| Specifications |
| Publisher: Gyan Ganga, Delhi | |
| Author Dennis Kincaid | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 254 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x5.5 inch | |
| Weight 410 gm | |
| Edition: 2023 | |
| ISBN: 9788195067664 | |
| HBA500 |
| Delivery and Return Policies |
| Usually ships in 5 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
अधिकतर अंग्रेजों ने मुगलों के बारे में यही सुना है कि ब्रिटिश शासन से पहले वे ही भारत के परंपरागत शासक थे, लेकिन उन्हें इस बात की भी उलझन है कि भारत में अंग्रेजी शासन के प्रारंभिक दौर के शूरवीर योद्धाओं ने कभी किसी मुगल शासक का विरोध क्यों नहीं किया, जबकि मराठों से उन्हें लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ता था? संभवतः उन्हें स्कूल में पढ़े रोमन इतिहास की याद आई होगी, जब रोमन शासकों के स्थायी शासन के दौरान पार्थइस, मिथरीडेट्स अथवा जुगुर्था जैसे लुटेरे एक-एक कर उभरे और क्षणिक उठापटक मचाकर समय के अंतराल में लुप्त हो गए। उभरने से पहले वे छिपकर क्या कर रहे थे, उनकी मंशा क्या थी, इसका उत्तर इतिहास के पन्नों में गुम हो गया। ठीक इसी प्रकार भारत के इतिहास में विभिन्न जातियाँ अथवा रियासतें मराठों का तमगा लेकर अपने को दम-खम से मजबूत बनाकर पहली बार उभरीं। उनके मुखिया भी अभागे ही रहे, क्योंकि ब्रिटिश शासकों द्वारा उनके विरोध की आमतौर पर 'बलवा' कहकर भर्त्सना कर दी गई। उनके नाम, जिन्हें सही लिखने के लिए अंग्रेज इतिहासकारों ने अथक, किंतु असफल प्रयास किए, आज वही गुएडेल्ला जैसे बाजारू इतिहासकारों के लिए लिखने का आसान विषय बन गए हैं। इन इतिहासकारों की दिलचस्पी के लिए गैर-अंग्रेजी नामों की ध्वनि ही पर्याप्त है, लेकिन जैसे कि स्कूल के विद्यार्थियों में रोमनों से ज्यादा उत्सुकता उनके असफल विरोधियों के लिए होती थी, वैसे ही अनेक लोगों ने इन मराठों के बारे में भी सोचा होगा; जिनकी बढ़ती ताकत भारत में अंग्रेजी शासन के समानांतर दिखाई देने लगी थी और जिन्होंने मुगल साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया तथा भारत के भू-भाग पर अपनी दावेदारी को लेकर अंग्रेजों और फ्रांसीसियों तक से भिड़ गए। इन्हीं मराठों ने न केवल विद्रोह के दौरान नाना साहब और झाँसी की रानी जैसे कुशल और साहसी क्रांतिकारियों का साथ दिया, बल्कि इंदौर की प्रसिद्ध शासक अहिल्या बाई तथा आज के गायकवाड़ और बड़ौदा के साथ-साथ ग्वालियर तथा कोल्हापुर जैसे ब्रिटिश शासन के आज्ञाकारी राजवंश भी इन्हीं मराठों की देन हैं। यह पुस्तक मराठा राज्य के संस्थापक को समर्पित है, जिसकी स्मृति ने आधुनिक हिंदू राष्ट्रीयता को प्रोत्साहित किया है और जिसके लिए अधिकांश हिंदुओं में वही सम्मान है, जो सम्मान जर्मन लोगों में फ्रेडरिक-द्वितीय के लिए तथा इटालियनों में गैरीबाल्डी के लिए है और मराठा जनपद जिसे आज मानव से भी ऊँचा दरजा प्रदान करता है।
Send as free online greeting card
Visual Search