कृत्रिम उपग्रह (artificial satellite), मानवनिर्मित एक ऐसी वस्तु; जो आँखों के सामने होते हुए भी बहुत दूर होने के कारण हमें दिखाई नहीं देती। लेकिन इसके उपयोग हमारे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। फिर चाहे वो टीवी पर कार्टून देखना हो, या सुबह की न्यूज़, या फिर मौसम का पूर्वानुमान (weather forecast); टैक्सी की बुकिंग हो या गूगल मैप, ऑनलाइन बैंकिंग हो या एटीएम, सरकारी सर्वे हो या राहत-बचाव कार्य, शांति काल हो या युद्धकाल। आज के युग में उपग्रह के बिना जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन है।
इस पुस्तक में हम कृत्रिम उपग्रह, विशेषकर संचार उपग्रह (communication satellite) के बारे में ढेर सारी जानकारी साझा करेंगे, हम जानेंगे कि संचार उपग्रह क्या होते हैं, कैसे काम करते हैं, उनकी यात्रा कैसे शुरू होती है, वे अंतरिक्ष में कैसे भेजे जाते हैं, अंतरिक्ष में उनका maintenance करते हैं कि नहीं और अंत में उनके साथ क्या होता है। इसके अलावा आपको और भी मजेदार और महत्पूर्ण जानकारियां मिलेंगी जो आपके अनुभव को सुखद और मजेदार बनायेगीं।
पुस्तक किशोर एवं युवा विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर सरल भाषा में लिखी गई है। पुस्तक को विषय की गणितीय जटिलताओं से दूर रखा गया है। आवश्यकतानुसार कोष्ठक में अंग्रेजी भाषा के शब्द भी दिए गए हैं। कठिन शब्दों के अर्थ/परिभाषा अंत में शब्दावली में दिए गए हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो बहुत ही विशिष्ट प्रौद्योगिकियों का विस्तार हुआ मिसाइल और माइक्रोवेव । इन दो तकनीकों के संयुक्त उपयोग से प्राप्त दक्षता ने उपग्रह-संचार (satellite-communication) के युग की शुरुआत की। अंतरिक्ष युग की शुरुआत सन् 1957 में प्रथम कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक 1 (Sputnik 1) के प्रमोचन (launch) के साथ हुई। बाद के वर्षों में विविध प्रकार के प्रयोग होते रहे। सन् 1965 में प्रथम व्यवसायिक भू-स्थिर उपग्रह (Geo-Stationary Satellite) इंटेलसैट-1 (Intelsat-1 or Early Bird) ने इंटेलसैट श्रृंखला का उद्घाटन किया।
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