| Specifications |
| Publisher: Rampur Raza Library, Uttar Pradesh | |
| Author Shah Abdus Salam | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 191(Throughout Color and B/w Illustrations) | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 9x6 inch | |
| Weight 398 gm | |
| Edition: 2010 | |
| HBH305 |
| Delivery and Return Policies |
| Ships in 1-3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
रामपुर रजा लाइब्रेरी भारतवर्ष की उन अनेको लाइब्रेरियों में से एक है, जो कई शताब्दियों पुरानी है। यहाँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर एवं शिक्षा का वह अनमोल खजाना है, जिससे हजारों व्यक्ति प्रतिवर्ष लाभान्वित होते हैं। इसकी बुनियाद 1774 ईसवी में रामपुर रियासत के प्रथम शासक नवाब फैजुल्ला खाँ ने रखवायी थी। वर्तमान समय में लाइब्रेरी में संग्रहित दुर्लभपाण्डुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेज़, कैलीग्राफी के नमूने, पेन्टिंग, लघुचित्र एवम् अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकों का संग्रह हैं, उसका कुछ भाग रामपुर के नवाब द्वारा ही उपलब्ध कराया गया है।
चूँकि रामपुर के नवाब कला, संस्कृति एवं शिक्षा के पुरजोर समर्थक थे अतएव इनके विकास हेतु उन्होनें सभी सम्भव प्रयास किये। इसी कम को आगे बढ़ाने हेतु उन्होने कलाकारों, कवियों, खत्तातों को संरक्षण दिया और उनकी हर सम्भव सहायता की।
नवाब अहमद अली खाँ ने 1794-1840 तक रामपुर की रियासत पर शासन किया। उनके शासन काल में कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में रामपुर की उल्लेखनीय उन्नति हुई। इसी कम में नवाब अहमद अली खां के सुपुत्र नवाब मौ० सईद खाँ (1840-1855) ने लाइब्रेरी के संग्रह के लिए एक विशेष प्रकार का भवन निर्मित कराया। इस कार्य के लिए उन्होने एक अफगान प्रशिक्षु आगा युसूफ अली महवी को नियुक्त किया। जिन्होने इस कार्य में सहयोग देने के लिए प्रसिद्ध खत्तातों एवं कलाकारों को भारत के विभिन्न भागों से आमन्त्रित किया।
इन्होंने फारसी लिपि में एक मोहर बनवायी जो इस प्रकार है:-
"हस्तई मोहर बर कुतुब खाना वालिये रामपुर फ़ज़ाना।"
1268 हिजरी (1851-52 ई0)
01 अप्रैल 1855 में नवाब युसूफ अली खाँ ने उत्तराधिकारी की बागडोर संभाली। वह स्वयं उर्दू कविताओं को लिखने के शौकीन थे। वे उर्दू के मशहूद शायर मिर्जा गालिब के शागिर्द थे। उनके पास उर्दू कविताओं का एक विशाल संग्रह था। चूँकि उन्होंने अंग्रेजों को सुरक्षा प्रदान की थी इसलिए उनकी रियासत बरकरार रही।
1857 में भारत की आजादी के लिए होने वाले स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् बड़ी संख्या में लेखक, शोधकर्ता एवं कवि रामपुर की रियासत में प्रविष्ट हुए और अन्ततः यहीं के स्थायी निवासी बन गए।
नवाब युसूफ अली के पुत्र नवाब कल्बे अली खाँ को दुर्लभपाण्डुलिपियों, पेन्टिंग्स एवं इस्लामिक कैलीग्राफी के नमूनों कों संग्रह करने में गहन रूचि थी। उन्हांने बहुत से लोगों को बहुमूल्य पुस्तको एवं पाण्डुलिपियों को खरीदने के लिए नियुक्त किया। 25 दिसम्बर 1872 में वे स्वयं भी 400 रिश्तेदारों एवं आलिमों के साथ हज यात्रा के लिये गये और अपने साथ बड़ी संख्या में पाण्डुलिपियों एवं पुस्तकों का संग्रह लेकर आए जिससे लाइब्रेरी के संग्रह में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई।
इसके पश्चात् 1887-89 तक नवाब मुश्ताक अली खाँ रामपुर की गद्दी पर बैठे। इनके लगातार बीमार रहने के कारण जनरल अजीमुद्दीन खाँ ने 1887 ई0 में इस रियासत के महाप्रबन्धक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। उन्होंने लाइब्रेरी के विकास हेतु एक प्रबन्ध समिति का गठन किया और इसके लिये होने वाले समस्त व्यय को राज्य के बजट में सम्मिलित किया।
लाइब्रेरी के संग्रह हेतु एक नयी इमारत का निर्माण किया गया और 1893 ई0 में तोशाखाने से समस्त संग्रह को नये भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया। उन्होंने लाइब्रेरी के संग्रह को देश-विदेश के सभी स्थानों के निवासी शोधकर्ताओं के प्रयोग करने हेतु आदेश पारित करवा दिया। साथ ही देश के अन्य भागों से आने वाले शिक्षाविदों एवं शोधकर्ताओं के लिए कुछ सुविधायें भी उपलब्ध करवायीं। जनरल अजीमुद्दीन खान की देखरेख में किला परिसर में पुस्तकालय हेतु एक नयी बिल्डिंग बनवायी गयी, बिल्डिंग का उद्घाटन नवाब हामिद अली खाँ ने किया।
नवाब हामिद अली खाँ 1889-1930 तक रामपुर रियासत की गद्दी को सुशोभित किया। शासन की बागडोर संभालने से पहले ही नवाब हामिद अली खाँ ने विश्व के अनेक भागों का भ्रमण किया। वह स्वयं उच्च शिक्षित व्यक्ति थे और उन्होंने रामपुर शहर में अनेक सुन्दर महल एवं राजकीय कार्यालयों का निर्माण कराया।
उन्होंने किला परिसर में एक अत्यन्त सुन्दर भवन "हामिद मन्जिल" के नाम से बनवाया। यह इन्डो-यूरोपियन शैली का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसी हामिद मन्जिल में 1957 से रजा लाइब्रेरी को संचालित किया जा रहा है।
Send as free online greeting card