प्रस्तावना
शेरों की पसंद का अजीब मुआमला है। इनसे जिंदगी को आपने किन शर्तों पर जीया है या आपको जिंदगी ने किस तरह झेला और बरता है, उसका हाल तो मालूम हो ही जाता है, सच तो यह है कि शेरों से दिल का चोर भी खुलकर सामने आ जाता है: खुलता किसी पे क्यूं मेरे दिल का मुआमला, शेरों के इतिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे । फिर पसंद-नापसंद भी तो अलग-अलग हो सकती है, अपने-अपने तजरबे, ज़ौक़ और ज़र्फ़ की वजह से। तभी तो कहा जाता है 'पसंद अपनी अपनी ख़्याल अपना अपना'। लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं कि सबकी निगाह ठहर जाती है, जैसे कुछ चेहरे ऐसे होते हैं कि जी में खुब जाते हैं। इसी तरह कुछ शेर भी ऐसे होते हैं कि ज़बान पर बेसाख़्ता चढ़ जाते हैं। वैसे तो सौंदर्य एक रहस्य है जिसको खोलना आसान नहीं। दिलवालों का कथन है कि 'अपना माशूक़ तो वो है जो अदा रखता है', या जैसा फ़ारसी में कहा जाता है कि 'करिश्मा दामन-ए-दिल मी कशद कि जा ईं जा अस्त'। यह 'अदा' या 'करिश्मा' क्या है जो दिल के दामन को अपनी ओर खींचता है। इसका कोई आसान जवाब नहीं। सौंदर्य की तरह शायरी भी बस वो है जिसका जादू सर चढ़कर बोले। ज़ेरे नज़र किताब 'अंदाज़ अपना अपना' में भी श्री रमेश चन्द्र ने उर्दू शायरी के सदियों के सरमाये से ऐसे हीरे-मोती चुने हैं जिनकी आब-ओ-ताब कभी कम न होगी और जिनकी कशिश हमेशा दिल को खींचती रहेगी। ये चुनिंदा अशआर श्री रमेश चन्द्र के सुथरे मज़ाक़ और जिंदगी भर के तजरवे का निचोड़ हैं। इस आईना-खाने में मीर व गालिब, मुसहफ़ी व मोमिन और दाग व फ़ानी से लेकर फैज़ व फ़िराक़, शहरयार व बशीर 'बद्र' तक सबके लहजों की गूंज सुनाई देगी। इतिखाब निहायत उम्दा और भरपूर है जिसमें ज़िंदगी की हर झलक मिलेगी और पढ़नेवालों के लिए लुत्फ़ो-मज़े का बहुत सामान है। रमेश चन्द्र जी के ज़ौक़ो-शौक़ के पेशे-नज़र लगता है कि उनकी नज़र पूरी उर्दू शायरी पर रही है, और जिंदगी के हर मोड़ पर चुभते हुए शेरों को वह जमा करते गये हैं। यूं यह किताब एक जामे-जहां-नुमा बन गयी है। जिंदगी, इंसानियत, रूहानियत, सौंदर्य, प्रेम, तसव्वुर, वतनपरस्ती, आत्म-विश्वास, मज़हब, दुनियादारी, व्यंग्य, मयकदा हर मौजू पर अच्छे शेरों का ऐसा ज़ख़ीरा है कि जिंदगी की हर करवट एक खुली किताब की तरह सामने आ जाती है। फूल तो बेशक बाग़ में खिलते हैं, लेकिन उनसे गुलदस्ता बनाना बाग़बान का कमाल है। आशा है शेरों के इस गुलदस्ते की महक सदा बाक़ी रहेगी और इसका हुस्न हमेशा अपने बाग़बान की याद दिलाता रहेगा।
लेखक परिचय
रमेश चन्द्र जन्म 15 अगस्त, 1925 को नजीबाबाद (उ.प्र.) में प्रतिष्ठित साहू जैन परिवार में। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से इंडस्ट्रियल कैमेस्ट्री में स्नातक। गुरुकुल कनखल से 'विद्या वाचस्पति' की मानद उपाधि। अनेक संस्थानों से संबद्ध रहे। इनमें प्रमुख हैं-'द टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रबंध संपादकः 'नवभारत टाइम्स' के संपादक; भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबंध-न्यासी; अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन परिषद् एवं भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, शांतिप्रसाद जैन एडवांस्ड मैनेजमेंट रिसर्च फाउंडेशन, जैन शोध संस्थान (लखनऊ), कुंदकुंद भारती प्राकृत अकादेमी, टाइम्स सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया रिलीफ फंड की प्रबंध समितियों के सदस्य; साहू जैन कॉलेज, रमा जैन कन्या महाविद्यालय, मूर्तिदेवी कन्या विद्यालय, सरस्वती इंटर कॉलेज, महावीर विश्व विद्यापीठ, क्रिसेंथिमम सोसायटी ऑफ इंडिया, दिल्ली डहेलिया सोसायटी के अध्यक्ष; प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष (1982-83), इंडियन न्यूज़पेपर्स सोसायटी के अध्यक्ष (1982-83), इंटरनेशनल क्रिसेंथमम काउंसिल के अध्यक्ष (1993-95) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन के अध्यक्ष रहे। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ कीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में गहरी दिलचस्पी रही।
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