कुछ वर्ष पूर्व जब मुनि श्री क्षमासागर जी की पुस्तक "मुक्ति" मैने पड़ी तो मैं उनकी भाषा की सरलता, शब्दों की तरलता से अत्यधिक प्रभावित हुई। प्रत्येक कविता में उनका स्वच्छ अंतर्मन पारदर्शी जल की भांति स्पष्ट झलकता है, जिसमें पाठक कहीं न कहीं अपने भी ऐसा हो सकने की सम्भावना स्वतः ही तलाशता है। मुनि श्री की कविताएँ पढ़ने का अर्थ है एक नए, भिन्न आयाम में प्रवेश, जहाँ अधिक कुछ नहीं बस आत्मा का मूल स्वरूप है, जो कोमल, संवेदनशील एवं पारदर्शी होने के साथ-साथ गजब का ईमानदार, साहसी व परख से परे है।
उनकी भाषा की खूबी यह है कि वे बड़े-बड़े सूत्र, जिनमें सम्पूर्ण जीवन का दर्शन झलकता है, जटिल शब्दों का उपयोग किए बिना कह जाते हैं। इस पुस्तक की किसी कविता को पढ़ मैं भाव-विभोर हुई, किसी कविता ने मुझे रोमांचित किया, तो किसी पर लगा कि मुनि श्री के प्रति नतमस्तक हो जाऊँ। लिखते समय मुनि श्री सृष्टि हो जाते है। सृष्टि, जो इतनी सरल है कि यहाँ उँगलियों द्वारा बजाई गयी एक चुटकी की भी प्रतिक्रिया है।
उनकी कविताएँ गृहस्थों के लिए भी उत्तम संदेश देती है, जहाँ आज संबंध केवल दिखावे भर के रह गये हैं, उनकी कविताएँ उन पर ध्यान देने को कहती है। अपनी कविताओं में वे एक सजीव लेखनी है, जो चेतना की आलोचना कर उसे निरंतर सुधार की यात्रा पर चलने को प्रेरित करती है। विश्वास के पथ पर चलते हुए सत्य से परिचित करवाती है, अनलिखी, अनकही बातें जो कल्पना को सुदूर ले जाती है।
जब इस नयी पुस्तक का संकलन, जिसमें नई कविताओं के साथ कुछ पुरानी कविताएँ भी संकलित है, करने हेतु मैंने मुनि श्री की पिछली सभी पुस्तकें पढ़ीं तो न तो कविताओं को समझने के लिए मस्तिष्क पर अधिक जोर डालना पड़ा, न ही अधिक समय लगा क्योंकि पुस्तक खोलते ही एक तारतम्य स्थापित हो जाता और लगता कि इन कविताओं में ही कहीं मैं भी हूँ, एक ध्यानमग्न अवस्था छा जाती है एवं मैं स्वयं को पा जाती हूँ।
मुनि श्री की कविताएँ पढ़ती हूँ
तो एक भिन्न जगत में स्वयं को पाती हूँ
जहाँ विस्मय व कोमल भावनाओं से भरी
मैं सृष्टि हो जाती हूँ।
कहीं चिड़िया संग हँसती खेलती बतियाती हूँ
कहीं प्रकृति के तत्त्वों की उदारता का परिचय पाती हूँ उनकी सघन सूक्ष्म सृष्टि के समक्ष
मैं नतमस्तक हो जाती हूँ।
मुनि श्री अपनी कविताओं द्वारा निरंतर पूर्णता की ओर अग्रसर है। उनकी लेखनी में समाज में हो रही राजनीति व होड़ की व्यथा स्पष्ट दिखायी देती है, जहाँ व्यक्ति किसी खास मुकाम को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। जहाँ उनकी पिछली कविताएँ चिड़िया, वृक्ष व प्रकृति के अन्य तत्वों पर आधारित थीं वहीं इन कविताओं में वे और अधिक गहरे चिंतन व आत्मदृष्टि के साथ उपस्थित है। इनमें वे आत्मा में और गहरे उतरते हैं और हमें भी अपने संग लिए चलते हैं। कुछ कविताओं में कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का प्रयोग कविताओं को एक नया अर्थ देता है।
मुनि श्री की प्रत्येक कविता स्व-उत्थान के लिए प्रेरित करती है। दुविधाओं के उत्तर देती हुई मन को शांत, निर्मल करती है कि आगे का पथ साफ नजर आने लगता है। वे मृत्यु से तनिक भी नहीं घबराते बल्कि उससे रूबरू होना चाहते हैं। वे आदमी के महान हो सकने की हद को अपनी कविताओं में समेटते हैं। प्रकृति किस प्रकार मिलजुल कर कार्य करती है, बिना किसी राग-द्वेष, राजनीति व अहम् के। उन्हें दुःख है कि मनुष्य भी प्रकृति के ही भिन्न तत्वों का समावेश होते हुए भी आखिर ऐसा क्यों हो गया। वृक्ष व मनुष्य की तुलना उन्होंने कविता 'वृक्ष और मानव' में बखूबी की है। आज के धर्म के स्वरूप से भी वे विचलित दिखाई पड़ते हैं। वे लगातार संदेश देते हैं कि इस जीवन में जितना जी सकते हो, जी लो, जितना सबके हो सकते हो, हो लो चूँकि एक बार यहाँ से जाने के बाद लौटना आसान न होगा।
हालाँकि मैं मुनि श्री से कभी नहीं मिली, किन्तु शायद यह नियत था कि भविष्य में उनके द्वारा आरम्भ किए गए मैत्री समूह से कभी जुहूँगी एवं उनकी कुछ कविताओं के संकलन का सुखद उत्तरदायित्व मुझे सौपा जाएगा। उनकी कविताओं ने मुझे आगे बढ़ने के लिए बेहतरीन दिशा दिखायी है। हाँ, मैंने इन कविताओं में स्वयं को पाया है।
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