बाल साहित्य सृजन को ईश्वरीय कार्य मानने वाले मूर्धन्य साहित्यिक साधक प्रकाश मनु के लिए हर विशेषण छोटा नजर आता है। उनके कृतित्व को क्या उपमा दूँ! सच तो यह है कि इनका कार्य 'हिमगिरि के उत्तुंग शिखर-सा' उदात्त और उन्नत है। साहित्य सृजन और उसका संवर्धन ही उनके जीवन की पहली और अंतिम साध है। वे आज तक साहित्य को श्वास-श्वास जी रहे हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, इतिहास... आदि कोई भी साहित्यिक विधा हो, जिसमें भी लगे, तो उसमें पूरी तन्मयता से डूब गए। प्रकाश मनु जितने अच्छे सृजक हैं, उतने ही बेहतर और संजीदा इंसान भी हैं। मनु जी ने बाल साहित्य के अलावा वयस्कों के लिए भी प्रचुर मात्रा में लिखा, जो गुणवत्ता में भी उच्चकोटि का है। यहाँ मेरा उद्देश्य मनु जी के बाल साहित्य की समीक्षा करना है। सच तो यह है कि मनु जी का सारा साहित्य उनके मन, हृदय और आत्मा की उपज है। मैंने भी इसे उतने ही मन से पढ़ा और लिखा है। यह पुस्तक मन की मन से लिखी गई बात है।
बाल साहित्य की मानक कसौटी क्या है? मेरे विचार से इसके जवाब में 'बाल साहित्य के शिल्पकार प्रकाश मनु' का बाल साहित्य पढ़ लेना चाहिए। वे बच्चों के चहेते कथाकार, प्यारे दोस्त और सदाबहार लेखक हैं। इनके सृजन का प्रभाव सदियों-सदियों तक साहित्य प्रेमियों के हृदय में बना रहेगा। बच्चे ही नहीं, बड़े भी उनकी रचनाओं के दीवाने हैं और वे पुस्तकें मँगवाकर पढ़ते हैं। डेढ़ सौ से अधिक बाल साहित्य की पुस्तकों का सृजन करने वाले मनु जी का साहित्य के प्रति प्रेम और समर्पण अतुलनीय है। इन्होंने साहित्य में जो बड़े काम किए हैं, उन्हें कदापि नहीं भुलाया जा सकता। इनकी रचनाओं में भावों और रसों की विविधता के साथ-साथ विषयगत नवाचार भी देखते ही बनते हैं। बाल साहित्य सृजन करते समय भी मनु जी एक लेखक नहीं बल्कि एक बच्चा बन जाते हैं, अपनी रचना में उसी भाव, भाषा और शैली का निरूपण करते हैं। बाल मन की कोमल भावनाओं, जिज्ञासाओं, सपनों और उनके जीवन संघर्ष को अपनी रचनाओं में बड़े कौशल से मनकों की तरह पिरोते हैं। बच्चों के लिए लिखते समय मनु जी का मन अधिक निर्मल होता है, ऐसा करके उन्हें आत्मीय खुशी और संतोष मिलता है। जब तक कोई रचना अपने मुकम्मल अंत तक नहीं पहुँचती यानी जैसा मनु जी का मन बनाना चाहता है, तब तक मनु जी पीड़ा और बेचैनी से गुजरते हैं। अपनी उस रचना को अंतिम स्वरूप देने से पहले बीसियों बार बाल पाठक की निगाह से पढ़ते हैं और फिर भी परिवर्तन की संभावना खुली रखते हैं।
'हिंदी बाल साहित्य का इतिहास' लिखकर मनु जी ने हमारी पीढ़ी पर बड़ा उपकार किया है। इन्होंने अपने जीवन के बीस-बाईस वर्ष खपाकर या साहित्य-समुद्र का मंथन करके जो अमृत निकाला है, वह कालजयी है, सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। साहित्य-इतिहास लेखन में यह पहलकदमी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। सौ बरसों से भी ज्यादा के साहित्य व समय को लिखना बहुत बड़ा जोखिम भरा कार्य था। इस कार्य में जिस श्रम, साधना, स्वाध्याय और समर्पण की आवश्यकता थी, वैसा हर कोई नहीं कर सकता था। ऐसा करने का जुनून केवल मनु जी में था और उन्होंने इसे कर दिखाया। एक साक्षात्कार में मनु जी स्वीकारते हैं कि "हिंदी बाल साहित्य का इतिहास लिखना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना था। इस सपने को यथार्थ के धरातल पर लाकर खड़ा करने में जहाँ मुझे एक ओर घोर परिश्रम करना पड़ा, वहीं मुझे संदर्भित पुस्तकें तलाशने में बेहिसाब धन राशि भी खर्च करनी पड़ी। मैं केवल उतना ही बचा पाता था, जितने में में घर पहुँच जाऊँ।
बाल साहित्य केवल मनोरंजन ही नहीं करता अपितु वह कोमल भावनाओं और कल्पनाओं को भी पोषित करता है। इसके साथ ही रुचि, अभिरुचि और चित्तवृत्तियों का परिष्कार करके संवेदनाओं का विस्तार करता है। अच्छा बाल साहित्य बालमन को अपराध, हिंसा, चोरी, नशे एवं अशिक्षा से बचाकर अच्छे-बुरे का विवेक जाग्रत करता है। यह गरीबी, तंगहाली और शारीरिक अपंगता में भी जीवन को सार्थक ढंग से जीने की सीख देता है। यह बचपन को भय, निराशा और कुंठा के अंधकूप से निकाल उजाले की ओर ले जाने वाला प्रकाश और ऊर्जा का अक्षय स्रोत है। बाल साहित्य की उपयोगिता एवं महत्त्व को रेखांकित करते हुए मनु जी लिखते हैं, "एक वाक्य में कहूँ तो बाल साहित्य की राह 'सत्यं शिवं सुंदरम्' की राह है, जिससे सिर्फ एक बच्चे को ही नहीं, बड़ों को भी दिशा मिलती है और देश का नवनिर्माण भी उसी से हो सकता है। यह बात दीगर है कि बहुत बड़ी कुर्सियों और सिंहासनों पर बैठे लोग उसे समझ न पाए हों। पर जो आज नहीं समझे, वह कल समझेंगे और अंततः इस सच को स्वीकार करेंगे।... महाभारत में वेदव्यास जी ने लिखा कि मैं दोनों भुजाएँ उठाकर कह रहा हूँ कि परोपकार से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है और परपीड़ा से बड़ा कोई पाप नहीं है, पर मेरी बात कोई सुनता ही नहीं है। ठीक यही बात मैं बाल साहित्य के संदर्भ में महसूस करता हूँ कि देश में बच्चों और बड़ों का भी विकास बाल साहित्य के बिना संभव नहीं और देश-समाज भी उसके बिना आगे नहीं बढ़ सकता। देश के लोग घटिया विकास की भगदड़ में एकांगी रथ पर चढ़ रहे हैं, उन्हें आज नहीं तो कल यह बात माननी ही होगी। हालाँकि अब तक शायद देर हो चुकी होगी ।... जिन बाल और इस ओर अपराधियों के बारे में अखबारों में पढ़-पढ़कर हमारा दिल हाहाकार करता है, काश! समय रहते हम उनके हाथों में बाल साहित्य दे पाते! तब हमारे देश और समाज की तस्वीर कुछ और होती।" मानव समाज की जीती-जागती इस धरोहर को लेकर इतनी बड़ी चिंता मनु जी करते हैं, वह हमारे वर्तमान समाज के लिए अनुकरणीय और सराहनीय है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist