भारतीय संस्कृति को जीवित जाग्रत रखने में भारतीय सन्तों का एक महान् योगदान है। उन्होंने अपनी दिव्यशक्ति, प्रभावशाली जीवन और अलौकिक प्रतिभा से तत्कालोन जनता के हृदयों में जहाँ धर्म की भावना को अक्षुण्ण बनाये रखा, उसके साथ ही कालचक्र के प्रभाव से तथा अविद्या आदि अन्य कारणों से आई हुई बुराइयों को दूर करने में भी बड़ा योग दिया है।
इस सन्त-परम्परा के अधिकतर सन्त कवि भी हुए हैं। उन्होंने अपनी कविता के हृदयग्राही भावों के द्वारा जनता को मुग्ध बनाये रखा ।
चैतन्य महाप्रभु का जन्म असम प्रान्त के सिहलट नगर में हुआ। ये वर्ण के इतने गौर थे कि 'गौराङ्ग प्रभु' नाम से प्रसिद्ध हो गए। इनका प्रकाण्ड पांडित्य, अद्भुत त्याग और नामकीर्तन अलौकिक था। माता का प्रेम तथा विवाह का बन्धन भी इन्हें बांध न सका और महाप्रभु उन्मुक्त होकर स्थान-स्थान की यात्राएँ करने लगे ।
मद्यपों का उद्धार, उत्पातियों को सत्पथ पर लाना गर्वीलों का विनय द्वारा गर्व-हरण, कुष्ठी तथा अन्य योग-पीड़ितों से प्रेम तथा सहानुभूति आदि विशिष्ट कार्यों ने उनको महत्ता को शाश्वत बना दिया है।
चैतन्य महाप्रभु जैसे सन्त और भक्त केवल उसी प्रान्त तक ही सीमित नहीं, प्रत्युत वे तो विश्व की विभूतियां हैं। महाप्रभु के जीवन-दर्शन को कुछ अंश तक प्रकट करने वाली इस लघु पुस्तिका को विश्वेश्वरानन्द संस्थान पाठकों के समक्ष उपस्थित कर रहा है।
संस्थान इसके सुयोग्य लेखक श्री सुदर्शनसिंह चक्र का कि हमारी प्रार्थना पर उन्होंने इसे लिख अत्यन्त आभारी है भेजा है। श्राशा है, यह पुस्तिका पाठकों के हृदयों में प्रेरणा-दायक सिद्ध होगी ।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist