लेखक परिचय
पण्डित जगदीश नारायण पाठक बीसवीं शताब्दी में संगीत शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं उसे प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले व्यक्तियों में पाठक जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। १५ जुलाई, १६०६ को प्रयाग के एक सरयूपारीण राह्मण पण्डित बद्री प्रसाद पाठक के घर में आपका जन्म हुआ । संगीत कला के प्रति उनको रुचि शैशावावस्था से ही बलवती रही, अतः प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा के साथ संगीत को भी शिक्षा उन्होंने प्राप्त की। पारिवारिक परम्परा में कर्मकाण्ड प्रमुख नत्ति थी। पाठक जो उसमें प्रवृत्त न हो सके। वह संगीत शिक्षण में निष्णात होने की ललक संजोये कलकत्ता चले गये । वही पर बंगला फिल्मों के पार्श्व संगीत में हारमोनियम भो बजाना पड़ता था। परिणामतः पाठक जी ने न केवल गायन वरन् वादन में भी प्रवीणता जित की। इसी समय सन् १९२६ में श्री वैजनाथ महाय ने प्रयाग संगोत समिति की स्थापना की और उसी के कार्य से कलकना में श्री पाठक जी से उनकी भेंट हुई। उनसे प्रभावित होकर श्री वैजनाथ सहाय जी ने प्रयाग संगीत समिति में संगीत-शिक्षक के रूप में उन्हें नियुक्त कर दिया। धीरे-धीरे अपने मरल स्वभाव और एकनिष्ठ लगन से १६४६ में प्रयाग संगीत पमिति के रजिस्ट्रार का बद ग्रहण किया। आकाशवाणी के नियमित कलाकार के रूप में आपका नाम संगीत जगत् में विरुवात हो गया। प्रयाग संगीत समिति के परीक्षा के में वृद्धि होने लगी। इसी के मध्य में इलाहाबाद के दो स्कूल मेरी बाना मेकर और एनी बेसेन्ट में भी संगीत शिक्षक के रूप में आपकी नियुक्ति हुई। पूर्ण रूप से संगीत के लिए समर्पित इस व्यक्ति को अचानक ही अपने सबसे प्रिय पुत्र श्री सुधाकर नाथ पाठक का ३१ अक्टूबर, १९५६ को विछोह सहना पड़ा। श्री सुधाकर नाथ पाठक ने संगीत की विश्वविद्यालय स्तरीय प्रतियोगिता में इलाहाबाद विश्व-विद्यालय का प्रतिनिधित्व कर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रमों में प्रथम स्थान प्राप्त किया। ३१ अक्टूबर, १९५६ को दोपहर १२ बजे प्रियजनों को छोड़ स्वर्गवासी हो गये। इस वज्ज्रपात से विदीर्ण हृदय संगीत का यह पुरोधा दो दिन के उपरान्त ही समिति के कार्य में लग गया। अपनी कर्मनिष्ठा के बल वह प्रयाग संगीत समिति के रजिस्ट्रार पद तक पहुंच गये। उनके कार्यकाल में प्रयाग संगीत समिति की प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि हुई। ७ फरवरी, १६७२ को श्री पाठक जी के निधन के समय संगीत समिति में केन्द्रों की संख्या १२०० से ऊपर थी। केवल भारतवर्ष में ही नहीं विदेशों में इसके केन्द्र बन गये थे। संगोत समिति में गुरुतर भार वाहन करते हुये श्री पाठक जो ने संगीत साहित्य के प्रकाशन की ओर भी ध्यान दिया)
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