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व्रज के रसिकाचार्य (सम्पूर्ण) - Rasika Acharyas of Vraja

$36
Item Code: NZD237
Author: डा. अवध बिहारी लाल कपूर (Dr.Avadh Bihari Lal Kapoor)
Publisher: Radha Raman
Language: Hindi
Edition: 2020
Pages: 557
Cover: Hardcover
Other Details 9.0 inch X 6.0 inch
Weight 720 gm
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Book Description
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लेखक परिचय

डा० अवध बिहारी लाल जी कूपर का जन्म हुआ सन् 1908 में । आपने इलाहाबाद विशविद्यालय से दर्शन शाख में एम०ए० किया 1931 में । इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही क्रमश: रिसर्च-स्कालर और डी० लिट० स्कालर तथा इंडियन इन्सटीटयूट आफ फिलासफी में रिसर्च फेलो रहने के पश्चात् डाक्टर आफ फिलासफी की डिगरी प्राप्त की सन् 1938 में । कुछ समय बी० आर०कॉलेज, आगरा में स्नातकोत्तर दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहने के पश्चात् चुने गये U.P.E.S.Class । में और कार्यरत रहें स्नातकोत्तर दर्शन विभाग के अध्यक्ष और उप-प्रधानचार्य/प्रधानाचार्य के रूप में राजकीय कॉलेज, ज्ञानपुर (वाराणासी) में तथा प्रधानाचार्य के रूप में राजकीय कॉलेज, रामपुर में । राजकीय सेवा से निवृत्त हुए सन् 1967 में । इस बीच आपने दर्शनाशास्त्र और मनोविज्ञानादि विषयों से सम्बन्धित कई ग्रन्थों की रचना की । सन् 1967 से प्राय: अनवरत जुटे रहे हैं कि भक्ति- साहित्य के सृजन में । आपने बहुत-से बहुमूल्य और सारगर्भी ग्रन्थों की रचना कर भक्ति-साहित्य को जैसा समृद्ध किया है, वह सर्वथा प्रशंसनीय है ।

डॉ० अ० बि० ला० कूपर को 9 अप्रैल, 2001 में व्रजरज प्राप्ति हुई । डा० अ०बि०ला०कपूर ने अपने गुरु श्री श्री 108 श्री बाबा गौरांगदास जी महाराज के रमणरेती स्थित आश्रम में ही शरीर छोड़ा । उनके द्वारा सृजित सभी ग्रन्थ पहले की तरह आज भी उपलब्ध हैं और यथावत् उपलब्ध होते रहेंगे ।

(इस संस्करण के सम्बन्ध में)

व्रज के रसिकाचार्य खण्ड 9 एवं खण्ड 2 पृथक्-पृथक ग्रंथों के रूप में अभी तक आपके समक्ष प्रस्तुत करते आ रहे थे। भक्तों की आज्ञानुसार प्रथम बार दोनों खण्डों को एक ही ग्रंथ के रूप में सजिल्द प्रस्तुत कर रहा हूँ। प्रथम खण्ड में श्री चैतन्य सम्प्रदाय के रसिकाचार्य के चरित्रों का वर्णन है, दूसरे में अन्य सम्प्रदायों के रसिकाचार्यों के चरित्र दिये गये हैं। अब एक ही ग्रंथ में आपको सभी सम्प्रदायों के रसिकाचार्या उपलब्ध होंगे। आशा है आप पसन्द करेंगे।

नव भक्तमाल में राजस्थान के भक्त के चारों खण्डों का कम्पोजिंग का कार्य कम्प्यूटर पर चल रहा हक जैसे ही ये कार्य समाप्त होता है इन चारों खण्डों को भी एक ही ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करूँगा।

गुरुदेव 108 श्री बाबा गपरांग दास जी महाराज के जीवन चरित्र की प्रतियाँ भी अब शेष होने आ रही हैं। इस ग्रंथ को भी कम्प्यूटर पर कम्पोज करवाया जा रहा है। शीघ्र ही इस ग्रंथ को भी आपके समक्ष और सुन्दर रूप में प्रस्तुत करूँगा।

