अनुभूति' पुस्तक में श्री अतुल जोग जी का अपने परिवार में स्वयंसेवक से लेकर प्रचारक, वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री तक के प्रेरणादायी अनुभव, अनुभूति, मन के आत्मिक विचारों से भरा हुआ एक आत्मविश्वास है।"
श्री अतुल जोग जी प्रतिभा के धनी हैं। उनके प्रचारक जीवन की प्रेरणा अपने माता-पिता, भैया-भाभी, दीदी, मित्रों एवं सगे-संबंधियों से प्राप्त एक अमूल्य निधि है, जो समाजहित और देशहित के लिए शुभसंकेत है। इन्होंने स्वयंसेवकों से भी आगे बढ़ने की प्रेरणा ली है। 1994 में तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्रद्धेय मुकुंद राव पणशीकरजी की प्रेरणा से वनवासी अंचल पूर्वांचल जाने की भावना प्रबल हुई। नागालैंड की बैठक में स्वामी असीमानंदजी की बात उनके जीवन का मंत्र बन गई कि "वनवासी क्षेत्र में हम वनवासियों को सिखाने के लिए न जाएँ, बल्कि उनसे सीखने के लिए, समझने के लिए एवं उन्हें अपनाने के लिए जाएँ। सिखाने को जाएँगे और वे आपकी बात नहीं मानेंगे तो आपको दुःख होगा, आप निराश हो जाएँगे; लेकिन यदि उनको अपनाना है तो उनकी भाषा समझनी होगी। उस झोंपड़ी में जाओ, जहाँ कोई नहीं जाता। उनकी अच्छाई को देखना होगा, कमियों की अनदेखी करनी होगी। इससे वनवासी क्षेत्र में काम करने में आनंद आएगा।"
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