एक सवाल हमेशा पूछा जाता हैः "मैं एक आध्यात्मिक जीवन जीना चाहता हूँ, परंतु उसको मैं कैसे अपने कर्म के साथ जोडूं?" वस्तुतः संसार की अपनी सभी माँगों, मनोरंजन, भटकाव के साथ एक क्रियाशील जीवन को जीते हुए, अपने लक्ष्य के साथ जुड़े रहना इतना आसान नहीं है, यह लगभग ऐसा लगता है जैसे समाज वह सब कुछ करता है जिससे हम जीवन में अपने गहरे उद्देश्यों को भूल जाएँ। अपने अन्तरम को न भूलने में हम आपकी सहायता कैसे कर सकते हैं? यह पुस्तक उन लोगों के सवालों के जवाब और अभ्यास के रूप में सहायक हो सकती है जो अपने जीवन, फुर्सत या कार्य के हर क्षेल में आध्यात्मिक खोज को अधिक सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना चाहते हैं शिक्षक, प्रशिक्षक, परामर्श दाता, डाक्टर या बढ़ते बच्चों के माता-पिता।
इस पुस्तक की विषय-वस्तु श्रीअरविन्द और श्रीमाँ के लेखन पर आधारित है। श्रीअरविन्द ने उन लोगों को हजारों चिट्ठियाँ लिखी हैं जिन्होंने उनसे सलाह माँगी। अपने एक पत्न में वे लिखते हैं कि उनके योग का एक उद्देश्य है, "बाहरी जीवन जीते हुए अधिक से अधिक आंतरिक चेतना में रहना..."। इसका अर्थ, हमारे अस्तित्व की सबसे अंदर की सतहों का सामने आकर हमारे दैनिक जीवन के हर पहलू को परिचालित करना है।
श्रीमाँ ने कई सालों तक अपनी प्रश्नोत्तर की कक्षाओं में प्रश्नोके मौखिक उत्तर दिए हैं।
प्ले-ग्राउंड के ये प्रश्न-उत्तर हमें पुस्तक के रूप में उपलब्ध हैं जो हजारों पृष्ठों में प्राप्त अमूल्य ज्ञान का स्रोत है। श्रीअरविन्द ने, अपने पहले के वर्षों में और श्रीमाँ ने उन्नीस सौ चालीस के बाद से जो सलाह दी है वो शिक्षा से विशेष रूप से संबंधित है, और जिसमें वह पूर्णांग शिक्षा और चैत्य शिक्षा पर जोर देती हैं।
अगर यह सब उपलब्ध है, तो फिर इसी प्रकार की एक और पुस्तक क्यों लिखें? यह पुस्तक, नई दिल्ली में अवस्थित एक पूर्णांग शिक्षा विद्यालय, मीरांबिका में स्थित 'शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र' के शिक्षकों की सहायतार्थ तैयार की गयी है। पिछले 20 वर्षों में, मीराम्बिका का शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, शिक्षकों को पूर्णांग शिक्षा के आधार पर प्रशिक्षित कर रहा है। इन वर्षों के दौरान कुछ प्रश्न बार-बार पूछे गए हैं: "चैत्य सत्ता क्या है?", "पूर्णांग शिक्षा का वास्तव में क्या अभिप्राय है?", "इसे व्यवहार में कैसे लाया जाए?" यद्यपि इन सवालों के जवाब श्रीअरविन्द और श्रीमाँ की किताबों में मिल सकते हैं, लेकिन पूर्णांग शिक्षा विद्यालय के शिक्षक एवं प्रशिक्षार्थी शिक्षकों ने अपने पाठ्यक्रमों के दौरान यह इच्छा व्यक्त की है कि इस जानकारी को और आसानी से उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
श्रीअरविन्द और श्रीमाँ के मूल लेखन में एक समृद्धि है जिसे इस तरह की एक सरल अभ्यास पुस्तिका में लाना मुश्किल है। मैं इस तथ्य से पूरी तरह परिचित हूँ कि कोई भी संकलन उनके शब्दों को संदर्भ से बाहर ले जाता है, तथा उनकी मूल गहनता और अर्थ से परे हट जाता है। इस पुस्तक को सामने लाने में यह मेरी झिझक का मुख्य कारण रहा। लेकिन अगर यह पुस्तक मील का पत्थर (stepping stone) के रूप में काम कर पाए तो इन मूल लेखनों के लिए इसका उद्देश्य पूरा हो जाएगा।
