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अभिज्ञान शाकुन्तलम के भोजपुरी काव्यानुवाद- Bhojpuri Poetry Translation of Abhigyan Shakuntalam

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Specifications
Publisher: Nishant Prakashan, Bihar
Author Translated By Dinesh Gargya
Language: Bhojpuri
Pages: 212
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 250 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789348597298
HCB017
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Book Description

प्रस्तावना

आयुर्वेद शाश्वत, दार्शनिक एवं वैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर आधारित विश्व का प्राचीनतम चिकित्सा विज्ञान है। जो भारतीय ऋषियों के वैयक्तिक व सामाजिक अनुभवों के ज्ञान परम्परा पर आधारित है। यह केवल रोग की चिकित्सा ही नहीं करता, अपितु रोगी की समय प्रकृति एवं विकृति का विचार कर चिकित्सा की योजना प्रस्तुत करता है. साथ ही स्वास्म्योनयन हेतु दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या एवं आसार रसायन की ऐशी योजना प्रस्तुत करता है। जिसका पालन कर मनुष्य जीवनपर्यन्त रोगरहित हो सकता है। धातुओं में साम्य स्थापित करना इस तंत्र (आयुर्वेद) का मूल प्रयोजन है जैसा कि चरक ने इस शब्द में स्याह किया है यया धातुसाध्य क्रियायाचोक्ता तन्त्रस्यास्य प्रयोजनम्। (च.मू. 1/53)। जिसके अन्तर्गत स्वस्थस्य स्वास्थ्य संरक्षण तथा आतुरस्य विकार प्रशमन इन दोनों प्रयोजन का अन्तर्भाव हो जाता है। यथा स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्, आतुरस्य विकार प्रशमनम् च । (च.सू. 30/26)

आयुर्वेदीय अन्य चरक संहिता में आयुर्वेद को शाश्चत कहा गया है तथा मानव को सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिरूप माना गया है। अर्थात् मृष्टि के समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक भाव मानव में प्रतिविम्वित होने हैं। (स. शा. 4/3) इस भाग को भारतीय दर्शन तथा आयुर्वेद में "यचा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे" तथा "पुरुषोऽयं लोक सम्मितः" जैसे शब्दों में व्यक्त तथा प्रतिस्थापित किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति समान रूप से समत्र सृष्टि को अपने आप में तथा स्वयं को समत्र सृष्टि में विद्यमान देखता है। परिणामस्वरूप उसे साथ का ज्ञान होता है कि यह स्वयं ही नाना प्रकार के सुखों एवं दुःखों का कर्ता है कोई अन्य नहीं। यह सत्य ज्ञान उसे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

आज नवीन अध्ययनों एवं अन्वेषणों से यह सिद्ध हो गया है कि सृष्टि तथा उसकी विशाल रचनाओं एवं सूक्ष्मखण्डों के अवयवों में एक समानता विद्यमान है। जिसके आधार पर सूक्ष्मतरकणों को नियंत्रित करके बृहतर अंग एवं अंगावयव को भी नियंत्रित एवं परिवर्तित किया जाना सम्भव है, जो कि पूर्व वर्णित निष्कर्षों की पुष्टि मात्र प्रतीत होती है। प्रस्तुत प्रसंग में इस विचार को समत्र चिकित्सा विज्ञान (Halistic medicine) का मूल माना जा सकता है। आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य इसी समप्रतावादी (Holism) दृष्टिकोण पर आधारित है, जो प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्तोदेश तथा युक्ति इन चार प्रकार के प्रमाणों द्वारा परीक्षित है।

आयुर्वेदीय ग्रन्थों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि हमारे आचार्यों ने तत्त्व ज्ञान के आधार पर लोकपुरुष साम्य, पंचमहाभूत, त्रिदोष, त्रिगुण, सामान्य विशेष, धातुपोषण आदि सिद्धान्तों को प्रतिस्थापित किया होगा, जिनकी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिरक्षण के क्षेत्र में अतीव उपयोगिता है। आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने सह-विज्ञानों के सहयोग से अभूतपूर्व प्रगति की है। परन्तु यह प्रगति Medicine के क्षेत्र में अल्प प्रतीत होती हैं, क्योंकि इनमें प्रयोग होने वाली रासायनिक एवं जैव रासायनिक औषधियों अल्य समय में ही चिकित्सीय प्रयोग से बाहर हो रहीं हैं। इस श्रृंखला में Penicillin से प्रारम्भ कर नवीन Antibiotics के उदाहरण हम सभी के समक्ष विद्यमान हैं। विगत कई वर्षों से किसी नवीन Antibiotic का अविष्कार नहीं हुआ है तथा जो है भी वो प्रमाणहीन होती जा रही हैं। प्रायः इन औषधियों के प्रयोग से रोग विशेष के लक्षणों पर लाभ तो होता है, किन्तु शरीर के दूसरे संस्थानों पर गम्भीर एवं हानिकारक प्रभाव के कारण व्यक्ति अन्य व्याधि से पीड़ित हो जाते हैं। चिकित्सा की इस भयावह स्थिति को देखकर वैज्ञानिक एवं चिकित्सा शास्त्री हानि रहित, सुरक्षित एवं सरलता से प्राप्त होनेवाली वैकल्पिक औषधियों के खोज में प्रयत्नशील हैं। इस क्रम में उनका ध्यान आयुर्वेद एवं योग की ओर आकर्षित हो रहा है।

**Contents and Sample Pages**

































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