भारत धर्म प्रधान देश है। यहाँ के राजाओं ने अपना व्यक्तिगत धर्म पालन करते हुए भी अन्य धर्मावलम्बियों को सुविधायें दी तथा अन्य धर्मों का समान रूप से आदर किया। 150 ई० पू० से 650 ई० के भारत का सांस्कृतिक इतिहास अत्यन्त रोचक है। इस काल में धर्म के क्षेत्र में प्रगति हुई, अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय एवं विकास हुआ तथा सामाजिक मान्यताओं में भी क्रांति आई। यह काल मनु एवं याज्ञवल्क्य तथा अनेक स्मृतिकारों का काल है। इन ऋषिमनीषियों ने सामाजिक नियमों एवं मूल्यों का नियमन किया। ई० पू० छठी शताब्दी की धार्मिक क्रान्ति के फलस्वरूप प्रमुख रूप से दो नये धर्मों का उदय हुआ। इन नवीन धर्मों में एक धर्म था बौद्ध धर्म। बौद्ध धर्म सबसे नवीन और सारे सम्प्रदायों के सार तत्व के नये भौतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में बौद्धिक और दार्शनिक क्षमता के साथ प्रस्फुटित हुआ था। यह धर्म भारत में उत्पन्न हुए नवीन धर्मों में सबसे अधिक प्रभावशाली साबित हुआ। इस धर्म के संस्थापक और प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे। बोधगया तथा अमरावती के स्तूपों के बैदिका स्तम्भों, तोरणों पर अंकित मूर्तियाँ बौद्धधर्म की धरोहर है। मथुरा एवं गन्धार में जो मूर्तियाँ मिली है वे न केवल बौद्धधर्म बल्कि हिन्दू एवं जैनधर्म के इतिहास पर भी प्रकाश डालते हैं। गुप्तकाल में भी मूर्तियों का निर्माण जारी रहा। हिन्दू, बौद्ध एवं जैन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ निर्मित हुई। सर्वप्रथम ईसवी सन् के प्रारम्भिक शताब्दी में भगवान बुद्ध की मूर्ति बनी। इन स्रोतों के अतिरिक्त विदेशी यात्रियों के वर्णन का विशेष महत्व है। पाँचवी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में चीनी यात्री फाह्यान तथा सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हेनसांग भारत आये और उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थिति पर प्रकाश डाला है।
प्रारम्भिक अवस्था में बौद्ध संघ के दरवाजे सभी वर्गों के लिए खुले थे। परन्तु कालान्तर में बदलती हुई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करने के लिए गौतम बुद्ध को समझौतावादी रुख अपनाना पड़ा। बुद्ध ने आगे चलकर अल्पवयस्क, चोर, हत्यारों, ऋणी व्यक्ति, राजा के सेवक, दास एवं रोगी व्यक्ति के संघ में प्रवेश पर रोक लगा दी। अपने प्रिय शिष्य आनन्द के आग्रह पर उन्होंने संघ में स्त्रियों को प्रवेश करने की अनुमति प्रदान कर दी परन्तु इसके साथ उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि स्त्रियों के प्रवेश के संघ चिरस्थायी नहीं रह पायेगा। उनकी यह आशंका आगे चलकर बहुत हद तक सत्य सिद्ध हुई।
इस प्रकार बौद्ध धर्म एक समय मात्र भारत का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण एशिया का प्रमुख धर्म बन गया परन्तु कालान्तर में भारत में इस धर्म के प्रभाव में कमी आयी। सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद बौद्ध ध् ार्म के विरुद्ध जनभावना जागृत हुई। मौर्य साम्राज्य के विघटन के बाद मगध में ब्राह्मण धर्मावलम्बी शुंग वंश के शासन की शुरुआत हुई। यद्यपि पुष्यमित्र शुंग धर्मसहिष्णु शासक था परन्तु ब्राह्मण धर्म को प्रश्रय दिये जाने से बौद्ध धर्म को क्षति उठानी पड़ी। यह क्रम शुंग काल के बाद भी जारी रहा। छठी सदी के हूण शासक मिहिरकुल ने अनेक बौद्ध विहारों को नष्ट किया। गौड़ राजा शशांक ने भी बौद्ध मतावलम्बियों का दमन किया। इन शासकों की दमनकारी नीतियों से बौद्ध धर्म की प्रगति में बाधा उत्पन्न हुई, यह धर्म समाप्त नहीं हुआ। बौद्ध धर्म के पतन के लिए मुख्य रूप से इस धर्म की आन्तरिक दुर्बलता और हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान उत्तरदायी थे। धीरे-धीरे बौद्ध धर्म में अनैतिकता का बोलवाला होता जा रहा था। यह अपने मतभेदों के कारण अनेक शाखाओं में विभाजित होकर अपनी शक्ति खोता जा रहा था। कनिष्क के काल में इस धर्म की छोटी बड़ी 18 शाखाएँ थी। एक तरफ बौद्ध धर्म की शक्ति में ह्रास हो रहा था, दूसरी तरफ गुप्त शासकों के शासनकाल में हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान प्रारम्भ हो चुका था। 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य के रूप में हिन्दू धर्म को एक अद्भूत नेतृत्व प्राप्त हुआ। शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार कर इसे पुनः लोकप्रिय बनाना शुरू कर दिया। इसी समय हिन्दू धर्म ने बौद्ध धर्म को अपने धर्म में स्थान प्रदान कर दिया। इससे बौद्ध धर्म तीव्र गति से पतन की ओर अग्रसर हुआ। हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में विभिन्न राजपूत वंश के शासन की स्थापना हुई। राजपूत राजाओं ने हिन्दू धर्म को संरक्षण प्रदान किया जिसके परिणामस्वरूप बौद्ध धम्र संघों अथवा मठों तक ही सिमट कर रह गया। इनका मठों, विहारों के बाहर कोई प्रभाव नहीं रहा। प्रभावहीन बौद्ध विहारों, मठों आदि का नाश करना, मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए अत्यन्त आसान हो गया। 11वीं एवं 12वीं शताब्दी के मुस्लिम आक्रमणकारियों ने बौद्ध विहारों को नष्ट किया, उनके पुस्तकालयों को जला डाला एवं बहुत बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी। मुस्लिम आक्रांताओं से भयभीत होकर अधिकांश बौद्ध नेपाल और तिब्बत की ओर भाग खड़े हुए तथा भारत से बौद्ध धर्म समाप्त हो गया।
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