हमारे पुराने मित्र हरि रतन जी डबास एक स्वाध्यायशील व्यक्ति हैं। उन्होंने समाचार-पत्रों से एक बहुत ही सुन्दर संकलन दृष्टातों का किया है। उनका दृष्टिकोण आध्यात्मिक है। आज भौतिकवादी उपभोक्तावाद ने हमारे सभी जीवन मूल्यों को आज लील लिया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से केवल एक मात्र अर्थ ही अब जीवन का एक मात्र उद्देश्य रह गया है। इसीलिए त्याग, धैर्य और संतोष, तपस्या, भक्ति, शौच जैसे सभी मूल्य आजकल जीवन से विलुप्त होते चले जा रहे है। जबकि हमारे कबीरदास और सन्त कवियों ने यही कहा था-
हय धन, गोधन वाजिधन और रतन धन खान ।
जब आवे सन्तोष धन सब धन धूरि समान ॥
और भी-
साई इतना दीजिए जामै कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाय ॥
आजकल जो अर्थार्जन की अंधी दौड़ लगी हुई है, उसने मानव-जीवन से सच्चाई और ईमानदारी तथा कर्तव्यनिष्ठा तथा शौच और संतोष जैसे सभी मानव मूल्यों का क्षरण कर लिया है। सुख-सामग्री के समय में अब प्रत्येक व्यक्ति दिनरात सतत् संलग्न हैं। प्रेम और शांति तथा सहकार और सहनशीलता जैसे गुण भौतिकवाद की अधिकता के चलते कम होते जा रहे है। श्री हरि रतन डबास ने जो संकलन विविध विषयों पर दृष्टांत संकलित किये है, वे सुन्दर और शिक्षाप्रद हैं। आशा है कि सभी धर्मप्रेमी पाठक इस लघु पुस्तिका को पढ़कर अच्छी शिक्षा प्राप्त करके अपनी नई पीढ़ी को भी वे सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित करेंगे।
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