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पत्थर की कहानी: Story of Stone

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Item Code: NZH560
Publisher: VIGYAN PRASAR
Author: डी. एन. वाडिया (D. N. Wadiya)
Language: Hindi
ISBN: 9788174802200
Pages: 24 (Throughout B/W Illustrations)
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 50 gm
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description

पुस्तक परिचय

इस पुस्तक में प्रकृति में पत्थर के निर्माण की समूची नैसर्गिक प्रक्रिया को बड़े सहज ढंग से समझाया गया है | लेखक ने आत्मकथा शैली में पत्थर के जीवन का यह वृत्तांत लिखा है | कैसे नदियाँ और समुद्र अपने साथ भूमि की मिटटी व् बालू बहाकर ले अति है और ये मिटटी समुद्र के किनारे जमा होती रहती है | समुद्री पानी के साथ सीपियों, स्टार फिशजैसे समुद्री जीव भी इनके बीच पहुंचते रहते है और यहीं पर अपना जीवन यापन पूरा करके मर जाते है तथा अपने पीछे अपने शरीर के कंकाल या अन्य आकृतियों को अवशेष (जीवाश्म) के रूप में छोड़ जाते है | हज़ारो लाखो वर्ष की लम्बी अवधि के दरम्यान धूप, बारिश, बर्फ, आंधी-तूफान, वनस्पतियों के विकास आदि अनेक प्राकृतिक कारकों के प्रभाव व् क्रियाओं के फलस्वरूप पत्थर का निर्माण होता है | इसी समूची प्रक्रिया को रोचक अंदाज में जानने का अवसर देती है प्रख्यात भारतीय भूवैज्ञानिक दाराशा नौशेखां वडिआ द्वारा लिखी यह पुस्तक 'पत्थर की कहानी' |
लेखक परिचय

दाराशा नौशेखां वडिआ (१८८३-१९६९) भारत के महान भूवैज्ञानिक थे | उन्होंने कठोर व् सतत परिश्रम द्वारा भारतीय भूविज्ञान के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण योगदान दिए तथा उसमे अपनी अमित छाप छोड़ी | हैदराबाद स्थित नैशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट तथा पणजी, गोवा स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओशीनोग्राफी की स्थापना व् सञ्चालन के साथ वह बहुत अभिन्न रूप से जुड़े थे | इंडियन ब्यूरो ऑफ़ माइन्स (१९४८) और एटामिक मिनरल्स डिवीज़न (१९४८-६९) के वह संस्थापक निदेशक भी थे | वाडिया भारतीय भूसर्वेक्षण विभाग के उन भूवैज्ञानिकों में से एक थे जिनके अग्रणी कार्य ने भारत में भूविज्ञान अन्वेषणों की आधारशिला राखी | भारतीय भूविज्ञान पर उनके अधिकांश अवलोकन और व्याख्याएआज भी मान्य है | नंगा पर्वत रूपी ग्रंथि (नॉट) के इर्द गिर्द की पर्वत श्रृंखलाओं के रूप में बनने वाले अनोखे समकोण पारखी मोड़ (नी-बैंड) के लिए दी गई, उनकी व्याख्या आज भी प्रासंगिक व् उल्लेखनीय है | भूविज्ञान में शोध को बढ़ावा देने के उददेश्य से उन्होंने देहरादून में इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी की स्थापना की | सन १९३५ में एम. एस. कृष्णन और पी. एन. मुखर्जी के साथ वाडिया ने सयुक्त रूप से भारत का पहला मृदा मानचित्र प्रकाशित किया था | भारतीय विद्दार्थियों के लिए भूविज्ञान पर पाठ्यक्रम तैयार करना भी वाडिया का एक महत्वपूर्ण योगदान था | भारत सरकार ने वाडिया द्वारा भिवज्ञान में किये गए योगदान को सम्मानित करते हुए सन १९४५ में उन्हें भूवैज्ञानिक राष्ट्रिय सलाहकार नियुक्त किया | १९५७ में वाडिया रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन के फैलो चुने गए और सन १९५८ में भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण से सम्मानित किया |


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