जॉर्ज ऑरवेल ने आखिर बीबीसी की नौकरी छोड़ दी और ट्रिब्यून में साहित्य-सम्पादक हो गए। वह अपने एक अद्भुत कथानक वाले उपन्यास को तरतीब देने में जुटे थे। अन्ततः 1944 में यह पूरा हो गया। नाम था इसका एनिमल फार्म, लेकिन उन दिनों कोई भी प्रकाशक इसे छापने को तैयार नहीं हुआ। बाद में जब यह छपा और लोगों तक पहुंचा, तो इसने तहलका मचा दिया।
एनिमल फार्म के अद्भुत कथानक और पालों की विशिष्ट संरचना ने समीक्षकों को तो रोमांचित किया ही, पाठकों को भी एक नई मानवीय संवेदना से परिचित कराया। इस उपन्यास ने 'पशु' और 'मनुष्य' के अन्तर-बाह्य चरित्न के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न किया है कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एकजुट होकर भी रहा जा सकता है।
जॉर्ज ऑरवेल का जन्म 25 जून 1903 को भारत में बिहार के मोतिहारी नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। ऑरवेल का मूल नाम एरिक आर्थर ब्लेयर था। उनके जन्म के साल भर बाद ही उनकी मां उन्हें लेकर इंग्लैण्ड चली गयी थीं, जहां सेवानिवृत्ति के बाद उनके पिता भी चले गए। वहीं पर उनकी शिक्षा हुई। जॉर्ज ऑरवेल राजनीति को केंद्र में रखकर साहित्य रचने वाले दुनिया के कुछ गिने-चुने लेखकों में से एक थे। टाइम मैगज़ीन ने साल 2014 में 1945 के बाद के 50 सबसे महत्वपूर्ण ब्रितानी लेखकों की सूची तैयार की थी, जिसमें जॉर्ज ऑरवेल को दूसरे स्थान पर रखा गया था।
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