीवन की घटनाओं की सही-सही तारीखें याद रखने की प्रतिभा विलक्षण है । काश अमेरिकियों की याददाश्त भारतीयों जैसी होती या फिर भारतीय लोग ही अमेरिकी लोगों की तरह स्पष्टवादी होते तो मुझे कुंडलियों की ज्योतिषीय विवेचना में भारी मदद मिलती।

पर हम तो अतिनैतिकतावादी समाज की पैदाइश हैं जिसका एक तबका भारतीय सामंती मूल्यों और पाश्चात्य यौन-स्वच्छन्दता का घटिया घालमेल बनकर रह गया है।

एक बार एक अमेरिकी ने मुझे टोका कि मैं उसकी कुंडली में समलैंगिक सम्बन्ध क्यों नहीं देख पाया। मुझे उसे बताना पड़ा कि किसी भारतीय ने अपनी समलैंगिकता का जिक्र मुझसे कभी नहीं किया। लेकिन जैसी कि इन्सानी फितरत है, समलैंगिक तो यहां भी बहुतेरे होंगे। इसी तरह कई भारतीय इतने बचकाने होते हैं कि वे धड़ाधड़ कई सवाल पूछते चले जाते हैं जिनके जवाब भी उन्हें तुरन्त चाहिए होते हैं। ऐसे लोगों की कुंडलिया देखने में कोई आनन्द नहीं आता । अमेरिका में बसे भारतीयों की हालत तो और भी खराब है। वे थोड़े-बहुत परम्पराविहीन तो हैं ही मगर अमेरिकियों की तरह स्पष्टवादी न होते हुए भी वे तमाम सवाल पूछकर आपको बेहाल करने की काबिलियत जरूर रखते हैं। वहां कुछ बहतरीन भारतीय भी हैं पर वे अपवाद-स्वरूप ही हैं।

मैं इस पुस्तक के तकनीकी सम्पादन के लिए डॉ० रंजना श्रीवास्तव का आभारी हूं। अक्सर कोई लेखक पुस्तक लिखते समय यह सोचता है कि उसका तकनीकी विवेचन परिपूर्ण है। किन्तु मैं उनमें से नहीं हूं। मैं अपने कनिष्ठ सहयोगियों के विवेचन या तर्क में विश्वास रखता हूं। श्री शिवराज शर्मा ने मेरी पुस्तक 'ज्योतिष, प्रारब्ध तथा कालचक्र'को पढ़ने के बाद मुझे कई महत्त्वपूर्ण''सुझाव दिए, जिन्हें मैंने अपनी इस पुस्तक में शामिल किया है। इस लिहाज से डॉ० रंजना श्रीवास्तव और श्री शिवराज शर्मा की सहायता पर निर्भर रहते हुए मेरी उनसे पूरी सहानुभूति है कि यदि यह पुस्तक तकनीकी विवेचन की दृष्टि से परिपूर्ण है तो इसका पूरा श्रेय मुझे होगा और यदि यहां-वहां कोई खामी रह गई है तो उसक पूरी जिम्मेदारी उनकी होगी।

मैं तहेदिल से उनका शुक्रगुजार हूं और मेरा आशीर्वाद हमेशा उनके साथ है ।इस पुस्तक के पिछले हिन्दी अनुवाद में काफी त्रुटियां रह गई थीं। साथ ही,अंग्रेजी से हिन्दी रूपान्तरण में संस्कृतनिष्ठ शब्दों के अतिशय प्रयोग ने भी इसे जगह-जगह जड़वत बना दिया था। उन त्रुटियों का निवारण कर पम्मी बर्थवाल ने यह संशोधित संस्करण तैयार किया है।

मैं सोसाइटी फॉर वैदिक रिसर्च एंड प्रेक्टिसिस का विशेष तौर पर आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक के सम्पादन और पुन: प्रकाशन में आर्थिक मदद की है।

लेखकपरिचय

भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा से महानिदेशक के तौर पर सेवानिवृत्त श्री के०एन० राव(कोट्टमराजू नारायण राव) प्रतिष्ठित पत्रकार तथा नेशनल हेराल्ड के संस्थापक-संपादक स्व० के० रामा राव के पुत्र हैं। पिता के कार्यक्षेत्र से अलग ज्योतिष में श्री राव के रुझान की प्रेरणा बनीं उनकी श्रद्धेय मां के० सरसवाणी देवी। मां के संरक्षण में राव बारह वर्ष की आयु से ही ज्योतिष सीखने लगे। पारंपरिक ज्योतिष में सिद्धहस्त श्रीमती सरसवाणी देवी की विवाह, संतान और प्रश्न-शास्त्र जैसे विषयों में गहरी पैठ थी ।

