रामचरितमानस की काव्यभाषा: Poetic Language of Ramcharitmanasa

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Item Code: HAA295
Author: डा. रामदेव प्रसाद: (Dr. Ramdev Prasad)
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 2013
ISBN: 9789383021437
Pages: 270
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 340 gm
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Book Description

प्रस्तावना

शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय नीति संकल्प के अनुपालन के रूप में विश्वविद्यालयों में उच्चतम स्तरों तक भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा के लिए पाठ्य सामग्री सुलभ कराने के उद्देश्य से भारत सरकार ने इन भाषाओं में विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों के निर्माण, अनुवाद और प्रकाशन की योजना परिचालित की है । इस योजना के अंतर्गत अँगरेजी तथा अन्य भाषाओं के प्रामाणिक ग्रंथों का अनुवाद किया जा रहा है और मौलिक कथ भी लिखाये जा रहे हैं । यह कार्य भारत सरकार विभिन्न राज्य सरकारों के माध्यम से तथा अंशत केंद्रीय अभिकरण द्वारा करा रही है । हिंदीभाषी राज्यों में इस योजना के परिचालन के लिए भारत सरकार के शत प्रतिशत अनुदान से राज्य सरकार द्वारा स्वायत्तशासी निकायों की स्थापना हुई है । बिहार में इस योजना का कार्यान्वयन बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी के तत्वावधान में हो रहा है ।

योजना के अंतर्गत प्रकाश्य ग्रंथों में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है, ताकि भारत की सभी शैक्षणिक संस्थाओं में समान पारिभाषिक शब्दावली के आधार पर शिक्षा का आयोजन किया जा सके ।

प्रस्तुत ग्रंथ रामचरितमानस की काव्यभाषा, डॉ० रामदेव प्रसाद द्वारा लिखित है, जो भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (शिक्षा विभाग) कै शत प्रतिशत अनुदान से बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रथम संस्करण के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है । यह पुस्तक हिन्दी साहित्य विषय के स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षा के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।

आशा है, अकादमी द्वारा माध्यम परिवर्तन की दृष्टि से विश्वविद्यालय स्तरीय मानक ग्रन्यों के प्रकाशन संबंधी इस प्रयास का सभी क्षेत्रों में स्वागत किया जाएगा।

 

भूमिका

() पूर्ववर्ती कार्य और उसकी सीमा

रामचरितमानस की काव्य भाषा का सांगोपांग अध्ययन अबतक नहीं हुआ था। अलोचना ग्रंथों में विद्वान् आचार्यों ने इस तथ्य की ओर अत्यन्त संक्षेप में संकेत भर किया है।

एडिबिन ग्रीब्स के नोट्स ऑन दि ग्रामर ऑव रामायण ऑव तुलसीदास में रामचरितमानस की भाषा के कुछ व्याकरणिक रूपों का विवेचन है विश्वेश्वरदत्त शर्मा के मानस प्रबोध में वाक्य और शब्द प्रयोग पर कुछ लिखा गया है रामचरितमानस की भूमिका में रामदास गौड़ ने प्रसंगवश कुछ ध्वनियों तथा व्याकरणिक रूपों पर लिखा है जायसी ग्रथावली की भूमिका में आचार्य शुक्ल ने जायसी और तुलसी की भाषा का तुलनात्मक रूप प्रस्तुत करते हुए दोनों महाकविया के भाषाधिकार तथा भाषा दक्षता का विवेचन किया है इसमें व्याकरणिक रूपी के साथसाथ काव्यभाषा के कुछ तथ्यों का स्पष्ट सकेत मिलता है इससे रामचरितमानस की काव्यभाषा पर अध्येताओं का ध्यान गया इनकी सरल, वैज्ञानिक पद्धति ने दोनों महाकवियों की भाषा सम्बन्धी धारणा को स्पष्ट कर दिया यह इस ग्रथ की एक बहुत बडी उपलब्धि है रामनरेश त्रिपाठी की ख्यातिप्राप्त आलोचना कृति है तुलसीदास और उनका काव्य इसके दो भाग हे पहले में जीवन का और दूसरे में काव्य का विवेचन है काव्य विवेचन के क्रम में उन्हमें कवि के शब्द भाण्डार और छन्द का विवेचन किया है तथा कवि के सगीत, गणित, ज्योतिष आदि के ज्ञान का भाषा पर पडने वाले प्रभाव पर भी प्रकाश डाला है साथ ही कुछ मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों का भी सग्रह है तुलसीदास में डॉ० माताप्रसाद गुप्त ने भाषा शैली शीर्षक में भाषा अध्ययन के दो सम्भावित रूपों का संकेत करते हुए उनकी कृतियों के काल क्रम के अनुसार भाषा शैली का संक्षिप्त विवेचन किया है, भाषा का अध्ययन कवि के व्यक्तित्व के क्रमिक विकास का ही रूप प्रस्तुत करता है, उनकी काव्यभाषा के विविध अंगों का नहीं है।

विश्व साहित्य मे रामचरितमानस में राजबहादुर लमगोड़ा ने रामचरितमानस की भाषा के कलापक्ष का सुन्दर उद्घाटन किया है । उनका ध्यान तुलनात्मक पक्ष पर अधिक है अपने प्रतिपाद्य की पुष्टि के लिए रस, अलंकार आदि का वर्णन किया है। संक्षिप्त रहते हुए भी इनका संकेत महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है तुलसी के चार दल में रामलला नहछू, बरवै रामायण, जानकी मंगल, पार्वती मंगल इन्ही चार कृतियों का विवेचन सद्प्रसारण अवस्थी ने किया है । मानस, व्याकरण का तो शीर्षक ही द्योतित करता है कि इसमें प० विजयानन्द त्रिपाठी ने व्याकरणिक रूपों का वर्णन किया है व्याकरण भी भाषा का एक प्रधान मापदण्ड है लेकिन तुलसी की भाषा सम्बन्धी धारणा को भी त्रिपाठी जी ने गलत रूप में समझा। वे समझते है कि अथ से इति तक मानस प्राकृत भाषा में है । पर तथ्य इससे बहुत दूर है ए ग्रामर ऑव हिन्दी लैंग्वेज में केलॉग ने कई हिन्दी बोलियों के व्याकरणिक अध्ययन के क्रम में रामचरितमानस की भाषा का अध्ययन भी ओल्डपूर्वी और ओल्ड वैसवाड़ी के रूप में किया है, जो भाषा वैज्ञानिक अध्ययन का ही एक सोपान है डॉ० ए० जी० ग्रीयर्सन ने र्लिग्विस्टिक सर्व ऑव इंडिया के खड 6, अध्याय में कवि की भाषा दक्षता का मात्र सकेत किया है। एवोल्यूशन ऑव अवधी में डॉ० बाबूराम सक्सेना ने अवधी के विकास क्रम का अध्ययन किया है और अवधी रचनाओं में प्रधानत मानस की अवधी का भी रूप दिया गया है यह उनका भाषावैज्ञानिक अध्ययन है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने गोस्वामी तुलसीदास नामक ग्रन्थ में कवि के काव्यागों का विश्लेषण किया है इसी अध्ययन के सिलसिले में तुलसी की काव्य पद्धति, अलंकार विधान, उक्ति वैचित्र, भाषा पर अधिकार आदि की सोदाहरण आलोचना की गई है, जिससे तुलसी की भाषा पर विस्तृत प्रकाश पडता है उनका यह विश्लेषण सवांगपूर्ण न होते हुए भी कम महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता तुलसी के ये प्रधान आलोचक हैं, जिन्होंने गहराई के साथ तुलसी को परखा है

गोसाईं तुलसीदास में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने तुलसी के अन्य व्यक्तित्वों की विवेचना के साथ प्रधानतया उनको कवि माना है उन्होंने बीच बीच में उनके साहित्यिक मापदण्डों, उनकी भाषा तथा शब्दयोजना पर गढ विवेचन किया है

तुलसीदास और उनका युग नामक ग्रन्थ में डॉ० राजपति दीक्षित ने तुलसी से सम्बद्ध सामाजिक मत, धर्मभावना, साम्प्रदायिकता, परम्पसगतभक्ति, उपासना पद्धति, सन्दर्भण कला, तथा साहित्यिक उपहार का अध्ययन किया है साहित्यिक उपहार शीर्षक के अन्तर्गत तुलसी की भाषा, रस नियोजन उपमा विधान, शब्द शक्ति, प्रकृतिचित्रण तथा छन्द विधान का विस्तृत वर्णन उपस्थित किया गया है उनका दृष्टिकोण तुलसी के चतुर्दिक अध्ययन पर आधारित है, सम्पूर्णत. भाषा पर नहीं परन्तु आपने उचित सन्दर्भ में तुलसी की भाषा का जो विवेचन किया है, वह मूल्यवान है

चन्द्रबली पाण्डेय की आलोचना कृति है तुलसीदास इसमें जीवन वृत, रचना, मानस की विशिष्टता, चरित्रचित्रण, भक्ति निरूपण, काल विधान, काव्य दृष्टि, भावव्यंजना, काव्य कौशल, वर्ण्यविचार आदि पर विश्लेषण किया गया है भाषा की दृष्टि से अनेक रसों, अलंकारों का वर्णन किया गया है।

तुलसी की भाषा के अध्ययन के क्षेत्र में डॉ० देवकीनन्दन श्रीवास्तव का शोधप्रबन्ध है तुलसीदास की भाषा यह तुलसी की भाषा का प्रधानत, भाषा वैज्ञानिक और व्याकरणिक अध्ययन है । इस क्षेत्र में यह कृति अभीतक उत्कृष्ट समझी जाती है । इसके चतुर्थ अध्याय में कवि की भाषा के कलात्मक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति की ओर लेखक का झुकाव रहा है । इसमें उन्होंने शब्द शक्ति, ध्वनि गुण, रीति अलंकार. दोष आदि का सक्षिप्तत विवेचन किया है । परन्तु रामचरितमानस की काव्यभाषा का अध्ययन उनका उद्देश्य नहीं था इसलिए यह पक्ष उपेक्षित रहा ।

डॉ० रामदत्त भारद्वाज के शोधप्रबंध गोस्वामी तुलसीदास में प्रासंगिक रूप से कवि के काव्य रूप, शब्द चयन, रचना शैली दोष आदि पर गवेषणा की गई है । अपन सीमित क्षेत्र के कारण लेखक को कवि की काव्यभाषा के अन्यान्य अंगों पर विवेचना करने का अवसर नहीं मिला ।

इस दिशा में कुछ हद तक श्लाध्य प्रयास डॉ० राजकुमार पाण्डेय का कहा जा सकता है जिनका शोध प्रबन्ध है रामचरितमानस का काव्यशास्त्रीय अनुशीलन । रामचरितमानस के अन्य पक्षों के विश्लेषण के साथ साथ इनकी भाषा का भी सम्यक् निरूपण किया गया है । इसमें लेखक ने विविध तथ्यों के अनुरूप भाषा का भी संक्षिप्त विवेचन किया है । भाषा के काव्यशास्त्रीय रूपों का आकलन इसमें हुआ है, जैसे शब्द शक्ति, गुण, रीति, अलंकार, छन्द आदि । इन तत्त्वों का विवेचन वस्तुत मानस के काव्यशास्त्रीय अंगों को प्रस्तुत करते हैं । यद्यपि इनका अध्ययन भाषावैज्ञानिक और व्याकरणिक नहीं है, काव्यशास्त्रीय अध्ययन है, तथापि सम्पूर्ण अंश में काव्य भाषा का अध्ययन नहीं है ।

डॉ० उदयभानु सिंह की तुलसी काव्य मीमांसा भी इसी प्रकार की कृति है । इस ग्रन्थ के नवम अध्याय मैं शब्दार्थ सन्तुलन, पर्यायवाची शब्द, शब्द निर्माण, शब्द शक्तियाँ, ध्वनि. वक्रोक्तियाँ, गुण, अलंकार एवं भाषा मैं व्याप्त मुहावरे, कहावत, व्याकरण, प्रांजलता आदि का वर्णन किया गया है । भाषा की चित्रात्मकता, छन्द और शैली पर भी लिखा गया है । विद्वान् आलोचक ने सधे चिन्तन से तुलसी के कला पक्ष को उद्घाटित करन का प्रयास किया है । डॉ० ग्रियर्सन भी मानते है कि तुलसीदास विविध शैलियों कै विन्यास में निष्णात थे ।

एडविन ग्रीब्ज के अनुसार तुलसी का, भाषा पर उसी प्रकार अधिकार था जिस प्रकार कुम्भकार को अपने हाथ की मिट्टी पर । पाश्चात्यालोचको में ए० पी० बारान्निकोव का उच्च स्थान हें । मानस की रूसी भूमिका मैं तुलसी कै विविध अंगों पर विवेचन किया गया है । कवि व्यक्तित्व को भी काफी परखा गया है । रामायण की प्रबन्धात्मकता और तुलसीदास की कविता का विशिष्ट रूप में कला पक्ष का सुन्दर नियोजन दिखाई पड़ता है । छन्दों पर भी विचार किया है । इन्होंने मानस की भाषा के विवेचन में भाषा के तीन रूप माने हैं संस्कृत अवधी और ब्रजी । उनके अनुसार तीनों का विशिष्ट प्रयोजन है । इतना होने पर उनका उद्देश्य था रामचरितमानस की वास्तविकता से पाश्चात्य पाठकों को अवगत कराना । अपनी उद्देश्य पूर्त्ति का उनका कार्य सफल कहा जा सकता है, पर मानस की काव्यभाषा का सर्वांगपूर्ण विवेचन इनमें नहीं है ।

 

विषय सूची

 

भूमिका

 

1

प्रथम सोपान रामचरितमानस की काव्यभाषा तथा तुलसीदास का व्यक्तित्व

1

2

द्वितीय सोपान रामचरितमानस की काव्यभाषा और सहृदय

27

3

तृतीय सोपान रामचरितमानस की काव्यभाषा और व्याकरण सम्मतता

42

4

चतुर्थ सोपान रामचरितमानस की काव्यभाषा और लोकभाषा

69

5

पंचम सोपान रामचरितमानस के पात्र और उनकी काव्यभाषा

81

6

षष्ठ सोपान रामचरितमानस के रूप और उसकी काव्यभाषा

104

7

सप्तम् सोपान रामचरितमानस के छन्द और उसकी काव्यभाषा

123

8

अष्टम सोपान मानस की काव्यभाषा का तुलसी की अन्य अवधी

रचनाओ की भाषा से तुलनात्मक अध्ययन

161

9

नवम सोपान रामचरितमानस की काव्यभाषा का स्वरूप

182

10

दशम सोपान

241

11

उपसंहार सहायक ग्रन्थ सूची

247

 

Sample Pages









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