इस पुस्तक में प्राचीन भारतीय इतिहास की पुरापाषाण काल से लेकर मौर्य साम्राज्य के पतन तक से संबंधित विभिन्न चरण अवस्थाओं का गहनता से अध्ययन किया गया है। इतिहास, उसके स्वरूप एवं प्रासंगिकता पर नवीन ढंग से विचार किया गया है। यह भारतीय इतिहास का अत्यंत महत्त्वपूर्ण काल है। इस काल की महत्त्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत हुआ है। प्रस्तुत समयावधि के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप की राजव्यवस्था, साहित्य दर्शन, विज्ञान और प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में भारत के योगदान पर प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक बी.ए. (प्रोग्राम) तथा इतिहास (ऑनर्स) प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
डॉ. बलजीत सिंह, श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) के इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर शिक्षण कार्य कर रहे हैं। वे अपने महाविद्यालय में स्नातक कक्षाओं एवं इतिहास ऑनर्स की वरिष्ठ कक्षाओं के लिए अध्यापन कर रहे हैं। वे आधुनिक भारतीय इतिहास, प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय इतिहास, आधुनिक यूरोपीय इतिहास एवं चीन, जापान तथा कोरिया के आधुनिक इतिहास को पिछले 25 वर्षों से पढ़ा रहे हैं। आधुनिक इतिहास से संबंधित उनके लेख कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं एवं ग्रंथों में प्रकाशित हो चुके हैं।
विश्व में विकास के जितने भी चरण अवस्थाओं को मानव ने आधुनिक काल तक पार किया है, उनका सही आकलन प्राचीनकाल में किए बिना सम्भव नहीं है। चाहे सामाजिक संरचना का प्रश्न हो अथवा आर्थिक उतार-चढ़ावों का, पृथ्वी पर मानव जीवन के अम्युदय या उत्पत्ति का, धार्मिक सम्प्रदायों तथा धर्मो के आर्विभाव का प्रश्न रहा हो या कबीलियाई, राजकीय तथा साम्राज्यी राजनीति के दुरूह प्रश्न रहे हो इन सभी की आधारभूमि प्राचीनकाल ही रहा। सम्पूर्ण एवं समग्र भारतीय इतिहास के अध्ययन में भारत के प्राचीनकाल का महत्त्वपूर्ण स्थान स्वीकार किया जाता रहा है। राजनीति, समाज, धर्म, कला एवं संस्कृति इत्यादि के क्षेत्रों में इस काल द्वारा जो योगदान प्रदान किया गया, वह हर दृष्टि से अमूल्य है। इस काल के इतिहास से हमारी जानकारी में संवर्धन होता है कि मानव समुदायों ने भारत में प्राचीन संस्कृतियों का विकास किस समय व अवधि में, किन स्थानों और किन ऐतिहासिक परिस्थितियों में और किन विधियों के प्रयोग द्वारा किया। पिछले कुछ वर्षों में इतिहास के अध्ययन का ढंग भी खासा परिवर्तित हुआ है। यही कारण है कि प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन भारतीय इतिहास को उसके प्रारंभिक काल से लेकर 185 ईसा पूर्व तक के काल को बड़े रोचक तथा तथ्यात्मक आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। उपरोक्त काल अवधि के अंतर्गत आने वाले प्राचीन भारतीय इतिहास को बारह अध्यायों में विभाजित किया गया है। पुस्तक में इन अध्यायों के अधीन नवीन ऐतिहासिक सामग्री को यथास्थान तर्कसम्मत ढंग से प्रस्तुत किया गया है तथा तथ्यों पर बेहतर तरीके से प्रकाश डालने का सार्थक प्रयास किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में यह प्रयास अनवरत रहा कि प्राचीन भारतीय इतिहास के विद्यार्थियों को उसकी एक सहज, सरल व्याख्या उपलब्ध करवाई जाए। इस व्याख्या के आधार पर ही उनमें ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं परिकल्पनाओं के प्रति एक समीक्षात्मक प्रवृत्ति को प्रेरित कर पाना संभव हो सकेगा।
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