प्रशासनिक सेवा में आने से पहले कुछ समय तक श्री राव अंग्रेजी साहित्य के प्राध्यापक रहे ।1957 में अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षा के जरिये प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करने वाले श्री राव की आरंभिक रुचि खेलों में थी । युवावस्था में उन्होंने शतरंज और ब्रिज जैसे खेलों में राज्य-स्तरीय पुरस्कार भी जीते थे। वह कई अन्य खेलों में भी सक्रिय रहे । यही वजह है कि उनके ज्योतिषीय लेखन में खेलों का बराम्बार उल्लेख मिलता है।

प्रशासनिक सेवा काल में बतौर सह-निदेशक और निदेशक श्री राव ने तीन अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों का नियोजन, निरूपण और संचालन किया। काम के सिलसिले मैं संपर्क में आए विदेशियों से ज्योतिषीय आधार पर उनके समबन्ध निजी और प्रगाढ़ होते गए और इससे उनके विदेशी मित्रों की संख्या में भारी इजाफा हुआ।

सरकारी सेवाकाल के दौरान श्री राव ने हजारों जन्म कुंडलियां संकलित की। आज भी उनके पास पचास हजार से ज्यादा ऐसी कुंडलियों का संग्रह है जिसमें हर जातक के जीवन की कम से कम दस प्रमुख घटनाएं दर्ज हैं। संभवतया यह दुनिया का सबसे खडा निजी शोध-सग्रह है। जीवन के लक्ष्य की तरह ज्योतिष की साधना का तनाव उन्हें कई बार इससे दूर भी ले गया। मगर दिसम्बर1981 में दिल्ली में आयोजित एक तीन दिवसीय सेमिनार में भागीदारी ने उनके इस अलगाव को पाटने में काफी हद तक मदद की। सेमिनार में सरल व रोचक धाराप्रवाह व्याख्यान के बाद उनके शोध प्रधान ज्योतिषीय लेखन की मांग निरंतर बढ़ती गई और तभी से श्री राव द्वारा अपनी मौलिक शोधों को पाठकों के साथ बांटने का सिलसिला शुरू हुआ।

ज्यौतिष जैसे गूढ़ तथा परम्परावादी विषय में श्री राव की शैक्षिक तथा बौद्धिक पहल का सुखद परिणाम है कि आज उनके भारत में हजारों और अमेरिका व रूस'में पांच सौ से भी ज्यादा शिष्य हैं । वह भारतीय विद्या भवन दिल्ली में ज्योतिष संस्थान के सलाहकार हैं । उन्हीं की प्ररेणा से भवन में ज्योतिष संकाय के अन्य प्रशिक्षक भी अवैतनिक काम करते हैं।

जीविका के तौर पर ज्योतिष की साधना में स्वार्थ और लालच ने इसे पर्याप्त अपयश ही दिया है । इसीलिए व्यावसायिक ज्योतिष से दूर रहने की श्री राव की आकांक्षा ने उन्हें हजारों हितैषी और मित्र दिए, तो कुछ शत्रु भी। बेवजह उनके शत्रु बने लोग वे थे जो बरसों से आधे- अधूरे ज्ञान तथा लालच के अधीन लोगों को बेवकूफ बना छलते आ रहे थे। मगर दूसरी ओर श्री राव के प्रयासों के चलते उनके। आस-पास दो सौ से ज्यादा काबिल ज्योतिषियों की टीम तैयार हुई है । इन लोगों के लिए ज्योतिष आजीविका न होकर ऐसा पराविज्ञान है जिसमें मानव-जीवन का अर्थ और उद्देश्य छुपा है। वेदांग के रूप में ज्योतिष ऐसी ही विधा होनी चाहिए।

कोई भी जिज्ञासु जानना चाहेगा कि किस बात ने श्री राव को जीवन का इतना महान उद्देश्य दिया। श्री राव की कुंडली में लग्नेश और दशमेश की लग्न में युति है जबकि दशम भाव में उच्चस्थ गुरु है। उनके ज्योतिष गुरु योगी भास्करानन्द यह जानते थे । उन्होंने कहा था कि हिंदू ज्योतिष को प्रतिष्ठा पहचान और गरिमा प्रदान करने के लिए राव को अनेक बार विदेश जाना पड़ेगा।(1993 में श्री राव की प्रथम अमेरिका यात्रा के प्रभाव पर एक अमेरिकी ने यहां तक लिख दिया-हिन्दू ज्योतिष- राव से पूर्व तथा राव के पश्चात्।)

1993 से1995 के बीच श्री राव पांच बार अमेरिका गए।1993 में वह अमेरिकन काउंसिल ऑफ हिन्दू एस्ट्रोलॉजी की दूसरी कॉन्फ्रेंस में मुख्य अतिथि थे। उनसे1994 में आयोजित तीसरी कॉन्फ्रेंस में भी उपस्थित रहने का अनुरोध किया गया क्योंकि आयोजक उनकी भीड़ जुटाने की क्षमता से वाकिफ हो चुके थे । काउंसिल की चौथी कॉन्फ्रेंस में श्री राव के मना करने के बावजूद आयोजकों ने उनके नाम को भुनाने की पर्याप्त कोशिश की ।

जून1998 के बाद से श्री राव पांच बार रूस(मास्को) जा चुके हैं। वहां दुभाषिये की मदद ज्योतिष पड़ाने का इनका कार्यक्रम बेहद सफल रहा।

श्री राव की नवीनतम शोधों का संकलन उनकी पुस्तकों 'जैमिनी चर दशा से भविष्यवाणी' तथा 'जैमिनी कारकांश और मंडूक दशा से भविष्यवाणी' में दिया गया है । श्री राव के ज्योतिष-गुरु ने बताया था कि ज्योतिष में पुस्तकों से ज्यादा ज्ञान परम्परा में मिलेगा क्योंकि पुस्तकों का सिर्फ शाब्दिक अनुवाद हुआ है। इनमें व्यावहारिक उदाहरणों का सर्वथा अभाव है। अपने लेखन के जरिये श्री राव ने इसी कमी को पूरा करने की कोशिश की है।

वेदांग के रूप में ज्योतिष पर विभिन्न योगियों के विचार श्री राव की पुस्तक'योगीज, डेस्टिनी एंड द व्हील ऑफ टाइम'में उद्धृत किए गए हैं मंत्र-गुरुस्वामी परमानंद सरस्वती और ज्योतिष-गुरु योगी भास्करानंद ने श्री राव की आध्यात्मिक ज्योतिष के कुछ गंभीर रहस्य बताए थे जिनका प्राय: किसी ज्योतिष ग्रन्थ में उल्लेख नहीं मिलता । श्री राव की इस पुस्तक में ऐसे कुछ गूढ़ तत्वों का निरूपण किया गया है। श्री राव की प्रथम ज्योतिष गुरु उनकी माता भी ऐसे अनेक पारम्परिक रहस्य जानती थीं जिनमें से कुछ का खुलासा इसी किताब में है। अन्य कुछ बातें उनकी पुस्तक'व्यावासयिक जीवन में उतार चढ़ाव' तथा'ग्रह और सन्तान' में दी गई हें । मंत्र गुरु स्वामी परमानंद सरस्वती ने पहली बार श्री राव से ज्योतिष न छोड़ने का आग्रह किया था, क्योंकि भविष्य में यही उनकी साधना का अहम हिस्सा बनने वाली थी । बाद में एक महान योगी मूर्खानंदजी ने1982 में भविष्यवाणी की थी कि राव महान ज्योतिषीय पुनरूत्थान के पुरोधा होंगे । यह बात कहां तक सच हुई इसके प्रमाण मैं श्री के०एन० राव के गहन शोध, अध्ययन और महती लेखन को रखा जा सकता है।

 

विषय-सूची

 

आभार

3

 

विषय-सूची

6

 

लेखक परिचय

7

 

द्वितीय संस्करण

10

 

तृतीय संस्करण

27

1

इस पुस्तक की आवश्यकता

30

2

ज्योतिष सीखने की नई पद्धति

33

3

पहला गुर -सी.बी.आई.

39

4

दूसरा गुर -टास्क

48

5

तीसरा गूर -आई.पी.सी

52

6

जांच-पत्र

58

7

पद नहीं पर पैसा

61

8

कुछ चटपटी बातें

66

9

जीविका संबंधी मार्ग-दर्शन

70

10

कुछ कठिन पल

77

11

सी.आर.एफ.डी का प्रयोग

82

12

फलित का एक नमूना

86

13

चंद पहेलियां

92

14

अयनांश का सवाल

107

15

सारांश

123

 

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