समय के मांग पर उठल लेखनी के हमरा ई पहिला नाटक ह। जवना के मंचन गांव के मंच पर ' भटकल भिनसहरा' शीर्षक से भइल। आज के तिथि में भाव उहे बा। बाकी एतना लंबा अंतराल के बाद खुद हमरा हाथे कम्यूटरांकित भइल बा। मूल नाटक के कुछ दृश्यन में समयानुकूल परिवर्तन भइल बा। दृश्यन के परिवर्तन से भाव पर कवनो तरह के असर नइखे आइल बलुक अउरी दमगर हो गइल बा। लंबा समय के बाद कवनो अपने रचना काहे ना होखे ओह में जवन खालीपन रहेला ऊ नजर आ जाला आ दुरूस्त हो जाला। अइसन सब रचना के साथ ना होखे। लेकिन लंबा रचना के साथ होला।
नाटक के दबल पात्रन के उठे के हुंकार बा। शिक्षा से दिशा मिलेला एह बात पर जोर दिहल गइल बा। बहुते जगे अबहीं सामंती व्यवस्था कायम बा। जवन कि गांव से लेके शहर आ देश तहाक के विकास खातिर बाधक बा। एक आदमी के विकास गांव के विकास ह आ गांव के विकास देश के गौरव ह। एह सच्चाई के कबो नकारल नइखे जा सकल। आसपास के विकास देखते हुए आपनो घर सुखी रखे खातिर जरूरत मंद लोग के मदद विकार रहित दिल से करे के चाही। सूरदास त कुँआ में गिरल रहन उनुकर प्रान रक्षा खातिर केहू के बाँह के जरूरत रहे। जइसन कि धार्मिक ग्रंथ में कहल गइल बा कि भगवान आके आपन बाह घरइलन आ निकललन।
आज जरूरत मंद आदमी के भगवान बचइहें कि ना मानव के त आपन पहिला फर्ज निभावे के चाहीं। जब अइसन होई त फिर मानव काहे रोई आ मानवता काहे लजाई। गिरल के उठावे खातिर सबसे पहले आदमी के घावे के चाही। दोसर बात ई कि भाषा भोजपुरी ह कि हिन्दी एह पर ना जाके तथ्य पर जाये के चाहीं। एह बोली में बदलाव चार कोस पर वानी बदले आ आठ कोस पर पानी के सच्चाई बाटे। आ अब के राजनीति आपन दायित्व के भुला के क्षेत्रियता के जहर घोरता। जवना से लजाता त बस मानवता लजाता।
एह नाटक के पचास प्रतिशत संशोधन के सौभाग्य हिन्दी नाटककार श्री ब्रह्मेश्वर तिवारी जी, गोरख परसियाँ से प्राप्त भइल बा। जवना खातिर हम उहाँ के आभारी बानीं। आ आभारी बानी गुरुवर श्री ब्रजकिशोर दूबे जी के। जेकर नेह भोजपुरी लिखे के प्रेरणा दिहलस। एतने ना सबसे बड़ कृपा दृष्टि खातिर गीताघाट के बाबा स्वामी शिवानन्द जी तीर्थ के पत्रिका हृदय संदेश के संपादक गुरूवर डॉ० नन्दकिशोर तिवराी जी के आभारी बानी। कि उहाँ के पहिल रचना छापे के देन आ बाबा के आशीर्वाद हमरा के रचना कर्म में आज तक जगवले बा त जगवले के जगवले बा। अइसन महापुरुष के हम अपना आत्मा में बसवले बानी। आ सबेरे सांझ नेह के आरती उतार लिहीला। ई हमरा जिनगी के घन ह। हीरी ह आ रतन।
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