दक्षिण भारत में केरल राज्य में कोल्लम जिले के आलप्पाड पंचायती क्षेत्र में एक संकीर्ण प्रायद्वीप में नारियल वृक्षों के अंतहीन विस्तार के बीच परयकड़व नामक गाँव बसा हुआ है। पूर्व की ओर एक अन्तर्तटीय जलमार्ग की वजह से मुख्यभूमि से यह कटा हुआ है और पश्चिम की ओर तट पर चमकीला नीलहरित अरब सागर इससे टकराता रहता है।
गाँव के निवासी सामान्य मछुआरा जाति के लोग हैं जो अपनी वंश परंपरा पराशर त्रषि से जोड़ते हैं जिन्होंने धीवर कन्या सत्यवती से विवाह किया था। सत्यवती वेदों के विख्यात संहिताकार महर्षि वेदव्यास की माता थी। इस गाँव की पवित्रता और महानता के बारे में अनेक दंत कथाएँ प्रचलित हैं। यहाँ का दैनिक जीवन और सामाजिक रीति-रिवाज़ अब भी ऐसी दैवी पौराणिक घटनाओं से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है जिन्हें घटित हुए भले ही हज़ारों वर्ष बीत चुके हैं लेकिन मछुआरों का उन पर आज भी अगाध विश्वास है। ऐसी ही एक पौराणिक कथा है एक बार, भगवान शंकर और महादेवी पार्वती के पुत्र भगवान सुब्रह्मण्यम् के हाथों एक गंभीर अपराध हो गया। इस अपराध से कुपित होकर भगवान शंकर ने उसे मत्स्य के रूप में जन्म लेने का अभिशाप दिया। पुत्र के दुर्भाग्य से दुःखी पार्वती ने भगवान से प्रार्थना की कि वे सुब्रह्मण्यम् के अपराध को क्षमा कर दें। पार्वती को सांत्वना देना तो दूर ही रहा, इससे शिव का क्रोध और भी बढ़ गया और उन्होंने पार्वती को भी शाप दिया कि वह धीवर कन्या के रूप में जन्म ले। बाद में जब शिव का कोप शांत हुआ तो उन्होंने सुब्रह्मण्यम् से कहा कि उपयुक्त काल पर वे स्वयं आयेंगे और उन दोनों को मुक्त करेंगे। इस प्रकार शिव ने उन्हें उ:शाप दिया और आशीर्वचन कहे।
भगवान शंकर के अभिशाप के अनुसार भगवान सुब्रह्मण्यम् ने मत्स्य का रूप धारण किया, जो मत्स्य आलप्पाड के समुद्र में आया और मछुआरों को भारी हानि पहुँचाने लगा। दिन-रात मछली पकड़ने के लिए जानेवाले मछुआरों को अब सागर में जाने का साहस नहीं हो पा रहा था। कभी वह मत्स्य, मछुआरों के जाल को फाड़कर चिथड़े-चिथडे कर डालता तो कभी उनकी नावों को उलट डालता और यूँ उनके प्राणों को संकट में डाल देता। गाँव वाले कंगाली और भुखमरी की हालत में पहुँच गये।
मछुआरों का राजा भी इस समस्या का कोई समाधान नहीं ढूँढ पाया। उसका खजाना लगभग खाली होने लगा क्योंकि वह भूखों को अपनी तरफ से खाना खिला रहा था। अंत में समस्या को सुलझाने के प्रयास में उसने एक घोषणा करवाई। जो व्यक्ति उस उपद्रवकारी मत्स्य को पकड़ लेगा उसे विपुल पुरस्कार प्रदान किया जाएगा और साथ ही साथ राजा की इकलौती कन्या से उसका विवाह भी कर दिया जाएगा। लेकिन यह विशालकाय मत्स्य इतना भयावह था कि कोई भी व्यक्ति इस चुनौती को स्वीकार कर अपना भाग्य आज़माने के लिए सामने नहीं आया। राजा और प्रजा घोर निराशा में डूब गये।
और तभी अचानक बड़े रहस्यमय तरीके से उत्तर दिशा से एक वृद्ध वहाँ आ पहुँचा। वह कौन था, कहाँ से आया था, यह कोई नहीं जानता था। बुढ़ापे से उसकी कमर झुकी हुई थी। वह राजा के सम्मुख गया और उसने दावा किया कि वह उस मत्स्य को पकड़ सकता है और मछुआरा जाति को पूर्ण विनाश से बचा सकता है। राजा-प्रजा दोनों ही दंग रह गये। वह वृद्ध व्यक्ति समुद्र की ओर चल पड़ा।
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