भारतीय समाज की प्राचीन परम्परा के अनुसार महिलाओं का जीवन परिवार की परिधि तक ही रहता आया है। सम्भवतः इसी कारण प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने जहाँ पुरुष-जातक के जीवन में सम्भावित भूत, वर्तमान तथा भविष्यत् काल की सभी घटनाओं का ज्योतिष के आधार पर विवेचन करनेवाले अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थ रचे, वहाँ स्त्री जातक को चर्चा करके ही छोड़ दिया। महिला-जीवन का विवेचन वहीं तक किया जहाँ तक कि उसका सम्बन्ध उसके पिता, भाई, पति एवं प्रेमी के साथ है।
आज के समाज में महिलाएँ पुरुष के समकक्ष खड़ी हैं। इस पुस्तक के लेखक को विश्वास है कि महिलाओं को आज अपने जीवन में स्वतन्त्र रूप से यह जानने का अधिकार है कि उनका भविष्य क्या है? इस विषयक साहित्य के अभाव की पूर्ति के लिए यह एक प्रयास है जो निश्चय ही किसी दैवज्ञ के अतिरिक्त साधारण पाठक-पाठिकाओं के लिए भी रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा।
आशा है कि विद्वत् समाज इस कृति का आदर करेगा।
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