प्रस्तावना
पद्मश्री श्री डी.आर. कार्तिकेयन ब्रह्मर्षि पत्री जी पूरे विश्व में आध्यात्मिकता और ध्यान के क्षेत्र में सुविख्यात हैं, उन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। यह इतिहास की बात है कि राजकुमार सिद्धार्थ सत्य, परिपूर्णता और शांति की तलाश में महल छोड़कर निकल गए। आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व वह सभी तरीकों से प्रयोग करते हुए, विपस्सना की पद्धति से ज्ञान को प्राप्त हुए। इतने वर्षों से गौतम बुद्ध की ही भूमि में विपस्सना को भुला दिया गया और वहीं दूर के देशों जैसे बर्मा में अच्छी तरह संरक्षित किया गया। लगभग 100 साल पहले रंगून में एक प्रमुख संपन्न जौहरी को बहुत तीव्र और लाइलाज सिरदर्द हुआ। संक्षेप में उन दिनों विभिन्न देशों में उपलब्ध इलाज से कोई आराम न मिलने पर युवा जौहरी सत्यनारायण गोयंकाजी ने अपने शुभचिंतकों की सलाह पर विपस्सना ध्यान का पाठ्यक्रम शुरू किया। गोयंकाजी को अपनी तकलीफ से कुछ ही सप्ताह में आराम मिल गया। उन्हें यह तकनीक काफी मूल्यवान लगी और उन्होंने इसका 3 माह का कोर्स किया। उन्हें इससे बहुत लाभ हुआ। अपने बर्मा के गुरु यू बा खिन की सलाह पर उन्होंने विपासना को बुद्ध की जन्मभूमि में लाने का निर्णय लिया। 1969 में वह इसे भारत में लाए। अपनी समर्पित प्रयासों से उन्होंने इस तकनीक को बिल्कुल सुगम कर लोगों तक पहुंचाया। अपने जीवन के नाजुक दौर में मैं हैदराबाद केंद्र पर 10 दिन विपासना ध्यान करने में सक्षम रहा। मुझे आश्रम में दो समय भोजन के साथ 10 दिन रहना पड़ा जहां सुबह 5 बजे से देर रात तक अभ्यास चलता था। पहले 3 दिन सिर्फ अपनी साँसों का निरीक्षण करना था. आती हुई साँस और जाती हुई साँस, जिसे आनापानसति ध्यान कहा जाता है। अगले 7 दिन अपने शरीर की संवेदनाओं को पूर्ण शांति से निरीक्षण करना होता है। ब्रह्मर्षि पत्री जी ने इस प्रक्रिया को बिल्कुल सुगम बना दिया है। आती-जाती हुई साँसों का निरीक्षण करना ही ध्यान है। पत्री जी ने स्वयं इसका अभ्यास किया, लाभान्वित हुए और लोगों में इसके बारे में जागरूकता फैलाना आरंभ किया। पत्री जी ने निर्धन और अमीर, अनपढ़ और पढ़े-लिखे सभी के लिए इसका लाभ लेना सुगम कर दिया। उन्होंने पिरामिड के अंदर ध्यान करने की शक्ति को पहचाना और हर जगह पिरामिड बनाने पर जोर दिया। आज पूरे विश्व में छोटे-बड़े 20000 से ज्यादा पिरामिड हैं तथा अनगिनत कार्यशालाएं, कक्षाएं और ध्यान गोष्ठियां चल रही हैं। अपनी गायन शैली और बाँसुरी बजाने की कला को ध्यान से जोड़कर उन्होंने न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी लाखों लोगों को ध्यानी बनाया है। इस तरह एक नए युग की आध्यात्मिक जागृति का अभ्युदय हुआ है। इस निशुल्क ध्यान अभ्यास तकनीक से लाखों लोगों के जीवन में अदभुत परिवर्तन हुए हैं। उन्होंने लाखों लोगों को शाकाहारी बनने के लिए प्रेरित किया जिसके लिए सम्पूर्ण पशु-पक्षी, मछली जगत भी उनका आभारी है। मैं उनके साथ इजिप्ट भी गया था जहां बुर्काधारी महिलाओं ने भी ध्यान सत्र में भाग लिया। पत्री जी एक सजग पाठक हैं
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