शरीर में जीवनी शक्ति को आपुरित करने का रास्ता है अजपा का नित्य अभ्यास । अजपा का अभ्यास अधिक से अधिक मात्रा में करने से...
'जीवनी शक्ति' का संग्रह और संचार होता है। यह जीवनी शक्ति ही रोगियोंके रोगों का उपचार का कार्य करती है, एवं प्राणदान देती है।
अजपा मन का भी इलाज करता है। मन को नियंत्रित करने और सुक्ष्म में प्रवेश करने का द्वार भी 'अजपा' ही है। अजपा नामक श्वासों की डोरी के साथ-साथ अपने मन को लगाना ही सूक्ष्म में प्रवेश कर अन्दर जाना है।
चेतना, प्राण और मन को संयुक्त करने से अजपा बनता है। अजपा प्राणो के सहारे चलता है। प्राण से मन संचालित होता है। इसलिए अजपा करने से मन का स्वतः संयम भी होता है। उसके तत्व भी बदलते हैं। अजपा से मन और चित्त का पुराना तत्व एकदम बदल जाता है और नये तत्व आपुरित होते हैं।
पुनः अजपा से मनुष्य की (सुषुम्ना) नाड़ी में गर्मी पैदा होती है, जो शक्ति केंद्रो की संग्रहागार है। शरीर के सभी शक्ति केंद्र और स्नायुओं के जाल सुषुम्ना से निकलते हैं। लम्बी श्वास लेने से सुषुम्ना प्रवाहित होती है। कुण्डलिनी का उत्थान होता है, किन्तु शरीर से संबंधित होनें पर इसका अधिक झुकाव आत्मानुसंधान की ओर होता है।
इस अजपाजप का सातत्य बढ़ने के बाद 'ज्योती दर्शन' होता है। अज्ञान दूर होकर वह सच्चितानंन्द में वास करते रहता है। वह भीतर आत्मस्थिति से जुड़ता हुआ अपने अस्तित्व को पाता है।
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