निवेदन

श्रीमद्भागवत में कहा है कि भगवत्-कथा-श्रवण-कीर्तन के अतिरिक्त संसार-बन्धन से मुक्ति पाने का दूसरा कोई उपाय नहीं है । भगवत्-भक्तों की कथा को भी भागवत में 'ईश-कथा' कहा है । पर स्वयं भगवान् ने अपने भक्तों को अपने से और उनकी पूजा को अपनी पूजा से भी बड़ा कहा है 'मदभक्तितोऽपि मद्भक्तपूजाऽथ्यधिका' । इतना ही नहीं उन्होंने स्वीकार किया है कि वे अजित होते हुए भी अपने भक्तों से सदा हारे हुए है और स्वतन्त्र होते हुए भी उनके सदा वश में हैं-'अजितोऽपि जितोऽहं तैरवश्योऽपि वशीकृत:'

जीव यदि हारे हुए भगवान् की अपेक्षा जीते हुए भक्तों का सहारा ले तो संसार-बन्धन से मुक्ति तो होगी ही, भगवत्-प्राप्ति भी अधिक सुगम होगी, क्योंकि भक्त-कथा-श्रवण-कीर्तन से भगवत्-प्राप्ति का मार्ग जैसा प्रशस्त होता है, वैसा भगवत्-कथा-श्रवण-कीर्तन से नहीं होता ।

भगवान् ने अपनी प्राप्ति का उपाय बताते हुए कहा है-'मैं केवल भक्ति से प्राप्त होता हूँ अन्य किसी उपाय से नहीं-भक्त्याहमेकया ग्राह्य:' । भक्ति मिलती है भक्तों के संग और उनकी कृपा से ही । पर प्रकृत भगवद्भक्तों का संग मिलना कठिन है । उनका संग जैसा उनके चरित्रों के द्वारा सुलभ है, वैसा और किसी उपाय से नहीं है । भगवद्भक्तों के चरित्र के माध्यम से उनके संग को सुलभ बनाना ही इस ग्रन्थ का उद्देश्य है ।

भक्ति के जितने प्रकार है उनमे श्रेष्ठतम व्रज की मधुररसमयी भक्ति है । व्रज में इसका उत्स फूटा था आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व । तबसे आज तक इसकी निर्मल धारा अक्षुण्णरूप से बहती चली आ रही है । इसमें जिन रसिकाचार्यों और रसिक भक्तों ने अवगाहन किया, उन्हीं की पुण्य गाथाओं का इस ग्रन्थ में समावेश हैं।

वर्तमान रूप में इस ग्रन्थ की योजना पहले नही बनायी गयी थी । पहले 'व्रज के भक्त' के नाम से एक ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया था, जिसमें आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व के व्रज के भक्तों के चरित्र लिखे गये थे । वह ग्रन्थ बहुत लोक-प्रिय हुआ । उसके पश्चात् पाठकों का आपह हुआ कि पिछले पाँच सौ वर्षों के व्रज के बाकी भक्तों के चरित्र भी प्रकाशित किये जायें । बाकी भक्त उस काल के थे, जब व्रज में मधुर-भक्तिरस के प्रचार-प्रसार का कार्य तेजी से चल रहा था । उसमे उनमें-से प्रत्येक ने आचार्यरूप में योगदान किया था । इसलिये 'व्रज के रसिकाचार्य' नाम से इस दूसरे ग्रन्थ की रचना की गयी । दोनों ग्रन्यों की एक श्रृंखला में जोड़कर श्रृंखला का नाम रखा गया-व्रज-भक्तमाल' 'व्रज के रसिकाचार्य' इस श्रृंखला का प्रथम पुष्प है, 'व्रज के भक्त' इसका दूसरा पुष्प है । 'व्रज के रसिकाचार्य' दो खण्डों में प्रकाशित है । पहले खण्ड में श्रीचैतन्य सम्प्रदाय के रसिकाचार्यों के चरित्र है, दूसरे में अन्य सम्प्रदायों के । 'व्रज के भक्त' का दूसरा संस्करण भी, जो अब 'व्रज-भक्तमाल' का अंग है, इसी के अनुरूप दो खण्डों में प्रकाशित है ।

