फाल्गुन माह में भारत की शस्यश्यामला धरती जब अपने रंग-बिरंगे पुष्पों से भरे वासंती परिधान को लहराती है तो मानो हमारे सांस्कृतिक पर्वों के आगमन का संकेत देकर भारतीय मानस को उत्साह और जिजीविषा से भर देती है, साथ ही शरद के आलस को त्याग कर नई ऋतु के अनुरूप नव-कर्मण्यता हेतु तत्पर होने का आह्वान भी करती है। चैत्र माह में होली का पर्व न केवल होलिका दहन के माध्यम से हमारे चित्त की कलुषता, द्वेष-वैर आदि नकारात्मक भावों का नाश करता है अपितु विविध रंगों की भीनी बौछार, मीठी गुजिया आदि परंपरागत पकवानों के स्वाद से घर-घर में हर्षोल्लास की सुनहरी आभा बिखेर देता है। चैत्रीय नवरात्रों के साथ इस वर्ष ईद-उल-फितर और गुड फ्राइडे का त्यौहार भी चैत्र माह में मनाया जाना पूरे भारतीय समाज के लिए एक सुखद संयोग है और धार्मिक-आध्यात्मिक स्तर पर भी भिन्न धर्म के मानने वाले लोगों में एक अटूट संपृक्ति का परिचायक है। वैशाख माह में रबी फसल की कटाई की सफलता की खुशियाँ मनाते हुए बैशाखी का त्यौहार मनाया जाता है। वैशाख माह के पहले दिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नव वर्ष के त्यौहार जैसे जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, बिहाग बिहू, विशु, पुथण्डु मनाए जाते हैं। निश्चय ही ये सभी त्यौहार भारतीय संस्कृति में हजारों वर्षों से व्याप्त विविधता, पारंपरिकता और अन्यतम जीवंतता के साथ आम भारतीय जीवन-शैली की सकारात्मक चेतना और प्रत्येक क्षण को आह्लाद के साथ जीने की प्रवृत्ति के परिचायक हैं।
वर्ष 2025 हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकारों- कृष्णा सोबती जी तथा श्रीलाल शुक्ल जी का जन्मशती वर्ष है। अपनी अपूर्व कथात्मक अभिव्यक्ति और सुगठित रचनात्मकता के लिए विख्यात कृष्णा सोबती जी ने हिंदी के कथा साहित्य को विलक्षण स्वरूप प्रदान किया है। साधारण और सरल शब्दों के बावजूद उनके भाषा संस्कार की सजीवता और संयमितता हमारे युग की अनेक कटु और जटिल सच्चाइयों को इस प्रकार अनावृत करती है कि पाठक-हृदय सहज और स्वतः उससे जुड़ जाता है। उन्हें 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 1996 में साहित्य अकादमी अध्येतावृत्ति से सम्मानित किया गया था। 2017 में इन्हें भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ""ज्ञानपीठ पुरस्कार"" से सम्मानित किया गया है। उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य-लेखन के लिए प्रसिद्ध श्री लाल शुक्ल जी को उनके उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्रीलाल शुक्ल को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ये दोनों ही रचनाकार अपने रचना-कर्म द्वारा न केवल हिंदी साहित्य की धरोहर है अपितु नई पीढ़ी के लेखकों के लिए भी प्रेरणा-स्रोत और मार्गदर्शक हैं। समादृत कृष्णा सोबती जी तथा श्रीलाल शुक्ल जी की जन्मशती के अवसर पर भाषा पत्रिका के इस अंक में कृष्णा सोबती जी की कहानी 'दादी अम्मा' तथा श्रीलाल शुक्ल जी के व्यंग्य 'कालिदास का संक्षिप्त इतिहास' को शामिल किया गया है।
पिछले वर्ष भारतीय शास्त्रीय संगीत के विशिष्ट आइकॉन, मशहूर तबलावादक श्री जाकिर हुसैन जी का देहावसान हो गया। संगीत को भाषिक, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिधियों से परे ले जाकर विश्व के एकात्म में स्थापित करना ऐसे ही महान संगीत-आराधकों के अथक प्रयासों से संभव हो पाता है। दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप संगीत की दुनिया में उनके योगदान को रेखांकित करता आलेख भी इस अंक में शामिल किया गया है।
भाषा पत्रिका परिवार ही नहीं, अपितु समस्त निदेशालय परिवार के लिए यह अत्यंत सौभाग्य और गर्व का विषय है कि इस वर्ष प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर भाषा पत्रिका के रामदरश मिश्र जन्मशती विशेषांक का लोकार्पण स्वयं शतीपुरुष डॉ. रामदरश मिश्र जी के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ। भाषा पत्रिका ऐसे ही सुखमय क्षणों को अपने इतिहास में समेटकर समय के साथ चलते हुए समग्र भारतीय साहित्य की संपन्नता से स्वयं को और अपने सुधी पाठकों को समृद्ध करती रहे, इसी सुदृढ़ विश्वास के साथ आपके समक्ष पत्रिका का यह अंक समर्पित है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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