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सिंह सेनापति: Singh The Commander

$19
Specifications
Publisher: KITAB MAHAL
Author Mahapandita Rahula Sanktrityayana
Language: Hindi
Pages: 176
Cover: Paperback
8.5 inch X 5.5 inch
Weight 180 gm
Edition: 2012
ISBN: 8122501893
HAA198
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Book Description

प्रकाशकीय

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहास प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है । राहुल जी की जन्मतिथि 9 अप्रैल, 1893 और मृत्युतिथि 14 अप्रैल, 1963 है । राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था । बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वय बौद्ध हो गये । राहुल नाम तो बाद मैं पड़ा बौद्ध हो जाने के बाद । साकत्य गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सास्मायन कहा जाने लगा ।

राहुल जी का समूचा जीवन घूमक्कड़ी का था । भिन्न भिन्न भाषा साहित्य एव प्राचीन संस्कृत पाली प्राकृत अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था । प्राचीन और नवीन साहित्य दृष्टि की जितनी पकड और गहरी पैठ राहुल जी की थी ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है । घुमक्कड जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही । राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन् 1927 में होती है । वास्तविक्ता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नही रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही । विभिन्न विषयों पर उन्होने 150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया हैं । अब तक उनक 130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हौ चुके है । लेखा, निबन्धों एव भाषणों की गणना एक मुश्किल काम है ।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षी का देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीन नवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क मे गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की । जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स लेनिन, स्तालिन आदि के राजनातिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की । यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।

राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विचारक हैं । धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियो का सम्पादन आदि विविध सत्रों मे स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों गे गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की । सिंह सेनापति जैसी कुछ कृतियों मैं उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है । उनकी रचनाओं मे प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है । यह केवल राहुल जी जिहोंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य चिन्तन को समग्रत आत्मसात् कर हमे मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया है । चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन, इतिहास सम्मत उपन्यास हो या वोल्गा से गंगा की कहानियाँ हर जगह राहुल जा की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण गिनता जाता है । उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।

समग्रत यह कहा जा सक्ता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य अपितु समूल भारतीय वाङमय के एक ऐसे महारथी है जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन स्वं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणत लोगों की दृष्टि नहीं गई थी । सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानों, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते है ।

विषय के अनुसार राहुल जी की भाषा शैली अपना स्वरुप निधारित करती है । उन्होंने सामान्यत सीधी सादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य विशेषकर कथा साहित्य साधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।

प्रस्तुत कृति सिंह सेनापति में राहुल जी ने वैशाली के ईसापूर्व का इतिहास सँजोने का प्रयास किया है । प्रजातंत्रात्मक शासन भारत के लिए कोई नयी बात नहीं है, वरन् इस पुस्तक में दिये तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि इस देश के वैशाली जनपद में ईसापूर्व 500 में गणतंत्रात्मक शासन मौजूद था और इसीलिए उसे वैशालीगण कहा जाता था । इतिहास की बुनियाद पर आधारित राहुल जी की यह कृति तत्कालीन सामाजिक जीवन को चित्रित करने में बे मिसाल है । रहन सहन, खान पान, हास विलास आदि कितनी ही बातें आज की तुलना में उस समय बहुत भिन्न थीं, किन्तु लेखक का दावा है कि भिन्नता पुराने साहित्य में मौजूद है । युद्ध और प्रेम की धुरी पर चित्रित यह ऐतिहासिक उपन्यास तत्कालीन समाज, जीवन दृष्टि, हास विलास, स्त्री स्वातंत्र्य, समता, बंधुत्व आदि कई बातों का खुलासा करता है । यह उपन्यास अपने प्रवाह में पाठक को बाँध लेने की क्षमता से परिपूर्ण है और चिन्तन की नूतन भावभूमि प्रस्तुत करता है।

 

भूमिका

जीने के लिए के बाद यह मेरा दूसरा उपन्यास है । वह बीसवीं सदी ईसवी का है और यह ईसापूर्व 500 का । मैं मानव समाज की उषा से लेकर आज तक के विकास को बीस कानियों (वोल्गा से गंगा) में लिखना चाहता था । उन कहानियों में एक इस समय (बुद्ध काल) की भी थी । जब लिखने का समय आया, तो मालूम हुआ कि सारी बातों को कहानी में नहीं लाया जा सक्ता. इसलिये सिंह सेनापति उपन्यास के स्प में आपके सामने उपस्थित हो रहा है ।

सिंह सेनापति के समकालीन समाज को चित्रित करने में मैंने ऐतिहासिक कर्तव्य और औचित्य का पूरा ध्यान रखा है । साहित्य पालि, संस्कृत, तिब्बती में अधिकता से और जैन साहित्य में भी कुछ उस अल के गणों (प्रजातंत्रों) की सामग्री मिलती है । मैंने उसे इस्तेमाल करने की कोशिश की है । खान पान, हास विलास में यहाँ कितनी ही बातें आज बहुत भिन्न मिलेंगी, वह भिन्नता पुराने साहित्य में लिखी मौजूद है।

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