'व्रज के रसिकाचार्य' के इस द्वितीय खण्ड में चैतन्य सम्प्रदाय के रसिकाचार्यों को छोड़ व्रज के सभी रसिकाचार्यों के चरित्र दिये गये हैं । चैतन्य सम्प्रदाय के रसिकाचार्यों के चरित्र इसके प्रथम खण्ड में प्रकाशित हैं । दोनों खण्डों में विभिन्न सम्प्रदायों कै प्रधान रसिकाचार्यों के चरित्र के साथ उनके सिद्धान्त का विस्तृत विवरण किया गया है 'व्रज की रसोपासना' नाम के एक पृथक् ग्रन्थ में, जो इस समय प्रेस में है । उसमें व्रज की रसोपासना के सामान्य स्वरूप और उसके मूल सिद्धान्तों पर भी प्रकाश डाला गया है ।

लेखक का विश्वास है कि व्रज की रसोपासना की विभिन्न विधाओं में भागवत भेद होते हुए भी उसका एक सामान्य रूप है, जिसके मूल सिद्धान्त व्रज थे सभी सम्प्रदायों को मान्य हैं । इसलिये रसोपासना के साधक यदि अपने सम्प्रदाय के प्रति निष्ठावान् रहते हुए अन्य सम्प्रदायों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखें तो वे उनके रस-सिद्ध आचार्यों के आदर्श चरित्र से अच्छी प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं और उनके ग्रन्यों और वाणियों में संचित बहुमूल्य सामग्री का अपनी साधना में उपयोग कर उसे पुष्ट कर सकते हैं, उसे और अधिक सरस और लाभप्रद बना सकते है ।

इस ग्रन्थ का उद्देश्य है उन्हें सभी सम्प्रदायों के रसिकाचार्यों के चरित्र और उनके सिद्धान्त से परिचित करा उनसे प्रेरणा ग्रहण करने और उनकी रसोपासना के विशाल क्षेत्र से अपनी साधना के लिये उपयोगी सामग्री चयन करने का अवसर प्रदान करना ।

लेखक शिवहरि प्रेस का आभारी है ग्रन्थ के प्रकाशन में उनकी अभिरूचि और तत्परता के लिये । भक्तप्रवर भाई काशीप्रसादजी श्रीवास्तव का भी वह आभारी है इस समूचे ग्रन्थ में उनके स्नेहपूर्ण सहयोग और सुझावों के लिये ।

 

विषय-सूची

1

व्रज का इतिहास

1

2

श्रीपाद माध्वेन्द्रपुरी

13

3

श्रीलोकनाथ गोस्वामी और श्रीभूगर्भ गोस्वामी

32

4

श्रीसनातन गोस्वामी

57

5

श्रीरूप गोस्वामी

119

6

श्रीरघुनाथभट्ट गोस्वामी

181

7

श्रीप्रबोधानन्द सरस्वती

190

8

श्रीगोपालभट्ट गोस्वामी

219

9

श्रीजीव गोस्वामी

239

10

श्रीरघुनाथदास गोस्वामी

270

11

श्रीरामराय प्रभु

298

12

श्रीनारायणभट्ट गोस्वामी

300

13

श्रीगदाधरभट्ट गोस्वामी

308

14

श्रीमधु गोस्वामी

313

15

श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी

316

16

श्रीश्रीनिवासाचार्य प्रभु

320

17

श्रीनरोत्तम ठाकुर

354

18

श्रीश्यामानन्दप्रभु

384

19

श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर

393

20

श्रीबलदेव विद्याभूषण

396

 

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