'अत दीप भव' का संदेश देने वाले महाकारुणिक तथागत गौतम बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के बारे में भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में लोगों की रुचि दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बहुत से लोग भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति आकर्षित हो रहे हैं और उनकी शिक्षाओं के वारे में अधिक-से-अधिक जानकारी चाहते हैं। शायद यही कारण है कि पश्चिमी देशों में आजकल सर्वाधिक साहित्य भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के बारे में लिखा जा रहा है। बड़े-बड़े विद्वान, कलाकार, वैज्ञानिक, उद्योगपति, व्यवसायी, गरीब, अमीर सब के सब बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में जानना चाहते हैं। प्रख्यात, धनी, विद्वान, खिलाड़ी, अभिनेता सभी लोग बुद्ध की शिक्षाओं को अंगीकृत कर सुखी, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं। अंग्रेजी अखबार 'द टाइम्स ऑफ इंडिया (नई दिल्ली, 10 नवंबर 2006)' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार केवल भारत वर्ष में सन् 2006 में 30 लाख लोगों ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली। भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप में भी बौद्ध धम्म बहुत तेजी से बढ़ती हुई जीवनशैली बनता जा रहा है। जिनेवा आधारित 'अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक व आध्यात्मिक संगठन' ने 2009 का 'विश्व के सर्वश्रेष्ठ धर्म का सम्मान' बौद्ध धम्म को प्रदान किया।
लोग भगवान बुद्ध की दिन-प्रतिदिन के जीवन में उपयोगी शिक्षाओं के बारे में जानना चाहते हैं, लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति व आपाधापी वाले इस युग में लोगों के पास समय की कमी होती जा रही है, ऐसे में लोग कम से कम समय में अधिक से अधिक जानकारी चाहते हैं। बौद्ध वांड्मय दुनिया का विशालतम व विस्तृत साहित्य है। भगवान बुद्ध ने 45 वर्षों तक धम्म चारिका की और जीवन के हर पहलू पर उपदेश दिए। मूल बुद्ध वाणी पंद्रह हजार पृष्ठों में संग्रहित है। बुद्ध वाणी पर आधारित अट्ठकथाएं और अट्ठकथाओं की टीकाएं लगभग पैंतीस हजार पृष्ठों में संग्रहित है। इस प्रकार लगभग पचास हजार पृष्ठों का विशाल पालि साहित्य है। लेकिन सामान्य जिज्ञासु के लिए जो धम्म के बारे में जानना चाहते हैं और धम्म को जीवन में उतारना चाहते हैं उनके लिए ज्ञान के इस विस्तृत सागर में एकाएक गोता लगाना कुछ कठिन प्रतीत हो सकता है, इसलिए सारगर्भित रूप में धम्म का सार जानना आवश्यक है। इस पुस्तक के माध्यम से बौद्ध साहित्य का यही सारगर्भित रूप साधारण भाषा में पाठकों को उपलब्ध कराने का प्रयत्न किया गया है।
कुछ यथास्थितिवादी मनीषियों ने गौतम बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है। प्रस्तुत पुस्तक में उन ऐतिहासिक भूलों को सुधारने व लोगों के मन में व्याप्त आशंकाओं व दुविधाओं को दूर करने की कोशिश की गई है। मसलन, सिद्धार्थ गौतम के गृहत्याग को लेकर कुछ लोगों ने नासमझी के कारण तो कुछ लोगों ने पूर्वाग्रह के कारण अलग-अलग कहानियां बनाकर उन्हें उत्तरदायित्व से भागने वाले राजकुमार और उनके गृहत्याग को निरर्थक साबित करने की कोशिश की, जबकि वस्तुतः सिद्धार्थ ने स्वयं परिव्राजक बनने का निर्णय लिया था और संपूर्ण परिवार की सहमति व जानकारी में गृहत्याग किया था। पहले अध्याय में इसी तरह के अन्य मिथकों को तोड़ते हुए ऐतिहासिक तथ्य दिए गए हैं।
दूसरे अध्याय में, भगवान बुद्ध के उपदेशों को सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया गया है। तीसरे अध्याय में धम्म सार को सारांश रूप में दिया गया है। चौथा अध्याय पटिच्चसमुप्पाद पर है जो कि भगवान बुद्ध के उपदेशों का आधार है। भगवान बुद्ध ने इसे दुःख चक्र का अनुसंधान करते हुए खोज निकाला था।
विपस्सना भगवान बुद्ध की अद्भुत खोज है। विपस्सना जीवन जीने की कला सिखाती है। अर्हत पद को केवल विपस्सना द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। शील, समाधि व प्रज्ञा धम्म रूपी तिपाई के तीन आधार हैं।
Hindu (हिंदू धर्म) (13447)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (715)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2074)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1544)
Yoga (योग) (1154)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24553)
History (इतिहास) (8927)
Philosophy (दर्शन) (3592)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist