विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य में मेरी रुचि थी। कहानी, नाटक, उपन्यास आदि विधाओं की ओर मैं आकर्षित रही। उपन्यास मुझे ज्यादा अच्छे लगते हैं, जिसमें मनुष्य जीवन की समस्याओं को अभिव्यक्त किया जाता है और साथ ही आधुनिक मनुष्य के जीवन के प्रति हमारी सोच को विस्तृत करते हैं।
एम. फिल में जब मुझे लघुशोध प्रबंध लिखने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो सबसे पहले विषय चुनने की समस्या मेरे समक्ष आई। विद्यार्थी की आकाँक्षा और अभिरुचि को सच्चे गुरु की दृष्टि स्वतः ही पहचान जाती है। मैं आदरणीय गुरुदेव डॉ. दयाशंकर त्रिपाठी की सदा ऋणी रहूँगी जिन्होंने मेरी रुचि को ध्यान में रखते हुए चित्रा मुद्गल लिखित 'आवाँ' उपन्यास में नारी चित्रण एवं समस्याओं पर लघु-शोध प्रबंध लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
आवाँ उपन्यास स्त्री विमर्श का बृहद आख्यान है। यह उपन्यास उच्चवर्ग, निम्नवर्ग, श्रमिक वर्ग, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श सभी का चित्रण करता है। यह उपन्यास स्त्री को माल-सामान की चीज के बजाय उसे मानवी रूप में स्वीकार करने की जिरह करता हुआ एक यादगार उपन्यास है। प्रस्तुत लघु-शोध प्रबन्ध को छः अध्यायों में बाँटा गया है।
प्रथम अध्याय में चित्रा मुद्गल के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर विचार किया गया है। जैसे उनका बचपन, शिक्षा, परिवार, वैवाहिक जीवन, आजीविका और कृतित्व। प्रखर चेतना की संवाहिका चित्रा मुद्गल के पास अनुभवों का विपुल भंडार है और हिन्दी कथा साहित्य में उनके योगदान की चर्चा भी की गई है।
द्वितीय अध्याय का शीर्षक है- स्वातंत्र्योत्तर महिला कथा लेखन और उपन्यासकार चित्रा मुद्गल। प्रस्तुत अध्याय में 1960 के बाद की लेखिकाओं के साहसपूर्ण, मौलिक चिंतन जीवन की विषमताओं के साथ भारतीय नारी के विविध, पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। अधिकांश लेखिकाओं ने नारी जीवन के विविध स्तरों पर होने वाला नारी शोषण इनकी लेखनी की प्रमुख विशेषता है। व्यक्तित्व चेतना लेखन में नारी में पूर्ण रूप से प्रस्तुत है। चित्रा जी को आधुनिकता के नाम पर संस्कृति की अनास्था पसन्द नहीं, वह भारतीय संस्कृति की रक्षा करना चाहती हैं।
तृतीय अध्याय में चित्रा मुद्गल के 'आवाँ' उपन्यास का संक्षेप में परिचय कराया गया है। इस उपन्यास की प्रमुख नायिका नमिता है, जो आज की नारी की संघर्षशील नारी की प्रतिनिधि है। उपन्यास पाँच सौ चवालिस पृष्ठ और अट्ठाइस अध्यायों में विभक्त है। फिर भी मैंने अपने लघु शोध-प्रबन्ध में पूरे उपन्यास का संक्षेप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
चतुर्थ अध्याय मेरे लघु शोध-प्रबन्ध का प्राण है। उसमें नारी जीवन की विविध समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया है। लेखिका ने उच्च वर्गीय नारी एवं निम्न वर्गीय, नारी की समस्याओं को उजागर किया है। इन सभी समस्याओं को सही ढंग से न्याय देने का प्रयत्न बखूबी रूप से किया गया है।
पंचम अध्याय में 'आवाँ' उपन्यास में चित्रित अभिव्यक्ति पक्ष की विशेषताओं को केन्द्र में रखकर शिल्प का शब्द भंडार, भाषागत, शैलीगत प्रयोग आदि का 'आवाँ' उपन्यास में खोजने का प्रयत्न किया गया है।
षष्ठ अध्याय में 'आवाँ' उपन्यास का उपसंहार प्रस्तुत किया गया है और अंत में पुस्तक संदर्भ सूची दी गयी है।
मैं हिंदी विभाग के डॉ. नवीन चौहान का भी आभार मानती हूँ, जिन्होंने मुझे सतत प्रेरणा दी। आदरणीय डॉ. हँसमुख परमार तथा डॉ. दिलीप मेहरा की भी हृदय से आभारी हूँ, जो इस शोध-प्रबंध के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित रहे हैं।
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