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प्राचीन यूनान इतिहास एवं संस्कृति: Ancient Greece History and Culture

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Specifications
Publisher: Anamika Publishers & Distributor (P) Ltd.
Author Uday Prakash Arora
Language: Hindi
Pages: 492
Cover: HARDCOVER
9.00x6.00 inch
Weight 670 gm
Edition: 2021
ISBN: 9788179753057
HBV102
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Book Description
भूमिका

पाश्चात्य जगत जिस संस्कृति का स्वयं को सबसे अधिक ऋणी मानता है, वह है यूनानी। शेली लिखता है कि हम सभी यूनानी हैं, हमारे साहित्य, कानून, भाषा, राजनीतिक संगठन, धर्म, कला इत्यादि सभी की जड़ें यूनान में हैं। पश्चिमी संसार में यह एक प्रचलित कथन है कि वर्तमान युग में विकसित संपूर्ण यूरोपीय दर्शन और कुछ नहीं, बल्कि प्लेटो पर ही लिखी पाद-टिप्पणियां हैं।

वस्तुतः आधुनिक यूरोपीय सभ्यता के उदय के बहुत पहले ही रोमन संस्कृति को विभिन्न यूनानी अवधारणाओं, दार्शनिक विचारों, साहित्यिक और कलात्मक रचनाओं, धर्म इत्यादि ने पूर्णतः अपने वश में कर लिया था। कहा जाता है कि राजनीतिक दृष्टि से रोम ने अवश्य यूनान पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था, किंतु सांस्कृतिक दृष्टि से यूनान का रोम पर वर्चस्व स्थापित हुआ। ईसाई धर्म के उदय के पश्चात जो अंधकार युग प्रारंभ हुआ, उसमें यूनानी संस्कृति के तत्वों को अवश्य धक्का पहुंचा किंतु उस युग में भी यूनानी ज्ञान को पूर्वी चर्च (विजांतीनी) ने अपने संरक्षण में सुरक्षित रखा। क्रूस युद्धों (Crusades) के समय अरबों के माध्यम से यूनानी ज्ञान का प्रसार यूरोप में हुआ। किंतु जिस घटना के परिणामस्वरूप यूनानी ज्ञान का अत्यंत तीव्र गति से संपूर्ण यूरोप में प्रसार हुआ वह थी रेनेसां (Renaissance) अर्थात पुनर्जागरण। कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों के आधिपत्य (1453 ई.) के पश्चात वहां रहने वाले बहुसंख्यक ईसाई और चर्च के पुजारी सुरक्षा के लिए यूरोप की ओर भागे। भागते समय अपनी संपूर्ण संपत्ति तो ले जाना संभव नहीं था किंतु जिसे चर्च के पुजारियों ने सबसे अधिक मूल्यवान माना वह थे सैकड़ों वर्षों से सुरक्षित यूनानी हस्तलिखित ग्रंथ। इन ग्रंथों को वे अवश्य अपने साथ ले गए। यूरोप में इन शरणार्थियों का प्रमुख केंद्र था इटली। इटली में उन्होंने यूनानी भाषा का शिक्षण प्रारंभ किया। भाषा ज्ञान के कारण प्राचीन यूनानी ग्रंथों का अध्ययन संभव हो सका तथा छापेखाने के आविष्कार से क्लासिकल ग्रंथों का प्रसार अत्यंत तीव्र गति से सारे यूरोप में हो गया। ग्रंथों के अध्ययन से यूरोप में एक बौद्धिक क्रांति हुई और पुनर्जागरण युग ने जन्म लिया। इस बौद्धिक क्रांति ने चर्च, कुलीनों और सामंतों के वर्चस्व पर प्रश्नचिह्न लगाकर बुद्धिवाद, मानववाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दिया। आस्था का स्थान तर्क और विवेक ने लिया। पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप जिस यूनानी ज्ञान का अध्ययन यूरोप में प्रारंभ हुआ, उसे यूरोप को मध्ययुगीन अंधकार से निकालकर आधुनिक बनाने में एक महत्वपूर्ण कारक माना जा सकता है। चूंकि यूरोपीय संस्कृति का वर्चस्व स्थापित होने पर आधुनिकता का प्रसार यूरोप से उद्भूत होकर सर्वत्र फैला, अतः अप्रत्यक्ष रूप से यूनानी संस्कृति का ऋणी यूरोप के माध्यम से संपूर्ण जगत है।

उन्नीसवीं शताब्दी तक इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी में यूनानी भाषा तथा संस्कृति के अध्ययन को प्रारंभिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक के पाठ्यक्रम में सर्वप्रमुख स्थान दिया गया। ग्यारह-बारह वर्ष के बच्चे अनगिनत घंटे यूनानी व्याकरण में पारंगत होने के लिए लगाते थे। किशोरावस्था प्राप्त होने पर वे इलियड और ओडीसी की पंक्तियों की व्याख्या जितने अच्छे ढंग से की जा सकती थी, उसके लिए प्रयत्न करते थे। स्कूली बच्चों की अनेक पीढ़ियां यूनानी नाटकों में भाग लेती रही हैं। ऑक्सफोर्ड और केंब्रिज विश्वविद्यालयों में सर्वाधिक प्रतिष्ठा वाले विभाग क्लासिकल यूनानी संस्कृति के थे। ब्रिटिश सिविल एवं विदेश सेवा की प्रतियोगी परीक्षा में जहां जर्मन और फ्रेंच में प्रत्येक के लिए अधिकतम अंक 350 दिए जा सकते थे, वहीं यूनानी भाषा और संस्कृति में निर्धारित अंक 700 थे। इंग्लैंड के पब्लिक स्कूल अनुशासन के लिए अपना आदर्श स्पार्टा को मानते थे। भद्रता का तादात्म्य यूनानियों से स्थापित किया गया। विभिन्न यूरोपीय देशों में यूनानी संस्कृति का महत्व बढ़ने के अलग-अलग कारण थे। इंग्लैंड में इसका प्रभाव सर्वाधिक शक्तिशाली था। एक विशाल साम्राज्य, विशेषकर भारत पर अधिकार होने के कारण प्लेटो के राजनीतिक दर्शन में इंग्लैंड को अपना एक औचित्य दिखाई पड़ा। प्राचीन एथेंस के साम्राज्यवाद और प्रजातंत्र की समता ब्रिटेन ने अपने साम्राज्यवाद और प्रजातंत्र से स्थापित की। दोनों के मध्य उपयोगितावादी (utilitarian) ब्रिटिश विचारकों के अनुसार कोई विरोधाभास नहीं था। देश के भीतर प्रजातंत्र तथा बाहर साम्राज्यवाद। मार्टिन बर्नल अपनी पुस्तक ब्लैक एथेना के प्रथम खंड में लिखते हैं कि प्राचीन यूनानियों की छवि एक सोची-समझी नीति के तहत इस प्रकार बनाई गई कि यूरोपीय नस्लवाद तर्कसंगत लगे। ड्रायसन ने सिकंदर के सैन्य अभियानों में विध्वंस नहीं, यूनानी संस्कृति का प्रसार देखा। उसके अनुसार, अभियान पूर्वी देशों को सभ्य बनाने के लिए था। White Man's burden नीति के तहत अंग्रेजों ने भी सिकंदर के समान अपने अभियानों का लक्ष्य पूर्वी देशों को सभ्य बनाना दिखाया। जेम्स मिल, मेकॉले इत्यादि उपयोगितावादी स्कूल के विचारक जहां एथेंस के प्रजातंत्र और वैज्ञानिक उपलब्धियों को महिमामंडित कर रहे थे, वहीं भारतीय सभ्यता को अत्यंत निम्न दृष्टि से देखते थे।

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