| Specifications |
| Publisher: Diamond Pocket Books Pvt. Ltd. | |
| Author: पं. राधाकृष्ण श्रीमाली (Pt. Radha Krishna Shrimali) | |
| Language: Sanskrit and Hindi | |
| Pages: 140 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 210 gm | |
| Edition: 2013 | |
| ISBN: 8128811665 | |
| NZD268 |
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पुस्तक के विषय में
जब मनुष्य को अपनी शारीरिक एव मानसिक शक्तियों द्वारा किसी कार्य की सिद्धि में सफलता नहीं मिलती तो वह अलौकिक शक्तियों का सहारा छूता है। इन अलौकिक शक्तियों को प्रसन्न करके अपना कार्य सिद्ध करना चाहता है। ऐसी शक्तियों को मंत्र एव स्तोत्रों द्वारा प्रसन्न किया जाता है।
किसी भी इष्ट देव की सिद्धि के लिए इन मंत्रों और स्तोत्रों को सिद्ध करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए विधि विधान की आवश्यकता होती है।
प्रस्तुत पुस्तक में रोग-निवारक मंत्रों को प्रमुख स्थान दिया गया है। क्या साध्य छोटे मंत्रों को चुना गया है और उन्हें प्रभावकारी बनाने की सरल विधि की खोज की गई है। आस्था और विश्वास के साथ संबंधित रोग के मंत्र को सिद्ध कर प्रयोग करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी ।
दो शब्द
पहला सुख निरोगी काया, 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता 'Health is wealth' जैसी उक्तियां सत्य हैं। जीवन के हर क्षेत्र में, हर कवि में स्वस्थ शरीर का होना पहली और आवश्यक शर्त है। मानव मात्र की सदैव से यह इच्छा रही है कि उसका जन्म से मृत्यु-पर्यन्त जीवन सुख और सुविधाओं से परिपूर्ण, ओत-प्रोत रहें। यदि परिस्थितियां हर समय उसके अनुकूल बनी रहें। प्रतिकूलता अनुकूलता में, पराजय जय में, अभाव प्राप्ति में बदल जाएं तो स्वस्थ बने रहना निश्चित है। इस सबके लिए स्वस्थ होना आवश्यक है। साधारण व्यक्ति के सामने जब संघर्ष का अवसर आता है, वह कल्पना मात्र से भयभीत हो जाता है। वह प्रतिकूलता को विपत्ति की संज्ञा देता है और चाह्ता है कि कोई अज्ञात शक्ति उसे जादू से दूर कर दे । वह नहीं जानता कि प्रतिकूलता आने पर संघर्ष करने से ही जीवन का विकास होता है। संघर्ष में गति है। गति, शक्ति का दूसरा नाम है। इस सबके लिए परमावश्यक है-स्वस्थ शरीर का होना। गतिशील जीवन उन्नति के स्वर्ग-द्वार खोल देता है। अस्तु! पर ऐसा होता कहा है? रोगी हुए नहीं कि भाग्य को, प्रारब्ध को, ग्रहों को दोष दे बैठते हैं। यह स्थिति निर्बल मन की प्रतीक है। यही तो कारण है कि कभी-कभी बुरे व भयप्रद समाचारों से हृदय-स्पन्दन रुक जाता है। विपत्ति की चिन्ता से शरीर खोखला हो जाता है।
कारण, अकारण, असावधानी से जब मनुष्य के शरीर में रोग का कीड़ा लग जाता है, तब जहा दवाई अपना कार्य करती हैं वही मन्त्र भी अपना प्रभाव दिखाता है। मन्त्र-शक्ति का अभिप्राय किसी देवी-देवता की मनौती मानना या भेंट चढ़ाना नहीं है अपितु ध्वनिविज्ञान पर आधारित यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसका समुचित, एक निश्चित प्रभाव पड़ता है। विदेशों मे और अब भारत मे भी असाध्य रोगों का इलाज ध्वनिविज्ञान से किया जाने लगा है। ध्वनि की सूक्ष्म तरंगें मानसिक क्षेत्र को खूब प्रभावित करती हैं, वहा एक अद्भुत गति व हलचल उत्पन्न करती हैं जिससे व्यक्ति शक्ति की अनुभूति करता है। मन्त्रों मे ध्वनि का एक निश्चित कम होता है, जिससे वह उन्हीं सूक्ष्म यौगिक ग्रथियों को गुदगुदाते व जगाते हैं, जिसके लिए वह ग्रथित किये गए हैं। इसीलिए महर्षियों ने विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अलग-अलग मन्त्रों का निर्माण किया । वह मन्त्र उन्की उद्देश्यों के अनुकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं ।
रोग निवारण, भय व शत्रु से मुक्ति के मन्त्र साधक मे एक अनोखर शक्ति वसाहस, समस्या-समाधान करने की सूझ-बूझ व विवेक, बुद्धि और प्रयत्न, परिश्रम व संघर्ष करने की प्रवृत्ति उत्पन्न करते हैं जिससे अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है। मैं एक लम्बे समय से ऐसी ही पुस्तक लिखने के प्रयास में था कि जिससे मन्त्रों द्वारा रोग पर विजय पायी जा सकें । अन्तत: प्रिय कमल व भूपत श्रीमाली के सहयोग तथा आदरणीय रामसुख दवे की प्रेरणा से इसे तैयार कर सका हूँ। उनका आभारी हूँ।
पाठक इससे किंचित् लाभ ले सकें तो मैं अपना प्रयास सफल समझूंगा। शंका-समाधान हेतु पाठकों के पत्रों का प्रत्युत्तर देने के लिए वचनबद्ध हूं।
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अनुक्रमणिका |
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1 |
विचार पवित्रता के लिए |
9 |
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2 |
विषनाश, तान्त्रिक बाधा, सर्वदोष निवारणार्थ |
30 |
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3 |
शनिकृत गणेश स्तोत्र |
38 |
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4 |
प्रमुख सूक्त |
44 |
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5 |
काली साधना |
49 |
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6 |
निवृात्ति मंत्र |
63 |
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7 |
सर्वव्याधि नाशक विष्णु सहस्र नाम |
75 |
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8 |
स्तोत्र |
101 |
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9 |
सर्व रोग |
113 |
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10 |
मुख स्तोत्र एव संकटास्तुति |
116 |
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11 |
प्रमुख कवच |
125 |
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12 |
रोगनाशक मंत्र |
134 |

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