इस पुस्तक का पहला भाग उन सभी लोगों की मदद करने के लिए लिखा गया है, जो अपने दैनिक जीवन को आध्यात्मिकता से जोड़ने के लिए पहला कदम उठाना चाहते हैं। यह उन लोगों के लिए भी कुछ मददगार हो सकता है जो पहले से ही इस रास्ते पर हैं।
इस पुस्तक का भाग 2 विशेष रूप से शिक्षा से संबंधित है। पूर्णांग शिक्षा, जैसी श्रीअरविन्द और श्रीमाँ ने परिकल्पना की थी, आत्मा के चारों तरफ़ ही केंद्रित है। आदर्श स्थिति में शिक्षक की जागृत चैत्य सत्ता ही छात्रों के लिए चैत्य शिक्षा का परिवेश तैयार करती है। निःसन्देह रूप से अपनी चैत्य सत्ता को ढूँढ़ पाना भागवत कृपा पर निर्भर करता है, और कोई इस खोज की तीव्र अभीप्सा के बावजूद तुरंत परिणाम पाने की माँग नहीं कर सकता है। इसमें वर्षों लग सकते हैं, एक से अधिक जीवन लग सकता है, आत्मा की खोज में। परन्तु, यह भी सच है कि कोई पूर्णांग शिक्षा की शुरुआत का अभ्यास तब तक नहीं कर सकता है, जब तक उसने कम से कम अपने अंदर आत्मा की खोज शुरू न कर दी हो।
छात्र अपनी अंतरतम सत्ता की खोज करने में सक्षम हो सकें, इसके लिए शिक्षकों को कक्षा में चैत्य विकास के अनुकूल एक परिवेश प्रदान करना होगा। इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस खोज के बारे में एक सजग अनुभव हो। हमें स्वयं उस खोज में जीना है, जो हमें पूर्णांग शिक्षा को लागू करने के लिए आवश्यक सामर्थ्य और ज्ञान प्रदान करता है। यह हमें एक ऐसा वातावरण प्रदान करने में मदद करता है, जहाँ छात्र और सहकर्मी आत्म निरीक्षण और जीवन के गहरे अर्थों का पता लगाने के लिए उत्साहित महसूस करते हैं।
इस कार्य-पुस्तिका का दूसरा भाग मुख्य रूप से उन लोगों के लिए है जो पूर्णांग शिक्षा को अपनी कक्षा में लागू करने के लिए स्वयं को सक्रिय रूप से तैयार करना चाहते हैं। लेकिन यह उन माता-पिता और उन लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकता है जो अपने कार्यस्थल में दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं। इसमें आन्तरिक यात्ना हेतु श्रीअरविन्द और श्रीमाँ द्वारा दिए गए कुछ संकेत चिह्नों का भी उल्लेख किया गया है, जो मीरांबिका के प्रशिक्षार्थियों तथा मीरांबिका की कार्यशाला प्रतिभागियों के लिए मार्गदर्शक और सहायक रहा है।
इस पुस्तक के अभ्यास कार्य श्रीअरविन्द आश्रम (पांडिचेरी) में प्ले-ग्राउंड के प्रश्नोत्तर सत्त्रों के दौरान श्रीमाँ के द्वारा दिये गये अभ्यास कार्यों पर आधारित हैं। इनमें से कई प्रश्नोत्तर अद्भुत सहायता प्रदान करते हैं जब हम अध्यात्मिक-पथ पर होते हैं। आत्मनिरीक्षण सम्बन्धी प्रश्न, कार्य-पत्न और जाँच-सूची पिछले बीस वर्षों से मीरंबिका में तैयार की गयी हैं। ये कार्य-पुस्तिका और जाँच-सूची आपको स्पष्टता लाने में और अपने प्रयास को मजबूत बनाने में मदद करने के लिए हैं।
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